कश्मीर का इतिहास: कैसे पड़ा कश्मीर का नाम? क्यों माना जाता था अध्यात्म, कला और ज्ञान का केंद्र

History Of Kashmir: ऐसा कहा जाता है कि ऋषि कश्यप मुनि के नामपर कश्मीर नाम हुआ था,

Update: 2022-03-21 12:20 GMT

History Of Kashmir: फिल्म द कश्मीर फाइल्स के रिलीज होने के बाद लोगों को 32 साल पुराने भयावह इतिहास के बारे में तो मालूम हुआ साथ कश्मीर के प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी लेने की भी जिज्ञासा बढ़ने लगी. प्राचीन भारत के इतिहास में कश्मीर को अध्यात्म, कला, साहित्य, ज्ञान, और धर्म का केंद्र माना जाता था, दुनियाभर से लोग यहां आकर ज्ञान अर्जित करते थे. कश्मीर प्राचीन भारत और अखंड भारत का अखंड हिस्सा रहा है लेकिन कुछ देश विरोधी लोग कहते हैं कश्मीर भारत का कभी हिस्सा था ही नहीं, असल में ऐसे लोगों को कश्मीर का असली इतिहास मालूम नहीं है। 

आपके सामने पेश है कश्मीर का इतहास भाग-1 

कश्मीर का नाम कश्मीर कैसे पड़ा 

नीलामता पुराण कश्मीरा में यह लिखा गया है कि कश्मीर का नाम ऋषि कश्यप मुनि के नाम पर पड़ा था. ऋषि कश्यप ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कश्मीर में अध्यात्म की शुरुआत की थी. कश्मीर में एक झील है जिसका नाम वालर झील है जिसे मीरा कहा जाता है, जिसका अर्थ है समुद्री झील या ऋषि कश्यप का पहाड़। 

प्राचीन काल में यहां बौद्धों और हिन्दुओं की संस्कृति की के सबूत मिलते हैं. ऐसा कहा जाता है कि दुनिया के पहले योगी मतलब आदियोगी शंकर और उनकी धर्मपत्नी मां पार्वती यहीं रहते थे, कश्मीर को पहले सतीसर कहा जाता था क्योंकि माता सती का निवास था. यहां एक राक्षश रहता था जिसका नाम 'नाग' था जिसे वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर वध कर दिया था और झेलम में उसे बहा दिया था, इसी तरह सतीसर के बाद कश्मीर नाम पड़ा. ऐसा भी कहा जाता है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर मतलब कछुओं की झील था जिससे कश्मीर नाम निकला। 

वो ऋषि कश्यप ही थे जिन्होंने कश्मीर में ज्ञान और अध्यात्म की शुरुआत की थी 

कश्मीर ज्ञान का केंद्र था 

कश्मीर ज्ञान, अध्यात्म, कला, संस्कृति और साहित्य का केंद्र था, लोग दूर-दूर से कश्मीर पहुंचते थे ताकि उन्हें भी वह ज्ञान अर्जित हो सके. 

आदिशंकराचार्य केरल से कश्मीर गए थे 

509 BCE मतलब ईस्वी में जन्मे  भगवान शंकर के अवतार आदिशंकरार्य केरल से पैदल कश्मीर पहुचें थे, उन्होंने हिमालय की गोद में बैठकर अध्यात्म और ध्यान किया था, वहीं से उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन्हें सफर की शरुआत हुई थी. इसके बाद आदिशंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की थी. 

जिस तरह लोग उच्च शिक्षा के लिए विदेश में पढने के लिए जाते हैं वैसे ही भारत के कोने-कोने से विद्वान लोग कश्मीर जाते थे और अपने ज्ञान के पंडित बन जाते थे, पंडित मतलब ज्ञानी। 

अभिनव गुप्त ने अध्यात्म किया 

10 वीं शताब्दी में जन्मे आचार्य अभिनव गुप्त को ज्ञान प्राप्ति की इतनी तीव्र इक्षा थी के उन्होंने अपना राजपाठ छोड़ कश्मीर में अध्यात्म दर्शन को चुना था। और उन्होंने वहीं धरती के स्वर्ग में दार्शनिक शास्त्र लिखा था। अभिनव गुप्त का जन्म कश्मीर में ही हुआ था, वह ज्ञान अर्जित करने के बाद जालंधर के लिए निकल पड़े थे, वह दार्शनिक, रहसयवादी एवं साहित्यशास्त्र, कश्मीरी शैव और तंत्र के पंडित थे. 

