MP के नए जिलों मऊगंज, मैहर और पांढुर्णा को चुनाव आयोग ने दी मान्यता, अब पूरी तरह से पावरफुल हुए कलेक्टर

मध्य प्रदेश के मऊगंज, मैहर और पांढुर्णा जिलों को चुनाव आयोग ने मान्यता दे दी है. अब इन जिलों के कलेक्टर अपनी विधानसभा सीटों के लिए अपीलीय अधिकारी होंगे, जिससे चुनाव प्रक्रिया आसान होगी.;

Update: 2025-07-20 07:56 GMT

MP के 3 नए जिलों को मिली चुनाव आयोग की हरी झंडी: मध्य प्रदेश में पिछले दो साल पहले बनाए गए तीन नए जिलों - मऊगंज, मैहर और पांढुर्णा को आखिरकार चुनाव आयोग ने आधिकारिक मान्यता दे दी है. यह खबर इन जिलों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक बदलाव लेकर आई है. इस मान्यता के साथ ही अब इन नए जिलों के कलेक्टर अपने-अपने जिला क्षेत्रों में आने वाली विधानसभा सीटों के लिए अपीलीय अधिकारी के रूप में काम कर सकेंगे. 

दूसरी ओर, चुनाव आयोग ने उन पुराने जिलों के कलेक्टरों को अपीलीय अधिकारी के पद से मुक्त कर दिया है, जिनकी सीमाओं से इन नए जिलों का गठन किया गया था. यह एक स्पष्ट प्रशासनिक विभाजन है जो चुनावी प्रबंधन में स्पष्टता लाएगा.

जानें कलेक्टरों को क्या अधिकार मिले

अपीलीय अधिकारी का काम क्या होता है? चुनाव आयोग द्वारा कलेक्टरों को अपीलीय अधिकारी के रूप में मान्यता देना बेहद महत्वपूर्ण है. अपीलीय अधिकारी का पद चुनाव प्रक्रिया में एक निर्णायक भूमिका निभाता है. मतदाता सूची में नाम जोड़ने, हटाने या किसी भी तरह के संशोधन से जुड़ी शिकायतों और आपत्तियों पर सुनवाई और निर्णय लेने का अधिकार इन्हीं अधिकारियों के पास होता है. इससे स्थानीय स्तर पर मतदाताओं की समस्याओं का समाधान तेजी से और प्रभावी तरीके से हो पाएगा.

चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार, अब मऊगंज के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी, मऊगंज और देवतालाब विधानसभा क्षेत्र के लिए अपीलीय अधिकारी होंगे. पांढुर्णा के कलेक्टर, पांढुर्णा और सौंसर विधानसभा क्षेत्र के लिए अपीलीय अधिकारी नियुक्त किए गए हैं. वहीं, मैहर के कलेक्टर को अमरपाटन और मैहर विधानसभा सीट के लिए अपीलीय अधिकारी के अधिकार दिए गए हैं. यह बदलाव सीधे तौर पर चुनाव प्रबंधन और मतदाता संबंधी सेवाओं को इन नए जिलों के स्थानीय प्रशासन के सीधे नियंत्रण में लाएगा.

पुराने जिलों के कलेक्टरों से वापस लिए गए अधिकार

इस नई व्यवस्था के तहत, जिन पुराने जिलों की सीमाओं से ये नए जिले बनाए गए थे, उनके कलेक्टरों से संबंधित विधानसभा सीटों के लिए अपीलीय अधिकारी के अधिकार वापस ले लिए गए हैं.

  • अब तक सतना जिले के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी मैहर और अमरपाटन विधानसभा सीट के लिए अपीलीय अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे, लेकिन अब यह शक्ति उनसे वापस ले ली गई है.
  • इसी तरह, रीवा के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी मऊगंज और देवतालाब विधानसभा सीट के लिए अपीलीय अधिकारी के पावर रखते थे, जो अब मऊगंज कलेक्टर को मिल गए हैं.
  • और छिंदवाड़ा के कलेक्टर से सौंसर और पांढुर्णा विधानसभा सीट के लिए अपीलीय अधिकारी के अधिकार वापस ले लिए गए हैं, जो अब पांढुर्णा कलेक्टर के पास होंगे.

चुनाव आयोग ने नए जिलों को मान्यता कैसे दी?

चुनाव आयोग ने इस संबंध में अपनी तरफ से स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं. आयोग के सचिव सुमन कुमार दास ने इसका आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी किया है. इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस निर्देश के आधार पर अपना नोटिफिकेशन जारी कर दिया है, जिससे यह व्यवस्था प्रदेश भर में लागू हो गई है. यह दर्शाता है कि केंद्र और राज्य के बीच चुनाव संबंधी मामलों में कितना सुव्यवस्थित समन्वय होता है, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत किया जा सके.

कलेक्टरों को क्यों नहीं मिले थे अधिकार?

मऊगंज कलेक्टर को पहले कौन से अधिकार नहीं थे? यह समझना जरूरी है कि इन नए जिलों को तुरंत ही ये अधिकार क्यों नहीं दिए गए थे. विधानसभा चुनाव 2023 से ठीक पहले इन नए जिलों - मऊगंज, पांढुर्णा और मैहर का गठन तो कर दिया गया था और इनमें कलेक्टरों की पोस्टिंग भी हो गई थी. हालांकि, तब चुनाव आयोग ने इन्हें जिला निर्वाचन अधिकारी के पूरे अधिकार नहीं दिए थे, क्योंकि प्रशासनिक और चुनावी प्रक्रियाओं को पूरी तरह से नए ढांचे में ढालने में समय लगता है.

इस कारण, इन तीनों ही नए जिलों के कलेक्टरों को चुनाव संबंधी प्रक्रियाएं पूरी कराने के बाद भी रीवा, सतना और छिंदवाड़ा के अपने पुराने जिला मुख्यालयों के कलेक्टरों को जानकारी देनी पड़ रही थी. यही स्थिति 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी बनी रही थी, जहां चुनाव आयोग सारे पत्राचार सीधे पुराने जिलों के कलेक्टरों से ही कर रहा था. इस वजह से चुनाव प्रबंधन में कुछ जटिलताएं और समन्वय संबंधी चुनौतियां आ रही थीं.

मध्य प्रदेश में नए जिले क्यों बनाए गए?

नए जिलों का गठन आमतौर पर प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, शासन को लोगों के करीब लाने और विकास कार्यों को तेज करने के उद्देश्य से किया जाता है. बड़े जिले होने पर दूर-दराज के इलाकों में प्रशासन की पहुंच कम हो जाती है, जिससे लोगों को अपने काम के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. नए जिले बनाने से प्रशासनिक इकाइयां छोटी हो जाती हैं, जिससे स्थानीय समस्याओं का समाधान जल्दी हो पाता है और सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लोगों तक पहुंचता है. चुनाव के संदर्भ में भी, जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टरों को पूरा अधिकार मिलने से मतदाता संबंधी कार्य और शिकायत निवारण अधिक सुगम हो जाएगा.

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