Raj Rajeshwari Temple: एमपी के इस मंदिर में 54 वर्षों से जल रही अखंड ज्योति, गिरा था मां का दाहिना चरण, जानें 52वें गुप्त शक्तिपीठ का इतिहास

Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि का आगाज हो चुका है। जगह-जगह माता रानी के पंडाल भी सज गए हैं। भक्त देवी मां की आराधना में लीन नजर आ रहे हैं। मध्यप्रदेश में एक ऐसा मंदिर स्थित है जहां विगत 54 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है।

Update: 2023-10-16 08:17 GMT

शारदीय नवरात्रि का आगाज हो चुका है। जगह-जगह माता रानी के पंडाल भी सज गए हैं। भक्त देवी मां की आराधना में लीन नजर आ रहे हैं। मध्यप्रदेश में एक ऐसा मंदिर स्थित है जहां विगत 54 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है। इस गुप्त शक्तिपीठ में मां का दाहिना चरण गिरा था। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां सती के साथ भोलनाथ सहित शिव परिवार मूर्ति के रूप में मिले थे।

मां राजराजेश्वरी मंदिर का इतिहास

एमपी के शाजापुर स्थित विश्व प्रसिद्ध राजराजेश्वरी माता मंदिर परिसर इन दिनों आकर्षक विद्युत सज्जा से जगमगाने लगा है। यहां नौ दिनों तक माता की आराधना का क्रम चलता रहता है। मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है और यहां दूर-दूर से माता के दर्शन, पूजन के लिए भक्त पहुंचते हैं। मां राजराजेश्वरी मंदिर के पुजारी पं. आशीष नागर के मुताबिक माता के दरबार में 54 सालों से अखंड ज्योति जल रही है। दादाजी मंदिर के पुजारी स्व.पं. हरिशंकर नागर ने बताया था कि मां राजराजेश्वरी के दरबार में देश की चारों पीठों के शंकराचार्य ने दर्शन करने के बाद इसे 52वां गुप्त शक्तिपीठ बताया था।

राजा भोज के कार्यकाल में हुआ था जीर्णोद्धार

मंदिर के पुजारी के मुताबिक मां राजेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार राजा भोज के कार्यकाल में 1060 में हुआ था। पूर्व में माता के गर्भगृह के ठीक बाहर के स्थान पर शनिदेव मानकर पूजन किया जाता था। 1968-69 से अखंड ज्योति जल रही है। उन्होंने बताया कि उनके दादाजी पं. हरिशंकर नागर को स्वप्न आया था कि यहां शिव परिवार की प्रतिमा है। वर्षों पहले मंदिर के विस्तार के दौरान की गई खोदाई में माता के चरण, चिमटा, त्रिशूल मिला था। स्कंद पुराण में इसे शक्तिपीठ बताया गया है। मान्यता है कि शक्तिपीठ के दर्शन मात्रा से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

मां का दाहिना चरण आज भी गर्भगृह में विद्यमान

यहां मां सती के साथ भोलेनाथ सहित शिव परिवार मूर्ति के रूप में मिले थे। मंदिर में 54 सालों से अखंड ज्योति जल रही है। विश्व के 52 स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिर स्थापित हैं। मान्यता है कि राजा दक्ष ने जब हवन किया तो उस समय मां सती व भोलेनाथ को नहीं बुलाया गया था। जब माता सती यज्ञ में गईं तो उनके पिता राजा दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया। पति का अपमान होने के कारण माता सती अग्निकुंड में कूद गईं। इसके पश्चात भोलेनाथ माता सती को गोद में लेकर घूमते रहे। इस दौरान माता सती के एक-एक अंग गिरते रहे। शाजापुर में मां का दाहिना चरण गिरा था, जो आज भी मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान है।

चीलर नदी के तट पर स्थित है मंदिर

मां राजराजेश्वरी का मंदिर चीलर नदी के तट पर स्थित है। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। ऐसी मान्यता है कि शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। नवरात्रि पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। यहां दूर-दूर से लोग माता के दर्शन व पूजन करने के लिए पहुंचते हैं। नवरात्रि पर यहां बकायदे व्यापारियों द्वारा अपनी दुकानें भी सजाई जाती हैं। मां के दरबार में पहुंचने वाले हर भक्तों की मुराद मातारानी पूरी करती हैं।

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