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ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद: ज्ञानवापी का इतिहास जानने से सब क्लियर हो जाएगा

ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद: ज्ञानवापी का इतिहास जानने से सब क्लियर हो जाएगा
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Gyanvapi Temple or Mosque: ज्ञानवापी का इतिहास (History Of Gyanwapi Hindi) जानिए ज्ञानवापी की कहानी (Story Of Gyanwapi) जानिए फिर किसी कनक्यूजन में आईये

Gyanwapi Mandir Hai Ya Masjid: उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो ज्ञानवापी विवाद (Gyanwapi Controversy) पर अपना मत रख दिया है. उनका कहना है कि ज्ञानवापी को मस्जिद बोलोगे तो विवाद होगा। अब Yogi Adityanath के बयान को लेकर घमासान मच गया है. मुस्लिम पक्ष है कि इस बात को स्वीकार करना ही नहीं चाहता है कि ज्ञानवापी मंदिर है ना की मस्जिद, ज्ञानवापी पहले मंदिर था और अब मस्जिद। यहां तक कि ASI के पूर्व अधिकारी KK Muhammad भी यह कह चुके हैं कि मुसलमानों को कृष्ण जन्मभूमि और ज्ञानवापी को हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए।

सवाल ये है कि ज्ञानवापी मंदिर था तो मस्जिद कैसे बन गया? (If Gyanvapi was a temple then how did it become a mosque). इसका जवाब आपको यहां मिलेगा और जरूर मिलेगा। लेकिन इसके लिए आपको ज्ञानवापी का इतिहास (History Of Gyanwapi In Hindi) ज्ञानवापी की कहानी (Story Of Gyanwapi In Hindi) को भी अच्छे से समझना होगा

ज्ञानवापी का इतिहास

Gyanwapi Ka Itihas: बात आज से 350 वर्ष पुरानी है. तब भारत में इस्लामिक आक्रांताओं की हिन्दुओं और हिन्दू धार्मिक स्थानों के प्रति नफरत चरम पर थी. इससे पहले भी काशी विश्वनाथ के भव्य मंदिर को कई इस्लामिक आक्रांता तोड़ चुके थे और उसका कई बार पुनर्निर्माण भी हो चुका था.

तभी औरंगजेब को दिल्ली की सल्तनत हासिल हो गई. उसने काशी विश्वनाथ मंदिर को पूरी तरह नष्ट करने का फरमान जारी कर दिया। गजवा-ए-हिंद की विचारधारा वाला औरंगजेब कई मंदिरों को तोड़ चुका था और अब इस बार उसके निशाने पर बाबा विश्वनाथ धाम था.

औरंगजेब सनातनी भारतवर्ष में इस्लाम का परचम फहराने के लिए धार्मिक स्थानों को इसी लिए तोड़ता था ताकि वो यह साबित कर सके कि हिन्दुओं के देवताओं में इतनी शक्ति नहीं है कि वो उन्हें यहां आकर बचा सकें।

18 अप्रैल 1669 के दिन औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया, मुग़लिया आतंकी सेना ने पूरे मंदिर को ध्वस्त कर दिया लेकिन औरंगजेब की सेना ना तो बाबा विश्वनाथ शिवलिंग का कुछ बिगाड़ पाई और ना ही नंदी को नुकसान पहुंचा सकी

औरंगजेब की सेना ने स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा पाई थी, लेकिन बहार मौजूद नंदी की प्राचीन प्रतिमा को तोड़ने के लिए उनके पर कई बार प्रहार किया गया, खूब हथोड़े चलाए लेकिन नंदी की प्रतिमा को तोड़ नहीं पाए.

जब नंदी की प्रतिमा को तोड़ पाने में मुगल सेना विफल रही तो वह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की तरफ बढ़ी. हमलावरों को आते देख, विश्वनाथ मंदिर के महंत ने शिवलिंग को उठाया और ज्ञानवापी कुएं में कूद गए. ऐसा कहा जाता है जब महंत शिवलिंग को लेकर कुएं में छलांग लगा रहे थे तब उन्होंने नंदी महाराज के कान में जाकर कहा था

"बाबा मुझे तो मरना है, लेकिन आपका तप बड़ा है. आपको सदियों तक इंतज़ार करना है"
यह कहकर पंडित ने ज्ञानवापी कुँए में छलांग लगा दी थी.

महंत तो शिवलिंग को बचाने के लिए कुँए में कूद गए, लेकिन बाबा के प्रिय भक्त नंदी महाराज अपने बाबा के वापस आने का इंतज़ार करते रहे, कब वो घडी आएगी और उन्हें बाबा के दर्शन होंगे।

ज्ञानवापी मंदिर से मस्जिद कैसे बन गई

औरंगजेब ने बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. नींव और दीवारें तो मंदिर की थीं लेकिन ऊपरी गुंबद मस्जिद का था. समय बीतता गया, मंदिर का हिस्सा अलग हो गया, मस्जिद अलग हो गई. 353 सालों से नंदी मस्जिद की तरफ मुंह किए बैठे रहे. अब ज्ञानवापी कुंड तो काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का हिस्सा बन गया है. लेकिन बाबा अभी भी उसी कुंड में समाए हुए हैं.

ज्ञानवापी मस्जिद में श्रृंगार गौरी का मंदिर है ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने का मामला: जिस मस्जिद में मुसलमान नमाज़ अदा करने जाते हैं वो असल में प्राचीन मंदिर है, जहां स्वयंभू शिवलिंग तो है ही साथ माँ श्रृंगारगौरी मंदिर है. जहां हिन्दुओं को सिर्फ एक दिन जाने की इजाजत मिलती है. देश का कानून और संविधान हिन्दुओं को अपने भगवान के रोज़ दर्शन करने की इजाजत नहीं देता है.

ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर

इतनी कहानी पढ़ने के बाद भी अगर आपको यह समझ में नहीं आया है कि ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद तो आप ASI रिपोर्ट पढ़ लें. जिसमे बताया गया है कि ज्ञानवापी के अंदर दीवारों में त्रिशूल, स्वस्तिक, ॐ के चिन्ह है. और इसपर भी भरोसा नहीं है तो स्वयं बाबा विश्वनाथ जाएं और बगल में मौजूद ज्ञानवापी के पिछले हिस्से को देखें। तब भी ना समझ में आए तो अपनी आंखे ठीक कराने के लिए अच्छे डॉक्टर के पास जाएं और अगर डॉक्टर के पास नहीं जाना है तो अपने बाबा का 350 साल से इंतजार कर रहे नंदी की कहानी यहां पढ़ें



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