मध्यप्रदेश में एफडीआर तकनीक से बनाई गई पहली सड़क के डेढ़ माह में ही उड़ गए परखच्चे

MP News: एमपी के सीहोर में फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (एफडीआर) तकनीक से प्रदेश की पहली सड़क का निर्माण कराया गया था। इस सड़क के डेढ़ माह में ही परखच्चे उड़ गए।

Update: 2023-06-25 09:15 GMT

एमपी के सीहोर में फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (एफडीआर) तकनीक से प्रदेश की पहली सड़क का निर्माण कराया गया था। इस सड़क के डेढ़ माह में ही परखच्चे उड़ गए। सीहोर से श्यामपुर तक बनाई गई यह सड़क क्षतिग्रस्त हो गई। जबकि दावा किया गया था कि इस सड़क की मजबूती दोगुना है। सीहोर से श्यामपुर तक 24.30 किलोमीटर लंबी और 6 मीटर चौड़ी इस सड़क का निर्माण एफडीआर तकनीक से किया गया था। कलेक्टर प्रवीण सिंह का कहना है कि सड़क क्षतिग्रस्त होने की सूचना मिली है। जिस पर सड़क को ठीक कराने के निर्देश दिए गए हैं।

29 करोड़ आई थी लागत

एफडीआर तकनीक का इस्तेमाल कर प्रदेश की पहली सड़क का निर्माण सीहोर से श्यामपुर तक कराया गया था। डेढ़ माह पूर्व इस सड़क का निर्माण कार्य चंडीगढ़ की गर्ग संस ई स्टेट प्रोमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया गया था। जिसमें 29 करोड़ रुपए की लागत आई थी। इस सड़क में मई माह के पहले सप्ताह में यातायात प्रारंभ किया गया था। डेढ़ माह के दौरान ही यह सड़क जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो गई है। पेट्रोल पंप के सामने पुलिया और निपानिया जोड़ के पास सड़क धंस भी गई है। गर्ग संस ई-स्टेट प्रोमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड के सहायक अभियंता (एई) प्रशांत गुप्ता का कहना है कि सड़क ज्यादा खराब नहीं हुई है। जहां खराब हुई है वहां सुधार किया जा रहा है।

क्या है एफडीआर तकनीक

एफडीआर तकनीक एक रिसाइकिलिंग पद्धति है। जिसके माध्यम से बहुत ही कम संसाधनों में टिकाऊ सड़कें बनाई जा सकती हैं। इस पद्धति में खराब हो चुकी सड़क को उखाड़कर उससे निकलने वाले मटेरियल में केमिकल मिलाकर नया मटेरियल बनाया जाता है जिसको सड़क बनाने में उपयोग किया जाता है। इसके पश्चात हवा के प्रेशर से सड़क की धूल को अच्छी तरह से साफ करने के बाद उस पर फैब्रिक कपड़े को बिछाया जाता है ताकि वह नमी सोख ले। डामर का छिड़काव करने के बाद फिर मटेरियल डालकर रोलर घुमाया जाता है। सामान्य तकनीक से 6 मीटर चौड़ी और एक किलोमीटर लंबी सड़क बनाने में करीब सवा करोड़ रुपए का खर्च जाता है। जबकि फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (एफडीआर) पद्धति से सड़क बनाने में 40 से 50 प्रतिशत तक लागत आती है। इसके साथ ही यह सड़क टिकाऊ भी रहती है।

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