Buddha Purnima 2022: कहीं आप गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध को एक ही तो नहीं मान रहे, दोनों के बीच अंतर जानें

भगवान बुद्धा (Bhagwan Buddha) और गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) को एक ही मान लिया गया और इस विषय में सभी उम्र के लोंगो में कन्फ्यूजन हैं, परन्तु भ्रमित होने के कारण विशेष भी हैं।

Update: 2022-05-15 06:19 GMT

भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध में अंतर, (Difference between Lord Buddha and Gautam Buddha) कई बार जब हम गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के बारे में पढ़ते हैं तो हमें लगता है की बुद्ध (Buddha) एक ही व्यक्ति हैं, यह भ्रम हर उम्र के लोगों को अक्सर रहता है और इसी बात को लेकर विद्यार्थी भी सबसे ज्यादा कन्फ्यूज़ रहते हैं परन्तु भ्रमित हों भी क्यों न क्यूं न क्योंकि दोनों में ही नाम और गोत्र और कार्यों में भी काफी हद तक समानता है, तो दोस्तों बड़ा ही रोचक विषय है, आज हम जानेंगे भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) और गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के बारे में, उनके जन्म और वर्ण, और बाद में उनके समाज में अपने अपने क्या योगदान थें। 

विशेष गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) के प्रमुख दस अवतारों में भगवान बुद्ध, नौवें अवतार हैं। भगवान बुद्ध भगवान क्षीरोदशायी विष्णु के अवतार हैं। बलि प्रथा की अनावश्यक जीव हिंसा को बंद करने के लिए ही इनका अवतार हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती अंजना था और पिता का नाम हेमसदन था जिनका जन्मस्थान (Bhagwan Buddha Birtha Place) भारत के 'गया' (बिहार) में है।

विचार करने वाली बात यह है कि शुद्धोदन व माया के पुत्र, शाक्यसिंह बुद्ध  जिनके बचपन का नाम सिद्धार्थ (Gautam Buddha Childhood Name) था और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। श्री शाक्यसिंह (Gautam Buddha Real Name) बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे, उन्होंने कठिन तपस्या के बाद तत्त्वानुभूति की प्राप्ति की  हुई जिसके बाद वे बुद्ध कहलाए। जबकि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। 

श्रीललित विस्तार ग्रंथ के 21 वें अध्याय के 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि संयोगवश गौतम बुद्ध जी ने उसी स्थान पर तपस्या की जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। इसी कारण लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया।

 जन्म 

जर्मन के वरिष्ट स्कालर श्रीमैक्स मूलर जी (German Scholar Mr.Max Müller) के अनुसार शाक्यसिंह बुद्ध अर्थात गौतम बुद्ध (Gautam Budh), का जन्म कपिलवस्तु के लुम्बिनी के वनों में 477 बी सी में में हुआ था (when was gautama buddha born in which year )। जबकि भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddh) आज से 5000 वर्ष पूर्व में वर्तमान में बिहार के 'गया' नामक स्थान में प्रकट हुए थे। 

जबकि श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.24) तथा श्रीनरसिंह पुराण (36/29) के अनुसार भगवान बुद्ध आज से लगभग 5000 साल पहले इस धरातल पर आए जबकि Max Muller के अनुसार गौतम बुद्ध 2491 साल पहले आए। कहने का तात्पर्य यह है कि गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं।

श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार  भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध दोनों अलग-अलग काल में जन्मे अलग-अलग व्यक्ति थे। जिन गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार बताया गया है, उनका जन्म कीकट प्रदेश (मगध) में ब्राह्मण कुल में हुआ था। और उनके जन्म के सैकड़ों वर्षों के बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध, क्षत्रिय राजकुमार थे।

ब्राह्मण कुल के थे भगवान बुद्ध

शंकराचार्य जी ने लोगों के पूछने पर बताया जब लोगों ने कहा कि- ब्राह्मणों ने ही बुद्ध को भगवान का अवतार घोषित कर पूजन की शुरुआत की थी , जिसपर उन्होंने कहा कि कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे अलग हैं। भगवान बुद्ध की चर्चा वेदों (Vedas) में भी हुई है। जो की भगवान के अंशावतार हैं। इनकी चर्चा श्रीमद्भागवत (Shrimad Bhagavatam) में भी है। जो की  ब्राह्मण कुल जन्में थे।

किस कारण भ्रम हुआ 

शंकराचार्य जी ने कहा की अमरसिंह जो की राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उन्होंने जब अमरकोष जो की संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है उसकी रचना की थी। तो उस ग्रन्थ में भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) के 10 और गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के पांच पर्यायवाची नाम को एक ही क्रम में लिख दिया था, जिस कारण यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी. उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई॰ पू॰ में की थी।

दोनों का ही गोत्र था 'गौतम'

शंकराचार्य ने कहा कि दोनों का गोत्र गौतम था। यह भी एक बड़ा कारण था कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। अग्निपुराण में भगवान बुद्ध को लंबकर्ण कहा गया है, जिसका अर्थ है लम्बे कान वाला। जिसके बाद से गौतम बुद्ध के लंबे कान प्रतिमाओं में बनाए जाने लगीं। बौद्ध स्वयं को वैदिक नहीं मानते हैं जो की हैं भी नहीं।

खुद को हिंदू नहीं मानते बौद्ध

उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 25 के तहत जैन, बौद्ध और सिख सभी हिंदू परिभाषित किए गए हैं। बौद्ध तो खुद को हिंदू नहीं मानते हैं। अब जैन, सिख भी खुद को हिंदू नहीं बताने लगे हैं।

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