चरक ने आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया 

300-200 ईसा पूर्व आचार्य चरक ने आयुर्वेद विज्ञान का ज्ञान कश्मीर में अर्जित किया था, आज दुनिया में जिस आयुर्वेद को सबसे अच्छा उपचार माना जाता है उस वेद को कश्मीर में लिखा गया था। उसे चरक संहिता के नाम से जाना जाता है. चरक कुषाण राज्य के राजवैद्य थे. 

वाग्भट ने भी आयुर्वेद का ज्ञान यहीं से प्राप्त  किया 

आयुर्वेद के प्रसिद्द ग्रन्थ अष्टांगसंग्रह तथा अष्टांगहृदय के रचयिता वाग्भट ने इन ग्रंथों को कश्मीर में लिखा, वाग्भट का जन्म सिंधु में हुआ था,उनके पिता सिद्धगुप्त थे और पितामाह का नाम भी वाग्भट था. वह बौद्ध धर्म को मानाने वाले थे, अष्टांगहृदय ऐसा ग्रथं है जिसने आयुर्वेद के आठों अंगों का समावेश हुआ है. इसे तिब्बती और जर्मन भाषा में ट्रांसलेट किया गया है. 

सुश्रुत ने भी यहीं मेडिकल साइंस का ज्ञान जाना 

प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक 'सुश्रुत' ने भी मेडिकल साइंस का ज्ञान यहीं से अर्जित किया था. वह आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुतसंहिता के रचईता हैं. आज से ढाई हज़ार साल पहले उन्होंने पहली सर्जरी की थी. उनका जन्म काशी में हुआ था.  

भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र कश्मीर में लिखा 

आज हम जो सिनेमा देखते हैं, उसके पीछे के विज्ञान को लिखने वाले और कोई नहीं भरतमुनि थे, उन्होंने नाट्यशास्त्र की रचना कश्मीर में की. नाट्यशास्त्र को भारत में पांचवा वेद कहते हैं और उन्ही के नाम से भरतनाट्यम एक सांस्कृतिक नाट्य कला जानी जाती है। 

कश्मीर को इन्ही पंडितों ने असली स्वर्ग और ज्ञान का केंद्र बनाया था, कश्मीर में इसके बाद बौद्धों का आना हुआ, बौद्धों के बाद, ग्रीक, तिब्बत, चीन, नेपाल और कई देशों से लोग खींचे चले आए. कश्मीर में सैकड़ों विद्वानों ने ज्ञान लिया जिन्होंने पंचतंत्र, एस्ट्रोलॉजी, एस्ट्रोनॉमी, संस्कृत लिक्ट्रेचर, हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, गणित, त्रिकोणमति जैसे ज्ञान प्राप्त किए. दुर्भाग्य से हम लोगों में से ज़्यादातर लोग इस इतिहास से अछूते रह गए, क्योंकि स्कूल में हमें इन लोगों के बारे में कभी पढ़ाया ही नहीं गया. लेकिन अब समय है कि लोग प्राचीन भारत के महान इतिहास और महान विद्वानों के बारे में समझें। 

कश्मीर के प्राचीन इतिहास को एक आर्टिकल में लिखना अन्याय होगा, इसके बारे में जल्द अगला भाग लेकर आएगें जहां कश्मीर में आक्रांतों ने कैसे कश्मीरियत को खत्म किया, कैसे ज्ञान के केंद्र को जिहाद का गढ़ बना दिया इसपर बात होगी। 




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