ज्योतिरादित्य का शिवराज सरकार में दिखने लगा असर, ठीक ऐसा राजमाता का कांग्रेस सरकार में था

शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल में भी होगा सिंधिया का दखलभोपाल। मध्य प्रदेश में इतिहास खुद को दोहरा रहा है। करीब 52 वर्ष पहले द्वारिका प्रसाद मि

Update: 2021-02-16 06:18 GMT

शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल में भी होगा सिंधिया का दखल

भोपाल। मध्य प्रदेश में इतिहास खुद को दोहरा रहा है। करीब 52 वर्ष पहले द्वारिका प्रसाद मिश्र की कांग्रेसी सरकार गिराने के बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने गोविंद नारायण सिंह की सरकार में जिस तरह अपना असर कायम किया, अब शिवराज सरकार में वही असर राजामाता के पौत्र व पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का दिखने लगा है। शुरुआत सिंधिया के पसंदीदा अफसर की तैनाती से हुई है और यह संकेत हैं कि उनके इलाकों में उनकी मर्जी के ही अफसर तैनात होंगे। कमल नाथ ने सिंधिया से तकरार बढ़ने के बाद उनके चहेते अफसर ग्वालियर नगर निगम के आयुक्त संदीप माकिन को हटा दिया था। शिवराज सरकार ने संदीप को फिर ग्वालियर में ही तैनाती दे दी है।

इसके अलावा सिंधिया के खिलाफ चल रही आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) जांच का नेतृत्व करने वाले प्रभारी डीजी सुशोभन बनर्जी को भी हटाकर साइड लाइन करते हुए सागर भेज दिया गया है। कमल नाथ सरकार ने सत्त्ता का संग्राम शुरू होते ही ग्वालियर और गुना के कलेक्टर को भी हटा दिया था। कोरोना संकट के चलते अभी कुछ फैसले होने बाकी हैं। इन जिलों में भी सिंधिया की मर्जी से ही तैनाती होनी है। यही वजह है कि हाशिए पर चल रहे अफसर अब सिंधिया के करीबियों से संपर्क साधकर अपनी पसंदीदा जगह पाने के जुगाड़ में सक्रिय हो गए हैं।

मंत्रिमंडल विस्तार में भी सिंधिया की चलेगी 

कोरोना संकट के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कह दिया है कि अभी मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं होगा। पर जब भी मंत्रिमंडल का गठन होगा तो कांग्रेस से बगावत कर शिवराज सरकार के गठन में सहयोग करने वाले पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों की किस्मत का भी ताला जरूर खुलेगा। इनकी किस्मत की चाबी सिंधिया के ही हाथ में है। भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि पार्टी ने जो भी संकल्प किया है, उसे पूरा करेगी।

राजमाता की फाइल पर मचा था बवाल

राजामाता विजयाराजे सिंधिया ने जब 1967 में डीपी मिश्र की सरकार गिराकर गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवाया, तब सरकार में उनके दूत के रूप में सरदार आंग्रे पैरवी करते थे। गोविंद सिंह राजमाता की सभी बातें मानते थे, लेकिन इस बीच सरदार आंग्रे का भी हस्तक्षेप बढ़ने लगा और वह मनमानी करने लगे। इससे गोविंद सिंह खफा रहने लगे। एक बार राजमाता की फाइल पर गोविंद नारायण ने लिख दिया- ऐसी की तैसी। इसके बाद जबर्दस्त हंगामा मचा। चर्चा होने लगी कि मुख्यमंत्री ने राजमाता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। बाद में गोविंद नारायण सिंह ने राजमाता को सफाई दी कि मेरे लिख्ाने का मतलब - यथा प्रस्तावित है।

Similar News