रीवा का नामकरण: नर्मदा से 'रेवा पत्तन' तक की ऐतिहासिक यात्रा, सदियों पुराना रहस्य सुलझा
क्या रीवा का नाम नर्मदा नदी से पड़ा? पुरातत्व, भाषा और भूगोल की परतों से जुड़ी गाथा जो बताती है — ‘रेवा पत्तन’ से ‘रीवा’ तक की कहानी।
मध्य प्रदेश के गौरवशाली शहर रीवा का नाम कैसे पड़ा, यह प्रश्न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर स्थानीय निवासी के लिए सदियों से एक गहरा कौतूहल रहा है। अब तक चली आ रही सरल मान्यताओं से परे, एक गहन विश्लेषण और पुख्ता ऐतिहासिक, भाषाई व भौगोलिक तथ्यों के आधार पर इस नामकरण के पीछे की जटिल और बहुआयामी कहानी सामने आई है। यह कहानी हमें बताती है कि रीवा का नामकरण केवल नर्मदा नदी से जुड़े एक सतही संबंध का परिणाम नहीं है, बल्कि यह अनेक कालखंडों, भाषाओं और संस्कृतियों के जटिल समन्वय का प्रतिफल है।
नर्मदा से संबंध की प्रचलित अवधारणा: क्या यह एक अधूरा सत्य है?
रीवा के नामकरण को लेकर सबसे व्यापक रूप से प्रचलित और स्वीकार्य धारणा यह रही है कि इसका नाम पवित्र नर्मदा नदी के कारण पड़ा है, जिसे प्राचीन पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में 'रेवा' के नाम से संबोधित किया गया है। यह मान्यता पीढ़ियों से चली आ रही है और स्थानीय लोककथाओं में भी गहरे तक समाई हुई है।
हालांकि, नए विश्लेषण इस सरल व्याख्या पर एक महत्वपूर्ण प्रश्नचिह्न लगाते हैं। शोधकर्ताओं ने तर्क दिया है कि नर्मदा नदी रीवा रियासत के दक्षिणी छोर से केवल लगभग 40 किलोमीटर की एक सीमित दूरी तक ही बहती थी। यह तथ्य एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: क्या किसी क्षेत्र के इतने छोटे से भौगोलिक संबंध के आधार पर ही उसके सबसे महत्वपूर्ण शहरी केंद्र का नामकरण कर दिया गया होगा? यह तर्क इस एकतरफा धारणा को चुनौती देता है और हमें रीवा के नामकरण की जड़ों को खंगालने के लिए अधिक गहरे ऐतिहासिक और भाषाई संदर्भों की ओर मुड़ने को विवश करता है।
बघेला राजवंश से पूर्व 'रीमा' का रहस्य और फारसी प्रभाव का आगमन
इतिहास के धूल भरे पन्नों को पलटने पर एक बेहद महत्वपूर्ण जानकारी सामने आती है: बघेला राजवंश के संस्थापक राजा विक्रमादित्य के इस क्षेत्र में आगमन से भी बहुत पहले, इस स्थान को 'रीमा' या कभी-कभी 'रीमा मंडी' के नाम से जाना जाता था। फारसी भाषाओं में लिखे गए समकालीन और बाद के ग्रंथों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि राजा विक्रमादित्य को बांधवगढ़ के उत्तरी क्षेत्रों में 'रीमा मुकुंदपुर' नामक एक महत्वपूर्ण जागीर प्राप्त हुई थी। यह ऐतिहासिक तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि 'रीमा' शब्द का प्रयोग बघेला वंश के उदय और उनकी सत्ता स्थापित होने से भी बहुत पहले से इस क्षेत्र के लिए हो रहा था, जो नाम की प्राचीनता को बल देता है।
जैसे-जैसे भारतीय उपमहाद्वीप में फारसी भाषा और संस्कृति का प्रभाव बढ़ा, भाषाई उच्चारणों में भी परिवर्तन आने लगे। फारसी ग्रंथों में मूल 'रीमा' शब्द का उच्चारण बदलकर 'रीवा' के रूप में होने लगा। यह एक स्वाभाविक भाषाई विकास था जहाँ स्थानीय ध्वनियाँ नई भाषाई संरचनाओं के अनुकूल ढलती हैं।
इसके पश्चात, जब 18वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत में आए और उन्होंने प्रशासनिक तथा भाषाई व्यवस्था को अपने ढंग से ढालना शुरू किया, तो उन्होंने फारसी के 'रीवा' को अंग्रेजी में 'REWA' के रूप में लिखना शुरू किया। हालांकि, अंग्रेजी बोलने वालों के लिए 'REWA' का सही हिंदी उच्चारण कठिन था, और इसलिए उन्होंने इसे 'रेवा' (जैसा कि नर्मदा के संदर्भ में) उच्चारित करना शुरू कर दिया। इस प्रकार, 'रेवा' शब्द ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान व्यापक रूप से प्रचलित हो गया, जिससे एक भाषाई भ्रम की स्थिति भी बनी, जो आज तक कायम है।
'रेवा पत्तला' या 'रेवा पत्तन' की प्राचीन प्रशासनिक और सांस्कृतिक जड़ें
