उत्तरप्रदेश

अर्जुन पंडित फिल्म से प्रेरित होकर अपना नाम 'विकास पंडित' रखा था, 1990 से इस तरह शुरू हुआ था उसका आपराधिक इतिहास

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:25 AM GMT
अर्जुन पंडित फिल्म से प्रेरित होकर अपना नाम विकास पंडित रखा था, 1990 से इस तरह शुरू हुआ था उसका आपराधिक इतिहास
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1999 में रिलीज़ हुई सनी देओल की फिल्म अर्जुन पंडित से प्रेरित होकर उसने अपना नाम विकास पंडित रख लिया था. 10 जुलाई को उस विकास दुबे का नामोनि

लखनऊ. 10 जुलाई को उस विकास दुबे का नामोनिशान यूपी पुलिस ने ख़त्म कर दिया, जिसके नाम की पूरे राज्य में दहशत थी. आतंक का पर्याय रहा विकास दुबे का आपराधिक पन्ना अब बंद हो चुका है. 1999 में रिलीज़ हुई सनी देओल की फिल्म अर्जुन पंडित से प्रेरित होकर उसने अपना नाम विकास पंडित रख लिया था.

विकास दुबे को 10 जुलाई की सुबह 7 बजे यूपी पुलिस ने उस वक़्त मौत की नीद सुला दी, जब पुलिस उसे उज्जैन से लेकर कानपुर आ रही थी. 2-3 जुलाई की रात 8 पुलिसकर्मियों की ह्त्या कर फरार होने वाला विकास 9 जुलाई को उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर से गिरफ्तार हुआ था. प्रदेश सरकार ने उसे मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए उस पर 5 लाख का इनाम रखा था.

पुलिस के अनुसार कानपुर लाते वक़्त पुलिसिया वाहन पलट गया, विकास पुलिसकर्मियों की गन छीनकर भागने लगा और भागते वक़्त उसने पुलिस कर्मियों पर हमला किया. जबावी कार्रवाई में पुलिस ने उसे ढेर कर दिया.

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हांलाकि पुलिस के इस एनकाउंटर पर काफी सवाल उठ रहें हैं. पुलिस द्वारा बताई गई कहानी कई वर्षों से चली आ रही है, पुलिस की इस रटी रटाई स्क्रिप्ट में कुछ नया नहीं था, इसलिए सवाल उठना लाजमी है. परन्तु लोगों के लिए राहत की बात यह है की कई लोगों के परिवार को उजाड़ने वाला, संपत्ति हथियाने वाला आतंकी विकास दुबे उर्फ़ पंडित जी मारा गया.

'मैं विकास दुबे हूँ, कानपुर वाला'

दिन गुरुवार, स्थान महाकाल मंदिर उज्जैन और फिर शुरू होती है विकास के अंत की कहानी. विकास के कथित सरेंडर के पहले उसके कई साथी मौत की नींद सुला दिए गए. अब बारी थी विकास की. उज्जैन में उसने गिरफ्तारी के दौरान वह चिल्ला रहा था 'मैं विकास दुबे हूँ, कानपुर वाला'. विकास महाकाल की नगरी में भी दहशत दिखाने की कोशिश कर रहा था.

विकास के इस डायलॉग के साथ ही उसे एक पुलिस कर्मी ने पीछे से चमाट भी दे दी. इसके बाद उसे यूपी एसटीएफ के हवाले कर दिया गया और फिर नतीजा सामने है. फिल्मों का शौक़ीन विकास अब 'एक था विकास' हो गया.

1990 से शुरू हुआ आपराधिक इतिहास

  • इलाके में पंडित जी के नाम से विख्यात रहे विकास के गुनाहों की दास्तां वर्ष 1990 से शुरू हुई. विकास को शुरू से ही गुंडा बनने का शौक था, बस उसे गुंडा सुनना पसंद नहीं था. वह काम गुंडे जैसा और नाम हीरो जैसा चाहता था. 30 वर्षों के आपराधिक करियर में विकास पर 60 से भी अधिक मामले दर्ज हैं.
  • 1990 से छोटे मोटे अपराध करते-करते विकास 1994 में उसपर हत्या युक्त डकैती का मामला बिल्हौर में दर्ज किया गया था. धीरे धीरे वह आगे बढ़ता गया, उसके जुर्म बड़े होते गए, उसके नाम की दहशत इलाके में फैलने लगी.
  • 1999 में अर्जुन पंडित फिल्म से प्रेरित होकर उसने अपना नाम विकास पंडित रखवा लिया और इसके बाद से वह 'पंडित जी' के नाम से कुख्यात हो गया. यह वह वक़्त था जब विकास के नीचे आधा सैकड़ा से अधिक अपराधी काम करने लगे थे.

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  • 2000 में जमीन के कब्जे को लेकर उसने शिवली थाना क्षेत्र के ताराचंद्र इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी. इस मामले में वह नामजद हुआ था.
  • 2001 में उसने शिवली थाना के अंदर घुसकर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त भाजपा नेता और श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी. इस मामले में थाना प्रमुख सहित सभी पुलिसकर्मी गवाह बने थे. मगर, विकास के डर के सामने सब झुक गए और किसी ने भी कोर्ट में गवाही नहीं दी.
  • इस हत्या के बाद विकास का कद और दबदबा इतना बढ़ गया था कि उसके खिलाफ बोलने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी, गवाही देना तो दूर की बात. क़ानून और पुलिस का खौफ जैसे उसके दिल दिमाग में था ही नहीं.
  • 2002 में शिवली नगर पंचायत के तत्कालीन चेयरमैन बम और गोलियों के हमला किया. इस मामले में उसे उम्र कैद की सजा मिली, लेकिन इसके राजनीतिक आकाओं के संरक्षण की वजह से वह जल्द ही जेल से बाहर आ गया.
  • 2004 में उसने केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या की. इसके बाद से विकास दुबे तमाम आपराधिक वारदातों को अंजाम देता गया. पुलिसवालों को उसने खरीद लिया था. सिर्फ चौबेपुर थाना ही नहीं, आस-पास के कई थानों के पुलिसकर्मी उसके मुखबिर और सहायक बनकर काम करते थे.

2 जुलाई 2020

ये वो तारीख है, जिसने विकास के आतंक का अंत लिख दिया था, बस उसका अंजाम बांकी था. मोहनी नदवा गाँव के निवास राहुल तिवारी ने एक जमीन पर कब्जे की शिकायत की तो उसे बेरहमी से पीटा गया. पुलिस में शिकायत हुई तो विकास ने थानेदार को भी तमाचा जड़ दिया. इस तमाचे की आवाज उच्च अधिकारियों तक गई. विकास के खिलाफ मामला दर्ज हुआ, और डीएसपी देवेंद्र मिश्रा के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों की टोली 2-3 जुलाई को विकास को गिरफ्तार करने पहुंच गई.

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परन्तु उन डीएसपी को कहा मालूम था की गद्दारी खाकी में ही थी. थाने से मुखबिरी की गई और डीएसपी मिश्रा समेत आठ पुलिस कर्मियों का विकास ने बेरहमी से क़त्ल कर दिया. विकास अपने शूटर्स के साथ पहले से तैयार बैठा था, उसने पुलिस टीम पर घात लगाकर ताबड़तोड़ हमला किया. इस वारदात में डीएसपी देवेंद्र मिश्रा सहित आठ पुलिसकर्मी मारे गए और सात अन्य घायल हो गए. विकास दुबे के इस कारनामे ने पूरे पुलिस-प्रशासन को हिलाकर रख दिया.

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