MP सरकार खुद कर्जे में, न संसाधन-न फंड: राज्य में 10 लाख से अधिक स्ट्रीट डॉग्स, SC के आदेश को PFA ने बताया इम्प्रैक्टिकल
सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों को स्कूल, अस्पताल और सार्वजनिक स्थानों से हटाने के आदेश पर PFA अध्यक्ष स्वाति गौरव ने इसे अव्यवहारिक और असंभव बताया है।;
भोपाल। स्ट्रीट डॉग्स को स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, रेलवे और बस स्टैंड से हटाने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर पीपल्स फॉर एनिमल (PFA) की प्रेसिडेंट स्वाति गौरव ने कड़ा एतराज़ जताया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला कानूनी और व्यवहारिक दोनों स्तरों पर अव्यवहारिक है और इसे बिना संसाधनों और बजट के लागू करना संभव नहीं।
स्वाति ने कहा कि भारत में किसी भी राज्य सरकार के पास इतनी क्षमता या फंडिंग नहीं है कि वह लाखों की संख्या में आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में रखने की व्यवस्था कर सके। उन्होंने कहा कि अगर सरकार वाकई आवारा कुत्तों को हटाना चाहती है, तो पहले कानून में संशोधन करना होगा, और यह अधिकार संसद का है, न कि अदालत का।
“एमपी सरकार खुद कर्ज में है, शेल्टर बनाना संभव नहीं”
स्वाति ने मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति का उदाहरण देते हुए कहा: “एमपी सरकार 25 हजार करोड़ के कर्ज में है। लाड़ली बहना योजना जैसे कई योजनाओं के भुगतान तक की सरकार के लिए चुनौती है। न संसाधन हैं- न फंड। ऐसे में हजारों शेल्टर होम बनाना कल्पना जैसा है।”
उन्होंने कहा कि सिर्फ भोपाल में ही करीब 2 लाख स्ट्रीट डॉग्स हैं। अगर इनमें से आधों को भी शेल्टर में रखना हो, तो 5,000 से ज्यादा शेल्टर चाहिए होंगे। यह किसी भी राज्य के लिए संभव नहीं है।
MP में 10 लाख से अधिक स्ट्रीट डॉग्स
नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) की रिपोर्ट के अनुसार:
| शहर | स्ट्रीट डॉग्स की अनुमानित संख्या | 2024 में डॉग बाइट के मामले |
|---|---|---|
| भोपाल | 1,50,000+ | 19,285 |
| इंदौर | — | 30,304 |
| ग्वालियर | — | 11,902 |
| जबलपुर | — | 13,619 |
| उज्जैन | — | 10,296 |
| रीवा | — | 3,131 |
राज्य सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक मध्यप्रदेश को “रेबीज़ फ्री” बनाया जाए, लेकिन स्वाति का मानना है कि यह तभी संभव है जब बड़े पैमाने पर ABC (Animal Birth Control) और टीकाकरण अभियान तेज किए जाएं, न कि कुत्तों को हटाकर।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या कहता है?
"डॉग बाइट का खतरा अब सिर्फ ग्रामीण इलाकों या घनी आबादी वाले इलाकों तक सीमित नहीं है। बल्कि राष्ट्रीय स्तर की समस्या बन चुका है। भारत अब भी रेबीज मौतों के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर है, जबकि एनीमल बर्थ कंट्रोल नियम बने होने के बावजूद इसका पालन नहीं किया जा रहा है। देश में आवारा कुत्तों से जन सुरक्षा को खतरा बना हुआ है।"
सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को स्वतः संज्ञान लेकर देशभर में इन कदमों के निर्देश दिए:
- स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और बस स्टैंड में आवारा कुत्तों पर रोक।
- कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाएगा, वापस उसी स्थान पर नहीं छोड़ा जाएगा।
- हाईवे पर आवारा पशुओं की शिकायत के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी हों।
- दो हफ्तों में जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान।
- हर संस्थान में एक नोडल अधिकारी नियुक्त हो।
- 24×7 मॉनिटरिंग सिस्टम लागू हो।
- सभी सरकारी अस्पतालों में एंटी-रेबीज़ वैक्सीन उपलब्ध कराई जाए।
- AWBI चार हफ्तों में SOP जारी करे।
अगली सुनवाई 13 जनवरी 2025 को होगी।
स्वाति की अपील
स्वाति ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव से अनुरोध किया है कि वे कोर्ट में जमीनी हकीकत स्पष्ट रूप से रखें, ताकि न्यायालय को भी समझ हो सके कि यह आदेश कागज़ पर आसान लेकिन जमीन पर लगभग असंभव है। “स्ट्रीट डॉग समाज की समस्या नहीं, व्यवस्था की जिम्मेदारी है। समाधान वैज्ञानिक होना चाहिए, भावनात्मक नहीं।”