रीवा में बोन मेरो ट्रांसप्लांट यूनिट स्थापित होगी, थैलेसीमिया बीमारी से मुक्ति मिल सकेगी

विंध्य के थैलेसीमिया मरीजों के लिए राहत भरी खबर, बोन मेरो ट्रांसप्लांट यूनिट के लिए शासन से स्वीकृति के लिए भेजा गया है प्रस्ताव। इंदौर मेडिकल कॉलेज में हो गई है शुरुआत, अब रीवा की है बारी।

Update: 2024-05-09 04:03 GMT

Bone Marrow Transplant Unit in Rewa: रीवा। थैलेसीमिया बीमारी से जूझ रहे विंध्य के मरीजों के लिए राहत भरी खबर है। जल्द ही उन्हें इस आनुवांशिक बीमारी से मुक्ति मिलने वाली है। जल्द ही रीवा मेडिकल कॉलेज में बोन मेरी ट्रांसप्लांट यूनिट की शुरुआत होने वाली है। फिर इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों का आपरेशन कम खर्च में यहीं पर हो जाएगा।

ज्ञात हो कि थैलेसीमिया (Thalassemia) एक आनुवांशिक बीमारी है। इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों को हर महीने ब्लड की जरूरत पड़ती है। साथ ही उनमें और भी कई साइड इफेक्ट भी आ जाते हैं। इसका भी इलाज कराना पड़ता है। रीवा में थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित मरीजों की संख्या काफी है। यह मरीज लंबे समय से जूझ रहे हैं। इलाज महंगा होने के कारण गरीब परिवार बच्चों को इस बीमारी से मुक्ति भी नहीं दिला पा रहे हैं। ऐसे में इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए राहत भरी खबर सामने आई है। संजय गांधी अस्पताल में जल्द ही बोनमेरो ट्रांसप्लांट यूनिट की स्थापना की जाएगी। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। शासन के पास प्रस्ताव भेज दिया गया है। कवायद जारी है। बोनमेरी ट्रांसप्लांट यूनिट शुरू होते ही थैलेसीमिया के मरीजों का आपरेशन यहीं पर संभव होगा और बीमारी से भी मुक्ति मिल जाएगी।

इतना आता है खर्च थैलेसीमिया से जूझने वाले मरीजों को इस बीमारी से मुक्ति का एक ही इलाज है वह है बोनमेरो ट्रांसप्लांट। बोन मेरो ट्रांसप्लांट किए जाने के बाद इस बीमारी से उन्हें मुक्ति मिल जाती है। फिर वह इस बीमारी से सर्वाइव कर जाते हैं। इस बीमारी में सरकारी अस्पताल में बोनमेरो ट्रांसप्लांट कराने में 20 लाख रुपए तक का खर्च आता है। वहीं प्राइवेट में यह खर्च करोड़ तक पहुंच जाता है। 

एसजीएमएच में 150 मरीज रजिस्टर्ड हैं

थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों की विष्टा में संख्या अधिक है। एसजीएमएच में करीब 150 मरीज रजिस्टर्ड हैं। जिन्हें अस्पताल से निःशुल्क ब्लड उपलब्ध कराया जाता है। इन्हें हर महीने या फिर दो से तीन महीने में ब्लड की जरूरत पड़ती है। यह कष्टप्रद बीमारी है। इस बीमारी से जूझने वाले बच्चों में आवरन की भी अधिकता हो जाती है।

करोड़ों का खर्च यूनिट में आएगा

बोन मेरो ट्रांसप्लांट यूनिट लगाने में करोड़ों रुपए का बजट खर्च होगा। इसके लिए अलग से ओटी और वार्ड तैयार किया जाता है। पूरा परिसर कीटाणुरहित बनाया जाता है। यहां कीटाणुरहित परिसर में ही बोजमेरी का ट्रांसप्लांट किय जाता है। इस यूनिट को तैयार करने में खर्च भी अधिक होता है। भोपाल से इसके लिए अनुमति और प्रस्ताव की स्वीकृति लेनी होगी। इसके बाद ही यह प्रक्रिया आगे बढ़ पाएगी। इस यूनिट के तैयार होने से कैंसर पीड़ित मरीजों का भी इलाज संभव होगा।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट शुरू करने की योजना है। नए भवन में इसकी शुरुआत की जाएगी। इस यूनिट के शुरू होने से वैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों का इलाज संभव होगा। इंदौर में शुरुआत हो गई है। कोशिश है कि रीवा में भी शुरू हो जाए। - डॉ नरेश बजाज, एचओडी शिशु रोग विभाग, एसजीएमएच रीवा

रीवा सहित कई जिलों से करीब 150 थैलेसीमिया के मरीज रजिस्टर्ड हैं। इन मरीजों में नया ब्लड नहीं बनता है। यह आनुवांशिक बीमारी है। बोनमैरो ही इसके इलाज का अंतिम विकल्प है। - डॉ लोकेश त्रिपाठी, सह प्राध्यापक पैथालॉजी विभाग, एसजीएमएच, रीवा

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