दिवाली में जो पटाखे फोड़ने का मजा अलग है, कभी सोचा है दुनिया में सबसे पहले किसने पटाखे फोड़े थे

दिवाली तो दीपों का त्यौहार है फिर इसमें पटाखे कब से फोड़े जाने लगे।

Update: 2021-11-02 09:58 GMT

भारत त्योहारों का देश है और सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली है। दिवाली के दिन गलियों में पटाखों की गूंज और आसमान में आतिशबाज़ी के रंग इस त्यौहार को और भी खूबसूरत बना देते हैं. आपने भी पटाखों और आतिशबाज़ी का खूब मजा लूटा होगा लेकिन इस मजे के पीछे कभी इसके इतिहास के बारे में सोचा है ? कहने का मतलब है कि क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ये पटाखे का अविष्कार किसने किया, दुनिया में सबसे पहला पटाखा कहां फूटा था ? आज हम आपको एक ऐसा दिलचप्स किस्सा बताने जा रहे हैं जिससे इन सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा। 

कहाँ से हुई पटाखों की शुरुआत 


पटाखों की शुरुआत को लेकर कई तरह की कहानियां है जिनमे से सबसे ज़्यादा प्रचलित और सच माने जाने वाली एक कहानी है। ऐसा बताया जाता है कि असल में पटाखों की शुरुआत चीन देश से हुई। करीब छठी सदी के दौरन ही पटाखे का अविष्कार हुआ। ऐसा कहा जाता है कि पटाखे का अविष्कार एक गलती से हुआ। उस समय एक रसोईया रसोई में खाना पका रहा था, उससे गलती से सॉल्ट पिटर जिसे पोटेशियम नाइट्रेट के नाम से जाना जाता है उसे उसने आग में फेंक दिया था। ऐसा करने के बाद आग से रंगीन लपटें निकली थी। और जब रसोइए ने इसके साथ कोयला और सल्फर का पाउडर आग में डाला तो काफी तेज़ धमाका हुआ। इसी तरह बारूद का अविष्कार हुआ था। और उसके बाद उनके पटाखों के रूप में बेचा जाने लगा। 

इस कहानी में भी एक टिवस्ट है 

कुछ लोगों का कहना है पटाखें की खोज एक रसोइये के हाथों हुई तो कोई कहता है पहला पटाखा चीनी सैनिक  ने बनाया था। जिसने बारूद को बांस में भरकर उसमे आग लगाई तो धमाका हुआ था।  भाई पटाखे की खोज रसोइये ने की या सैनिक ने इतना तो कन्फर्म है की पटाखा की शुरुआत चीन से हुई। 

भारत में भी इतिहास पुराना है 


पंजाब यूनिवर्सिटी के  हिस्ट्री विषय के प्रोफ्रेसर राजीव लोचन का कहना है कि भारत में 15 वीं सदी से पटाखों की शुरआत हुई थी। इसका प्रमाण उस सदी की पेंटिंग्स में देखने को मिलता है जिसमे बने लोग आतिशबाज़ी कर रहे हैं। पहले पटाखों का इस्तेमाल शादी ब्याह में किया जाता था और जंग में दुश्मनो को भगाने के लिए भी बारूद का इस्तेमाल किया जाता था। धीरे धीरे लोग पटाखों का इस्तेमाल हर ख़ुशी के माहौल में करने लगे और दीपावली में भी पटाखे और आतिशबाज़ी का इस्तेमाल होने लगा। 


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