सतना के पूर्व भाजपा विधायक शंकरलाल तिवारी का निधन: दिल्ली के AIIMS में ली अंतिम सांस, जनसेवा और सादगी की मिसाल थे
सतना विधानसभा के पूर्व विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता शंकरलाल तिवारी का निधन हो गया। वे अपनी सादगी, जनसेवा और बेबाक नेतृत्व के लिए जाने जाते थे। जानिए उनके जीवन, राजनीतिक सफर और योगदान के बारे में विस्तार से।;
मुख्य बातें (Top Highlights)
- पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी का 72 वर्ष की आयु में निधन।
- अचानक तबियत बिगड़ने के बाद AIIMS दिल्ली में चल रहा था इलाज।
- तीन बार सतना विधानसभा से विधायक रह चुके थे।
- सादगी, जनसेवा और बेबाक स्वभाव के लिए थे प्रसिद्ध।
पूर्व सतना विधायक शंकरलाल तिवारी का निधन, विंध्य में शोक की लहर | Former Satna MLA Shankarlal Tiwari Passed Away
सतना। मध्य प्रदेश की राजनीति को गहरा झटका लगा है। वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी का रविवार को निधन हो गया। अचानक तबियत बिगड़ने पर पहले उन्हें सतना जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ डॉक्टरों ने सोडियम की कमी बताई। हालत नाजुक होने पर उन्हें एयर एम्बुलेंस से AIIMS दिल्ली भेजा गया, लेकिन वहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 72 वर्ष के थे और अपने पीछे पत्नी, तीन बेटे और एक बेटी का परिवार छोड़ गए हैं।
राजनीति में सादगी और समर्पण का उदाहरण | A Symbol of Simplicity and Dedication in Politics
शंकरलाल तिवारी अपने बेबाक स्वभाव और सादगी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना, न कि सत्ता का साधन। 2003, 2008 और 2013 में वे सतना विधानसभा से विधायक चुने गए। इससे पहले 1998 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। उनके समर्थक बताते हैं कि वे जनता से हमेशा जुड़े रहे और गरीबों की आवाज बनकर खड़े रहे।
पत्रकारिता से राजनीति तक का सफर | From Journalism to Politics
राजनीति में आने से पहले शंकरलाल तिवारी एक सक्रिय पत्रकार थे। उन्होंने “बेधड़क भारत” नाम से साप्ताहिक अखबार निकाला और स्थानीय मुद्दों को आवाज दी। उनके पत्रकारिता अनुभव ने उन्हें जनता की नब्ज समझने में मदद की। 1998 में उन्होंने लोकतांत्रिक भाजपा पार्टी की भी स्थापना की थी। आपातकाल के दौरान वे मीसाबंदी के तहत 19 महीने जेल में भी रहे, जो उनके संघर्षशील व्यक्तित्व का प्रमाण है।
चकदही गांव से निकला जननायक | The People’s Leader from Chakdahi Village
8 अप्रैल 1953 को जन्मे शंकरलाल तिवारी का पैतृक गांव चकदही है। बचपन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे और युवा उम्र में ही एक बेबाक नेता के रूप में पहचान बनाई। आपातकाल के दौरान जेल जाने के बाद वे और अधिक सक्रिय हो गए और भाजपा की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने में जुट गए। सतना के सुभाष चौक स्थित उनके घर में आज शोक का माहौल है। पत्नी सुषमा तिवारी, तीन बेटे राजनारायण, आशीष व पुनीत साथ में रहते हैं। एक बेटी विजयश्री हैं।
जनसेवा ही जीवन का लक्ष्य | Public Service as a Mission
शंकरलाल तिवारी का जीवन गरीबों और वंचितों के लिए समर्पित रहा। वे हमेशा कहते थे, “जनता ही मेरी ताकत है।” उन्होंने सादगी को कभी नहीं छोड़ा—न कोई दिखावा, न कोई प्रोटोकॉल। उन्होंने राजनीति में रहकर भी हमेशा खुद को आमजन से जोड़े रखा। उनके निधन से सतना ही नहीं, पूरे विंध्य क्षेत्र में शोक की लहर है।
सतना ने खोया अपना सच्चा लाल | Satna Lost Its True Son
आज सतना ने अपने सच्चे लाल को खो दिया है। उनका जीवन एक प्रेरणा की कहानी है—फर्श से अर्श तक, संघर्ष से सम्मान तक। शंकरलाल तिवारी की खामोश विदाई एक युग का अंत है, लेकिन उनकी सोच, सादगी और जनता के प्रति समर्पण हमेशा जिंदा रहेगा। प्रदेश के कई नेताओं ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
FAQs: शंकरलाल तिवारी से जुड़े प्रमुख सवाल और जवाब
शंकरलाल तिवारी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उनका जन्म 8 अप्रैल 1953 को चकदही गांव (सतना) में हुआ था।
शंकरलाल तिवारी ने किन-किन सालों में विधायक के रूप में सेवा दी?
उन्होंने 2003, 2008 और 2013 में सतना विधानसभा से विधायक के रूप में कार्य किया।
शंकरलाल तिवारी किस राजनीतिक दल से जुड़े थे?
वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े थे और कई बार पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी मृत्यु का कारण क्या बताया गया?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें सोडियम की कमी और स्वास्थ्य जटिलताओं के कारण दिल्ली के AIIMS में भर्ती कराया गया था, जहाँ उनका निधन हो गया।
सतना की राजनीति में उनका क्या योगदान रहा?
उन्होंने हमेशा जनसेवा को प्राथमिकता दी और गरीब वर्ग की आवाज बने। उनकी स्पष्टवादिता और सादगी ने उन्हें जननायक बना दिया।