IPO New Rules: आईपीओ के इन नियमों में SEBI ने किये बड़े बदलाव

IPO (Initial Public Offering) के नियमों में SEBI (Securities and Exchange Board of India) ने बड़े बदलाव किये हैं.

Update: 2022-01-18 16:02 GMT

SEBI भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India) जो कि एक मार्केट रेगुलेटर है, की तरफ से इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग यानि IPO (Intial Public Offering) और OFS यानि कि ऑफर-फॉर-सेल (Offer For Sale) के नियमों को और भी ज्यादा सख्त कर दिया है.

सूत्रों क्वे अनुसार 17 जनवरी को एक नोटिफिकेशन जारी की गई थी जिसके अनुसार, भविष्य में अब अज्ञात अधिग्रहणों के लिए IPO की तरफ से एक नियत राशि ही जुटाई जाएगी. इतना ही नहीं मुख्य शेयरहोल्डरों की ओर से बेचे जाने वाले शेयरों की संख्या को भी SEBI की तरफ से सीमित कर दिया गया है.

मनीकंट्रोल के मुताबिक, SEBI ने एक अधिसूचना जारी की है जिसमें कहा है कि एंकर निवेशकों के लॉक-इन समय सीमा को बढ़ाकर 90 दिनों तक कर दिया गया है और अब क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा सामान्य कंपनी मे कामकाज के लिए रिजर्व फंड की निगरानी की जाएगी.

SEBI की तरफ से NII में किये गए बदलाव

सेबी ने NII अर्थात नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स के लिए शेयरों के आवंटन का तरीका भी बदल दिया है. इन सभी चेंजेस को सही तरह से लागू करने के लिए SEBI ने ICDR (इश्यू ऑफ कैपिटल एंड डिस्क्लोजर रिक्वॉयरमेंट) के नियमों बदलाव किए हैं. ये बदलाव ऐसे समय में किए गए हैं, जब बहुत सी टेक्नोलॉजी कंपनियां IPO के माध्यम से पैसा जुटाने के लिए रेगुलेटर के पास आवेदन जमा कर रही हैं.

SEBI ने स्पष्ट किया अधिग्रहण के बारे में महत्वपूर्ण पॉइंट

SEBI के अनुसार यदि किसी कंपनी द्वारा उसके IPO डॉक्यूमेंट में फ्यूचर में किए जाने वाले अधिग्रहण या निवेश को पॉइंट आउट नहीं किया जाता है तो इस कार्य के लिए प्रस्तावित राशि, IPO के माध्यम से इकट्ठा की जाने वाली कुल राशि की 35 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, SEBI ने ये भी स्पष्ट किया है कि यदि भविष्य में किए जाने वाले अधिग्रहण का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, तब इस तरह की पाबंदी को लागू नहीं किया जाएगा.

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