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GDP का इस वर्ष हो सकता है 20 लाख करोड़ का नुकसान, अगले वर्ष हालात सामान्य

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:31 AM GMT
GDP का इस वर्ष हो सकता है 20 लाख करोड़ का नुकसान, अगले वर्ष हालात सामान्य
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GDP का इस वर्ष हो सकता है 20 लाख करोड़ का नुकसान, अगले वर्ष हालात सामान्य नई दिल्ली। देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में पहली तिमाही में

GDP का इस वर्ष हो सकता है 20 लाख करोड़ का नुकसान, अगले वर्ष हालात सामान्य

नई दिल्ली (विपिन तिवारी ) । देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में पहली तिमाही में करीब एक-चौथाई की भारी गिरावट आने के सवाल पर पूर्व वित्त सचिव (former finance secretary) सुभाष चंद्र गर्ग (Subhash Chandra Garg) ने कहा है कि यह नुकसान देशव्यापी लॉकडाउन लगाने की रणनीति सही नहीं होने के कारण हुआ है। उनका आकलन है कि अर्थव्यवस्था को चालू वित्त वर्ष में 20 लाख करोड़ रुपए की क्षति हो सकती है।
गर्ग ने कहा कि लॉकडाउन से कोरोना वायरस महामारी का प्रसार शुरू में धीमा जरूर पड़ा लेकिन अर्थव्यवस्था को इससे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ। गर्ग का मानना है कि आर्थिक हालात कहीं जाकर चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2021) तक ही सामान्य हो सकेंगे, तब तक देश के जीडीपी को कोविड-19 और उससे जनित प्रभावों से कुल 10-11 प्रतिशत यानी करीब 20 लाख करोड़ रुपए की क्षति हो चुकी होगी।

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पूर्व प्रशासनिक अधिकारी ने अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर खास बातचीत में सुझाव दिया कि आत्मनिर्भर भारत पैकेज में सुधार कर इसका लाभ ज्यादा से ज्यादा सूक्ष्म और छोटे उद्यमों तक पहुंचाने तथा बेरोजगार हुए मजदूरों की विशेष सहायता करने में किया जाना चाहिए। साथ ही बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सरकारी निवेश बढ़ाए जाने की रणनीति पर भी काम करने की जरूरत है।
गर्ग ने कहा, जब लॉकडाउन लगाया गया उस समय देश में वायरस की शुरुआत ही हो रही थी। लॉकडाउन से उस समय इसका प्रसार धीमा हुआ, ज्यादा तेजी से नहीं फैला, लेकिन इस दौरान देश की स्थिति को देखते हुए अर्थव्यवस्था को नुकसान ज्यादा हुआ है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन हटने के बाद वायरस फैलने की गति बढ़ी है। पर बेहतर होता कि अर्थव्यवस्था से समझौता किए बिना महामारी पर अंकुश लगाने के प्रयास किए जाते।
पूर्व वित्त सचिव ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था का आकार 10 से 11 प्रतिशत तक कम हो सकता है। पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत की गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में यह गिरावट 12 से 15 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4 से 5 प्रतिशत रह सकती है। चौथी तिमाही में कहीं जाकर स्थिति सामान्य हो सकती है। कुल मिलाकर 2020-21 में जीडीपी 10 से 11 प्रतिशत तक कम रह सकती है। यानी आंकड़ों में बात करें तो इसमें 20 लाख करोड़ रुपए की कमी आएगी।
जीडीपी में गिरावट आने का मतलब है सबकी आय में कमी। आमदनी घटने से खर्च कम होता है और आर्थिक गतिविधियों का नुकसान होता है। वर्ष 2020- 21 के बजट पत्रों में इससे पिछले वित्त वर्ष (2019-20) में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2,04,42,233 करोड़ रुपए रहने का संशोधित अनुमान लगाया गया है।

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गर्ग ने कहा कि लॉ’कडाउन से सूक्ष्म, लघु उद्योगों को बड़ा झटका लगा है। कुल मिलाकर 7.5 करोड़ के करीब सूक्ष्म, लघु, मझोले उद्यम (एमएसएमई) हैं। उनकी मदद की जानी चाहिए। आत्मनिर्भर भारत के तहत जो योजनाएं पेश की गईं हैं उनका लाभ 40- 45 लाख को ही मिल पा रहा है। एमएसएमई में एक बड़ा वर्ग है जो अभी भी अछूता है सरकार को उन्हें सीधे अनुदान देना चाहिए।
गर्ग ने कहा, दूसरा वर्ग 10-12 करोड़ के करीब कामगारों का है जिनके पास कोई काम नहीं रहा, उनका रोजगार नहीं रहा, उनकी मदद की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि रणनीति के तीसरे हिस्से के तहत-सरकार को समग्र अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में पूंजी व्यय बढ़ाना चाहिए। कई क्षेत्रों में नीतिगत समस्याएं आड़े आ रही हैं उन्हें दूर किया जाना चाहिए। पहली तिमाही में पूंजी निवेश में भारी कमी आई है, उस तरफ ध्यान देना चाहिए।
वर्ष 1983 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गर्ग मार्च से जुलाई 2019 तक ही वित्त सचिव रहे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के जुलाई 2019 में पेश पहले पूर्ण बजट में ‘सावरेन बांड के प्रस्ताव को लेकर वह चर्चा में आए। इस मुद्दे पर सरकार की किरकिरी होने पर उन्हें वित्त मंत्रालय से हटाकर बिजली मंत्रालय में भेज दिया गया, जिसके बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली।

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नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर अभी भी असर बने रहने के सवाल पर गर्ग ने कहा, मुझे नहीं लगता कि नोटबंदी का असर अभी भी बना हुआ है। नोटबंदी का असर अस्थायी रहा। अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक गतिविधियों का बड़ा हिस्सा था। इसमें ज्यादातर भुगतान नकद में होता रहा है। करीब 25 से 30 प्रतिशत अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का भारी असर पड़ा।
लेकिन इसका एक असर यह भी हुआ कि असंगठित क्षेत्र का काफी कारोबार संगठित क्षेत्र में होने लगा और उनमें लेनदेन औपचारिक प्रणाली में परिवर्तित हुआ। इस प्रकार नोटबंदी का असर अस्थायी ही रहा है। नोटबंदी के बाद के वर्षों में आर्थिक वृद्धि में सुधार आया है। [signoff]
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