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ज्ञानवापी का इतिहास: अपने भोले बाबा का 350 सालों से इंतज़ार कर रहे नंदी की कहानी जानिए

ज्ञानवापी का इतिहास: अपने भोले बाबा का 350 सालों से इंतज़ार कर रहे नंदी की कहानी जानिए
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History of Gyanvapi Masjid: मुझे तो मरना है पर आपका तप बड़ा है, आपको सदियों तक इंतज़ार करना है, यह कहते हुए पुजारी ने शिवलिंग उठाकर ज्ञानवापी तालाब नुमा कुँए में छलांग लगा दी थी

ज्ञानवापी मस्जिद का असली इतिहास: वाराणसी में इतिहास से भी पुराने बाबा विश्वनाथ मंदिर और उसी मंदिर में बना विवादित ढांचा जिसे लोग ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं इस समय बहुत चर्चित विषय बना हुआ है. अपने बाबा का 350 साल से इंतज़ार कर रहे नंदी की कहानी भी सोशल मिडिया में बताई जा रही है. आज हम आपको ज्ञानवापी मस्जिद का असली इतिहास बताने जा रहे हैं. कुछ लोगों के लिए इसे स्वीकार करना मुश्किल होगा लेकिन इतिहास को कितना भी बदल दिया जाए एक न एक दिन सच सामने निकलकर आ ही जाता है.

Real History of Gyanvapi Masjid In Hindi: बात है आज से 353 साल पहले की, काशी में मौजूद बाबा विश्वनाथ मंदिर को इससे पहले कई बार इस्लामिक आक्रांता तोड़ चुके थे और मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हो चुका था. लेकिन इस बार विदेशी इस्मालिक आतंकी जिसे भारत में तथाकथित राष्ट्रनिर्माता की संज्ञा दी जाती है उसने बाबा विश्वनाथ मंदिर को निस्तेनाबूत कर देने के लिए आतंकियों की सेना भेज दी थी।

हम बात कर रहे हैं इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब की. हां वो कोई राष्ट्रनिर्माता नहीं सिर्फ और इस गजवा-ए-हिन्द की मजहबी विचारधारा वाला एक विदेशी आतंकी था जो सनातनी भारतवर्ष में इस्लामिक परचम फेहरा देना चाहता था.

औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर कब हमला किया था


When did Aurangzeb attack the Kashi Vishwanath temple: 18 अप्रैल 1669 के दिन मुग़लिया आतंकी औरंगजेब ने काशी में मौजूद प्राचीन विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था. उसकी आतंकी सेना ने पूरे मंदिर को ध्वस्त कर दिया था. लेकिन औरंगजेब की सेना न तो बाबा विश्वनाथ शिवलिंग का कुछ बिगाड़ पाई और न ही बाबा के प्रिय भक्त नंदी को नुकसान पहुंचा सकी.


औरंगजेब की सेना ने स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा पाई थी, लेकिन बहार मौजूद नंदी की प्राचीन प्रतिमा को तोड़ने के लिए उनके पर कई बार प्रहार किया गया, खूब हथोड़े चलाए लेकिन नंदी की प्रतिमा को तोड़ नहीं पाए.


जब नंदी की प्रतिमा को तोड़ पाने में मुगल सेना विफल रही तो वह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की तरफ बढ़ी. हमलावरों को आते देख, विश्वनाथ मंदिर के महंत ने शिवलिंग को उठाया और ज्ञानवापी कुएं में कूद गए. ऐसा कहा जाता है जब महंत शिवलिंग को लेकर कुएं में छलांग लगा रहे थे तब उन्होंने नंदी महाराज के कान में जाकर कहा था

"बाबा मुझे तो मरना है, लेकिन आपका तप बड़ा है. आपको सदियों तक इंतज़ार करना है" यह कहकर पंडित ने ज्ञानवापी कुँए में छलांग लगा दी थी.

बाबा के लिए नंदी के 350 साल तक इंतज़ार करने की कहानी

महंत तो शिवलिंग को बचाने के लिए कुँए में कूद गए, लेकिन बाबा के प्रिय भक्त नंदी महाराज अपने बाबा के वापस आने का इंतज़ार करते रहे, कब वो घडी आएगी और उन्हें बाबा के दर्शन होंगे। औरंगजेब ने बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. नींव और दीवारें तो मंदिर की थीं लेकिन ऊपरी गुंबद मस्जिद का था.

समय बीतता गया, मंदिर का हिस्सा अलग हो गया, मस्जिद अलग हो गई. 353 सालों से नंदी मस्जिद की तरफ मुंह किए बैठे रहे. अब ज्ञानवापी कुंड तो काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का हिस्सा बन गया है. लेकिन बाबा अभी भी उसी कुंड में समाए हुए हैं.

ज्ञानवापी मस्जिद में श्रृंगार गौरी का मंदिर है

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने का मामला: जिस मस्जिद में मुसलमान नमाज़ अदा करने जाते हैं वो असल में प्राचीन मंदिर है, जहां स्वयंभू शिवलिंग तो है ही साथ माँ श्रृंगारगौरी मंदिर है. जहां हिन्दुओं को सिर्फ एक दिन जाने की इजाजत मिलती है. देश का कानून और संविधान हिन्दुओं को अपने भगवान के रोज़ दर्शन करने की इजाजत नहीं देता है. विवाद यहीं से उत्पन्न हुआ था हाल ही में 5 महिलाओं ने कोर्ट में याचिका लगाई कि उन्हें रोज़ माँ श्रृंगारगौरी के दर्शन करने की अनुमति चाहिए, और ज्ञानवापी मस्जिद में हिन्दू-देव-दवाओं की प्रतिमाएं हैं यह दावा किया। तभी वाराणसी कोर्ट ने वीडियो सर्वे टीम का गठन किया और 16 मई को हिंदू पक्ष ने दावा किया कि उन्हें कुँए में प्राचीन शिवलिंग मिल गया है. वही शिवलिंग जिसका नंदी महाराज 353 सालों से इंतज़ार कर रहे थे.

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बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुराना नक्शा: ये नक्शा प्राचीन बाबा विश्वनाथ मंदिर का, वास्तुकला का शानदार उदाहरण है. जो कहते हैं मुग़ल राष्ट्रनिर्माता थे उन्होंने कई आर्किटेक्चर बनाए हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि मुगल सिर्फ तोडना जानते थे, उनकी इतनी औकात नहीं थी के वो कुछ नया निर्माण कर सकें। मंदिर को तोड़कर उसमे गुंबद लगा देना ही बस उन्हें आता था. इस नक़्शे की तस्वीर लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में मौजूद है, जिसे जेम्स प्रिंसेप से बनाया था.

नंदी बाबा की पुरानी तस्वीर:


यह तस्वीर साल 1890 में ली गई थी. जहां ज्ञानवापी कुंड के बगल में बैठे नंदी और उनके बगल में मौजूद मंदिर में एक पुजारी बैठे हुए हैं

ज्ञानवापी कुएं की तस्वीर:


यह तस्वीर ज्ञानवापी कुंए या कुंड की है. जिसे साल 1990 में कैद किया गया था. नंदी महाराज और स्वयंभू शिवलिंग की काहनी का जिक्र जिक्र लंदन के के एम ए शेरिंग की किताब 'सेक्रेड सिटी आफ द हिंदूज' में भी है।

काशी विश्वनाथ मंदिर को 4 बार तोडा गया और 5 बार निर्माण हुआ. बाबा विश्वनाथ मंदिर का पूरा इतिहास जानने के लिए यहां क्लिक करें

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