सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर शुरू हुई बहस मंदिर और मोक्ष तक पहुंची, सरकार ने कहा- वक्फ इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं; मुस्लिम पक्ष ने कहा- मंदिर भी नहीं

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून को लेकर गरमागरम बहस हुई। मुस्लिम पक्ष ने 'वक्फ बाय यूजर' हटाने समेत 5 प्रमुख आपत्तियां उठाईं, जबकि सरकार ने कानून का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है। कोर्ट ने अंतरिम रोक पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। जानें पूरा मामला।

Update: 2025-05-23 04:00 GMT

सर्वोच्च न्यायालय में वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई, जहाँ यह बहस धार्मिक आस्थाओं, संपत्ति के अधिकारों और कानूनी व्याख्याओं के बीच उलझती दिखी, यहाँ तक कि मंदिर और मोक्ष की अवधारणाओं पर भी चर्चा हुई। मुस्लिम समुदाय ने कानून के प्रावधानों पर पाँच प्रमुख चिंताएँ व्यक्त कीं, जिनका केंद्र सरकार ने जोरदार खंडन किया। दोनों पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने कानून पर अंतरिम रोक लगाने की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। आइए जानते हैं कि मुस्लिम पक्ष की मुख्य आपत्तियां क्या हैं और सरकार ने उनके जवाब में क्या कहा...

1. 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान का विलोपन

नए कानून में 'वक्फ बाय यूजर' का प्रावधान हटा दिया गया है। इसका अर्थ था कि यदि कोई संपत्ति लंबे समय से मस्जिद या कब्रिस्तान जैसे धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग हो रही है, तो उसे दस्तावेजों के अभाव में भी वक्फ मान लिया जाता था। अब बिना विलेख (डीड) के किसी संपत्ति को वक्फ नहीं बनाया जा सकेगा।

  • मुस्लिम पक्ष की दलील: वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि 'वक्फ बाय यूजर' इस्लाम में एक स्थापित परंपरा है, जिसके तहत सदियों से धार्मिक उपयोग में आ रही संपत्तियों (मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें) को ईश्वर को समर्पित माना जाता है और यह कभी समाप्त नहीं हो सकतीं। इस प्रावधान को हटाना मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 14, 25) का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि 13वीं-14वीं सदी की कई मस्जिदें और कब्रिस्तान इसी आधार पर संरक्षित हैं, और यह बदलाव उन्हें अवैध बना देगा। इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने टिप्पणी की कि यह हिंदुओं में मोक्ष की अवधारणा जैसा है।
  • केंद्र सरकार की दलील: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2013 के बाद वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से अधिक की वृद्धि हुई, जिससे निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद बढ़े। उन्होंने कहा कि वक्फ की आधी से ज्यादा जमीनें 'वक्फ बाय यूजर' के तहत हैं। मेहता ने जोर देकर कहा, "वक्फ एक इस्लामिक विचार है, इसमें कोई विवाद नहीं, लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। दान हर धर्म का हिस्सा है, पर अनिवार्य नहीं, यह बात सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है।" राजस्थान सरकार के वकील राकेश द्विवेदी ने भी कहा कि 'वक्फ बाय यूजर' इस्लाम की मूल प्रथा नहीं, बल्कि कब्जे से जमीन वक्फ करने का तरीका था। इसके जवाब में अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वेदों के अनुसार मंदिर भी हिंदू धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हैं।

2. वक्फ संपत्ति निर्धारण में जिला कलेक्टर की शक्ति

पहले वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति को अपनी संपत्ति घोषित कर सकता था। नए कानून के तहत, वक्फ बोर्ड को किसी भी वक्फ संपत्ति को जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) कार्यालय में पंजीकृत कराना होगा। किसी विवादित संपत्ति पर जब तक डीएम अपनी रिपोर्ट नहीं दे देते, उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा और न ही वक्फ बोर्ड उसे नियंत्रित कर सकेगा।

मुस्लिम पक्ष की दलील: कपिल सिब्बल ने इसे वक्फ संपत्तियों को हथियाने की कोशिश और अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर हमला बताया। उन्होंने आशंका जताई कि जिला कलेक्टर, जो सरकार का प्रतिनिधि है, सरकार के पक्ष में फैसला कर सकता है। उन्होंने कहा, "कलेक्टर तय करेगा कि संपत्ति पर विवाद है या नहीं, और विवाद होने पर अदालत के निर्देश बिना पंजीकरण नहीं होगा।"

केंद्र सरकार की दलील: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन आरोपों का खंडन किया। मुख्य न्यायाधीश गवई के सवाल पर कि क्या कलेक्टर को असीमित शक्तियां दी गई हैं, मेहता ने कहा, "यह दलील गलत है कि कलेक्टर के फैसले को कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती।" उन्होंने स्पष्ट किया कि जिला कलेक्टर की जांच केवल राजस्व रिकॉर्ड को अद्यतन करने के लिए है, जबकि संपत्ति के मालिकाना हक का मामला वैधानिक है और कलेक्टर के फैसले को वक्फ ट्रिब्यूनल या हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। मेहता ने यह भी बताया कि जांच का जिम्मा जिला कलेक्टर से ऊपर के रैंक के नामित अधिकारी (DO) को दिया गया है।

3. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों का समावेश

नए कानून में वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव प्रस्तावित हैं। अब बोर्ड में 2 महिला सदस्य और 2 गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे। केंद्रीय वक्फ परिषद में भी 3 सांसद (2 लोकसभा, 1 राज्यसभा) शामिल होंगे, जिनका मुस्लिम होना अब अनिवार्य नहीं है।

  • मुस्लिम पक्ष की दलील: कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया, "हिंदू और सिख धार्मिक ट्रस्टों में कोई गैर-धर्मी व्यक्ति नहीं होता। फिर सरकार वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ काउंसिल में गैर-मुसलमानों को क्यों शामिल करना चाहती है?" राजीव धवन ने कहा कि धर्मार्थ संपत्तियों का प्रबंधन धर्म का मूल हिस्सा है और यह कानून मुस्लिम समुदाय से यह अधिकार छीन रहा है, जो भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर हमला है।
  • केंद्र सरकार की दलील: तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड के कार्य जैसे ऑडिटिंग, लेखा, मुकदमेबाजी पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं और वक्फ परिषद राज्य बोर्डों को निर्देश देती है। उन्होंने कहा, "वक्फ बोर्ड के 11 में से 2 और काउंसिल के 22 में से 4 सदस्यों के गैर-मुस्लिम होने से संस्थाओं का सेकुलर चरित्र नहीं बदलेगा।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड वक्फ की किसी धार्मिक गतिविधि में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। जेपीसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि कुछ गैर-मुस्लिमों को शामिल करने से विविधता आएगी और प्रशासन बेहतर होगा।

4. वक्फ के लिए न्यूनतम 5 वर्ष से मुस्लिम होने की शर्त

नए प्रावधान के अनुसार, वक्फ के लिए संपत्ति दान करने वाले व्यक्ति को उस संपत्ति का मालिक होने के साथ-साथ कम से कम 5 वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, 'वक्फ-अल-औलाद' (परिवार के लिए वक्फ) के तहत महिलाओं का विरासत का अधिकार नहीं छीना जा सकता, जिससे परिवार की बेटियों को भी हक मिलेगा।

  • मुस्लिम पक्ष की दलील: कपिल सिब्बल ने 5 साल से मुस्लिम होने का प्रमाण मांगने को असंवैधानिक और अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया।
  • केंद्र सरकार की दलील: तुषार मेहता ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से केवल मुस्लिम ही अपनी संपत्ति वक्फ कर सकते थे। उन्होंने नवंबर 2012 में हुए एक संशोधन की ओर इशारा किया (संभवतः कांग्रेस सरकार के समय का), जिसमें किसी भी व्यक्ति को वक्फ बनाने का अधिकार दिया गया था। सरकार ने 'वक्फ-अल-औलाद' में महिलाओं को अधिकार मिलने को एक सकारात्मक कदम बताया।

5. सरकारी भूमि का वक्फ संपत्ति न होना

कानून की धारा 3C(1) के अनुसार, किसी भी केंद्र या राज्य सरकार की संपत्ति, या सरकारी बोर्ड, निगम या संस्थानों की भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता। धारा 3C(2) के तहत जिला कलेक्टर किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में गैर-अधिसूचित (डिनोटिफाई) कर सकता है, यदि वह उसे सरकारी संपत्ति मानता है, और निपटारे तक वह वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

  • मुस्लिम पक्ष की दलील: कपिल सिब्बल ने चिंता व्यक्त की कि "सिर्फ शिकायत कर देने भर से संपत्ति वक्फ नहीं रह जाएगी। कब्रिस्तान 100 साल के लिए वक्फ होता है। दफनाना इस्लाम की एक जरूरी प्रथा है। अचानक सरकार आकर कहती है कि कब्रिस्तान सरकारी जमीन है।" उन्होंने कहा कि धारा 3C के तहत जांच शुरू होते ही वक्फ का दर्जा खत्म हो जाएगा और मुकदमेबाजी में घसीटा जाएगा।
  • केंद्र सरकार की दलील: तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि राजस्व अधिकारी केवल यह तय करेंगे कि कोई जमीन सरकारी है या नहीं, न कि उसका मालिकाना हक। जमीन के स्वामित्व के लिए सरकार को अलग से मुकदमा दायर करना होगा और कलेक्टर के फैसले को अधिनियम की धारा 83 के तहत हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

आगे क्या होगा?

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायालय अपने फैसले में कुछ विवादित प्रावधानों, जैसे 'वक्फ बाय यूजर' और गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति पर अंतरिम रोक लगा सकता है, जैसा कि पिछली सुनवाइयों में संकेत मिला था। यदि न्यायालय को लगता है कि नया वक्फ कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है और मामले में विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है, तो इसे बड़ी बेंच के पास भेजा जा सकता है।

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