उज्जैन

महाकाल मंदिर का इतिहास: इल्तुतमिश ने तुड़वाया, ओरंगजेब ने मस्जिद बनवाई, मराठाओं ने वापस मंदिर बनाया

महाकाल मंदिर का इतिहास: इल्तुतमिश ने तुड़वाया, ओरंगजेब ने मस्जिद बनवाई, मराठाओं ने वापस मंदिर बनाया
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History of Ujjain Mahakal Temple: कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थापित महाकाल मंदिर स्वयं प्रकट हुआ था

महाकाल मंदिर का असली इतिहास: मध्य प्रदेश की पवित्र नगरी उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर से पूरे विश्व के सनातनियों की भावनाएं जुड़ी हैं. उज्जैन महाकाल मंदिर (Ujjain Mahakal Mandir) कोई सामान्य मंदिर नहीं बल्कि स्वयंभू मंदिर है. मतलब यह बनाया नहीं गया बल्कि खुद प्रकट हुआ है, ऐसी मान्यता है. महाकाल मंदिर उज्जैन के बारे में सनातनी धर्मग्रंथों में भी इसके स्वयंभू होने का उल्लेख मिलता है.

लेकिन जिस तरह काशी विश्वनाथ, अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि, मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि, सोमनाथ मंदिर जैसे हज़ारों प्राचीन मंदिरों को खिलजियों और मुग़ल आक्रांताओं ने तोडा उनके प्रकोप से महाकाल मंदिर भी अछूता नहीं रहा. इस्लामिक आक्रांतों ने स्वयंभू महाकाल मंदिर को भी कई बार तोडा, यहां के पुजारियों का कत्ल किया मगर मराठा योद्धाओं ने गजवा-ए हिन्द के नापाक मंसूबे को कभी सफल नहीं होने दिया।

महाकाल मंदिर का इतिहास


History Of Mahakal Temple Ujjain: मध्य प्रदेश के उज्जैन में विश्वविख्यात भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग स्थापित है. इन्हे श्री महाकालेश्वर (Mahakaleshwar) के नाम से जाना जाता है. महाकालेश्वर शिवलिंग (Mahakaleshwar Shivling) भारत में स्थापित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. महाकाल मंदिर के शिकार से कर्क रेखा निकलती है इसी लिए उज्जैन महालेश्वर मंदिर को पृथ्वी का नाभिस्थल कहा जाता है

स्वयंभू है महाकाल शवलिंग

कहा जाता है कि महाकाल मंदिर में स्थापित महाकालेश्वर लिंगम स्वयंभू है. अर्थात खुद प्रकट हुए हैं. जो अपने आप में आदिशक्ति के प्रदायी माने जाते हैं. भारत में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकालेश्वर शिवलिंग ही है जो दक्षिणाभिमुखी है. यह तांत्रिक परम्परा की अनूठी विशेषता है.

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कहानी


How Mahakaleshwar Jyotirlinga originated: पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जब उज्जयिनी (उज्जैन का पुराना नाम) में महाराजा चन्द्रसेन का शासन था. चन्द्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे. भगवान शिव के गणों में मुख्य रहे मणिभद्र, राजा चन्द्रसेन के मित्र थे. एक बार मणिभद्र ने राजा चन्द्रसेन को चिंतामणि भेंट की थी जिसमे असीमित तेज यानी अपार शक्ति थी

राजा ने उस चिंतामणि को धारण किया, ऐसा करने के बाद पूरा प्रभामंडल जगमगा उठा. चमत्कारी मणि से राजा चन्द्रसेन का साम्राज्य बढ़ता ही चला गया. जब यह खबर अन्य राजाओं को लगी तो उन्होंने चिंतामणि हासिल करने के लिए कई बार चन्द्रसेन पर हमला किया। लेकिन कोई भी चिंतामणि को पाने में सफल नहीं हुआ बाद में राजा चन्द्रसेन महाकाल की शरण में पहुंच गए और ध्यानमग्न हो गए.

ध्यानमग्न चन्द्रसेन के पास एक विधवा अपने 5 साल के बेटे के साथ दर्शन के लिए पहुंची, वह बच्चा चन्द्रसेन को देख उनसे प्रेरित हो उठा. घर जाकर उस बच्चे ने एक पत्थर लिया और एकांत में ध्यान करने लगा. बच्चा ध्यान में इतना लीन हो गया कि मां के बुलाने पर भी नहीं उठा

बच्चे ने अपनी माता को अनसुना किया, इसी लिए महिला ने उसे पीटना शुरू कर दिया और उसके पूजा का समान फेंक दिया। जब वह बच्चा ध्यान से उठा तो अपनी साधना स्थल का दृश्य देख दुःखी हो गया. तभी अचानक उसी स्थल में एक मंदिर प्रकट हुआ और उस मंदिर के गर्भग्रह में शिवलिंग दिखाई दिया। तभी से भगवान महाकाल उज्जयिनी में विराजमान हैं और महाकाल को उज्जैन का राजाधिराज माना जाता है.