कुछ प्रमुख विद्वानों और गहन शोधकर्ताओं ने रीवा शब्द की जड़ों को और भी गहराई से खंगाला है। उनका मानना है कि 'रीवा' शब्द का मूल संबंध 'रेवा पत्तला' या 'रेवा पत्तन' जैसे प्राचीन भारतीय प्रशासनिक और भौगोलिक नामों से जुड़ा हो सकता है। 'पत्तन' या 'पत्तला' पूर्व मध्यकाल (लगभग 6वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी) में एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई हुआ करती थी। यह इकाई अक्सर कई ग्रामों के समूह को संदर्भित करती थी और इसका अपना एक प्रशासनिक केंद्र होता था।
कलचुरी राजवंश के प्राचीन अभिलेखों और शिलालेखों में 'रेवा पत्तला' सहित कई ऐसे पत्तनों का उल्लेख मिलता है। हालांकि, इन पत्तनों की सटीक भौगोलिक स्थिति हमेशा स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं की गई है, फिर भी 'रेवा पत्तला' का उल्लेख यह संकेत देता है कि इस नाम से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक या क्षेत्रीय इकाई इस क्षेत्र में मौजूद थी, जो रीवा के वर्तमान नाम का आधार बनी होगी। यह सिद्धांत रीवा के नाम को केवल एक प्राकृतिक विशेषता से नहीं, बल्कि एक प्राचीन प्रशासनिक और क्षेत्रीय पहचान से भी जोड़ता है, जो इसकी ऐतिहासिक गहराई को और बढ़ा देता है।
गुरगी का रेनुता दुर्ग और बिछिया नदी का संभावित योगदान
शोध ने रीवा के नामकरण के लिए एक और बेहद दिलचस्प और ठोस संभावना प्रस्तुत की है: 'रीमा' शब्द की उत्पत्ति रीवा पठार पर स्थित एक प्राचीन और महत्वपूर्ण नगर गुरगी में स्थित 'रेनुता' दुर्ग की याद से हो सकती है। यह ऐतिहासिक दुर्ग 11वीं शताब्दी में त्रिपुरी के शक्तिशाली कलचुरी वंश के राजा लक्ष्मीकरण द्वारा बनवाया गया था, जो उस समय के महत्वपूर्ण सामरिक महत्व को दर्शाता है।
इस सिद्धांत की मजबूती संस्कृत के 'रेवा' शब्द के अर्थ के विस्तार से आती है। संस्कृत में 'रेवा' का अर्थ केवल नर्मदा नदी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह किसी भी चंचल और निरंतर बहने वाली जलधारा को भी संदर्भित कर सकता है। यह एक महत्वपूर्ण भाषाई विस्तार है। 'रेनुता' दुर्ग से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बिछिया नदी बहती है, जो रीवा शहर के ठीक बीच से गुजरती है। इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि इसी बिछिया नदी को, उसकी निरंतर बहती प्रकृति के कारण, 'रेवा' कहा गया हो। यदि ऐसा था, तो उसके आसपास के क्षेत्र, जिसमें रेनुता दुर्ग भी शामिल था, को 'रेवा पत्तला' के रूप में जाना जाता होगा। यह 'रेवा पत्तला' या 'रेवा पत्तन' ही, समय के साथ, स्थानीय जनजातियों की देशज भाषाओं में 'रेहुता' के रूप में विकसित हुआ, और धीरे-धीरे 'रीमा' में बदल गया। यह भाषाई विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जहां स्थानीय उच्चारण और ध्वनियाँ मूल शब्दों को नया रूप देती हैं।
शब्दों की अद्भुत यात्रा: 'रेवा पत्तन' से आधुनिक 'रीवा' तक
इन सभी ऐतिहासिक, भाषाई और भौगोलिक कड़ियों को एक साथ जोड़ते हुए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि रीवा का नामकरण एक लंबी और बहुस्तरीय भाषाई यात्रा का परिणाम है। यह यात्रा 'रेवा पत्तन' या 'रेवा पत्तला' से शुरू हुई होगी, जिसने 'रेनुता' का रूप लिया। स्थानीय देशज भाषाओं में, यही 'रेनुता' धीरे-धीरे 'रीमा' के रूप में प्रचलित हुआ, जो बघेला राजाओं के आगमन से पूर्व भी इस क्षेत्र की पहचान था।
आगे चलकर, जब भारतीय उपमहाद्वीप में फारसी भाषा का प्रभुत्व बढ़ा, तो 'रीमा' फारसी में 'रीवा' बन गया, जो आज भी हिंदी में प्रचलित है। इसके बाद, जब अंग्रेज भारत में आए, तो उन्होंने फारसी के 'रीवा' को अंग्रेजी में 'REWA' के रूप में लिखा, जिसे वे अपने उच्चारण के अनुसार 'रेवा' कहते थे। अंततः, इन सभी ऐतिहासिक, भाषाई और सांस्कृतिक पड़ावों से गुजरते हुए, हमारा आज का 'रीवा' शहर अपनी एक विशिष्ट पहचान के साथ अस्तित्व में आया है।
यह गहन विश्लेषण रीवा के नामकरण को केवल एक भौगोलिक नाम से कहीं अधिक, इतिहास, भूगोल, भाषा विज्ञान और स्थानीय संस्कृति के एक जटिल, समृद्ध और गहरे संगम के रूप में प्रस्तुत करता है। यह कहानी रीवा की पहचान को एक नई गहराई प्रदान करती है और इसके गौरवशाली अतीत को समझने में हमारी मदद करती है।