तभी भगवान महावीर प्रकट हुआ और कहा कि यह बालक की आंठवी पीढ़ी में यशस्वी नन्द का जन्म होगा और वे भगवान नारायण के अवतार के पालनहार होंगे। इसी तरह महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण द्वापर युग के नंदी जी के 8 पीढ़ी पहले हुआ था

महाकाल मंदिर का निर्माण निसने करवाया

पहला महाकाल मंदिर स्वयंभू था, जिसका निर्माण नन्द जी के 8 पढ़ी पहले हुआ था. कहा जाता है कि ईस्वी पूर्व छठी शताब्दी में उज्जैन के राजा चंडप्रद्योत ने अपने पुत्र कुमार संभव को मंदिर की रेख-रेख करने की जिम्मेदारी दी थी. 10वीं शताब्दी तक यहां क्षत्रियों का शासन स्थापित हुआ और उन्होंने मंदिर की रक्षा की.

सम्राट विक्रमादित्य और महाकाल मंदिर की कहानी

Story of Samrat Vikramaditya and Mahakal Temple: विक्रम संवत की शुरआत करने वाले महान सम्राट विक्रमादित्य का उज्जैन में 57 ईसा पूर्व शासन हुआ करता था. सम्राट और उनकी बहन राजकुमारी सुंदरा महाकाल की परम भक्त थे.

सम्राट विक्रमादित्य ने अपनी बहन को वचन दिया था कि उनका विवाह वैसा ही होगा जहां अवंतिका (उज्जैन) और महाकाल जैसा मंदिर होगा। इसी लिए उन्होंने कालीसिंध नदी के तट में सुन्दरगाथ नामक नगर बसाया था. जिसे वर्तमान में सुंदरसी कहा जाता है तो शाजापुर में मौजूद है.

सुंदरगढ़ में सम्राट विक्रमादित्य ने भव्य महाकाल मंदिर का निर्माण किया था, ताकि उनकी बहन विवाह के बाद भी भगवान शिव की उपासना कर सके. उन्होंने मंदिर के चारों तरफ काल भैरव, नवग्रह, और देवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण किया था.

महाकाल मंदिर किसने तुड़वाया था


Who demolished the Mahakal temple: इतिहासकारों का कहना है कि 11वीं सदी के आंठवे दशक में गजनी सेनापति ने महाकाल के प्राचीन मंदिर में हमला किया था. और मंदिर तो नष्ट कर दिया था. इसके बाद 11वीं सदी के अंत और 12वीं सदी के प्रारम्भ के बीच राजा उदयादित्य और राजा नरवर्मा ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया था

अबतक भारत में मुस्लिम आक्रांतों का राज हो गया था. 1234-35 ईस्वी में इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर तो ध्वस्त कर दिया था.वह शिवलिंग को तोडना चाहता था. लेकिन मंदिर के पंडितों ने महालेश्वर शिवलिंग को कुंड में छिपा दिया था.


बाद में मुग़ल आक्रांता ओरंगजेब का आना हुआ और उसने महाकाल मंदिर वाली जगह में मस्जिद का निर्माण करा दिया जैसे काशी और मथुरा में उसने किया था.

महाकाल मंदिर की कहानी

Story Of Mahakal Mandir: इतिहासकारों का कहना है कि 500 सालों तक हिन्दू महाकाल ज्योतिर्लिंग को मंदिर के अवशेषों में ही पूजते रहे. तब ग्वालीर-मालवा के तत्कालीन सूबेदार और सिंधिया राजवंश के संस्थापक राणोजी सिंधिया बंगाल जीतकर उज्जैन से गुजर रहे थे. जब उन्होंने महाकाल मंदिर की दुर्दशा देखी तो बहुत दुखी हुए कर यहां महाकाल मंदिर का निर्माण किया। विजयाराजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा 'राजपथ से लोकपथ पर' में इसका जिक्र किया है।

राणोजी सिंधिया जब बंगाल विजय से वापस उज्जैन पहुँचे तो वहाँ औरंगजेब द्वारा निर्मित मस्जिद को ढहवा दिया और नवनिर्मित मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा कराकर महाकाल की पूजा-अर्चना की। इसके बाद उन्होंने उन्होंने सिंहस्थ कुंभ का फिर से आयोजन शुरू करवाया।





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