अध्यात्म

शारदीय नवरात्र 2025: जानें कब से शुरू, घटस्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा कैलेंडर

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत
13 July 2025 9:06 AM IST
Updated: 2025-07-13 03:39:14
शारदीय नवरात्रि 2025 पूजा कैलेंडर और घटस्थापना समय
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शारदीय नवरात्रि 2025 की पूजा तिथि और घटस्थापना मुहूर्त

इस साल शारदीय नवरात्र 22 सितंबर 2025 से शुरू हो रहे हैं। यहां घटस्थापना का शुभ मुहूर्त और देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पूरा कैलेंडर दिया गया है।

शारदीय नवरात्र 2025: हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाने वाला शारदीय नवरात्र अब बस कुछ ही समय दूर है। यह नौ दिनों का पर्व जगत जननी आदिशक्ति देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों को समर्पित होता है। इस दौरान भक्त मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी कृपा पाने के लिए उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है, साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं कि इस साल शारदीय नवरात्र कब से शुरू हो रहे हैं और घटस्थापना किस शुभ मुहूर्त में की जाएगी।

शारदीय नवरात्र 2025 की तिथियां

वैदिक पंचांग के अनुसार, 22 सितंबर 2025 को देर रात 01 बजकर 23 मिनट से आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत होगी। यह तिथि 23 सितंबर को देर रात 02 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में तिथियों की गणना सूर्योदय से की जाती है, इसलिए सोमवार, 22 सितंबर 2025 से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी। नवरात्र का समापन 01 अक्टूबर को नवमी तिथि के साथ होगा, और इसके अगले दिन, 02 अक्टूबर को विजयादशमी (दशहरा) का पर्व मनाया जाएगा।

शारदीय नवरात्र 2025 का पूरा कैलेंडर

देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की तिथियां इस प्रकार हैं:

  1. 22 सितंबर (सोमवार): मां शैलपुत्री की पूजा (नवरात्र का पहला दिन)
  2. 23 सितंबर (मंगलवार): मां ब्रह्मचारिणी की पूजा (नवरात्र का दूसरा दिन)
  3. 24 सितंबर (बुधवार): मां चंद्रघंटा की पूजा (नवरात्र का तीसरा दिन)
  4. 25 सितंबर (गुरुवार): मां कूष्मांडा की पूजा (नवरात्र का चौथा दिन)
  5. 26 सितंबर (शुक्रवार): मां स्कंदमाता की पूजा (नवरात्र का पाँचवां दिन)
  6. 27 सितंबर (शनिवार):
    मां कात्यायनी की पूजा (नवरात्र का छठा दिन)
  7. 28 सितंबर (रविवार): मां कालरात्रि की पूजा (नवरात्र का सातवां दिन)
  8. 29 सितंबर (सोमवार): मां महागौरी की पूजा (नवरात्र का आठवां दिन)
  9. 01 अक्टूबर (बुधवार): मां सिद्धिदात्री की पूजा (नवरात्र का नौवां दिन)
  10. 02 अक्टूबर (गुरुवार): विजयादशमी (दशहरा)

शारदीय नवरात्र 2025 घटस्थापना शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्र की शुरुआत 22 सितंबर 2025 से होगी। इस दिन घटस्थापना (कलश स्थापना) के लिए दो शुभ मुहूर्त उपलब्ध हैं:

  • पहला मुहूर्त (सुबह): सुबह 06 बजकर 09 मिनट से सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक।
  • अभिजीत मुहूर्त: यदि आप सुबह का मुहूर्त चूक जाते हैं, तो आप सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक के अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं।

भक्त अपनी सुविधानुसार शुभ समय पर घटस्थापना कर सकते हैं और मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर सकते हैं। यह शुभ मुहूर्त देवी की स्थापना और नवरात्र के संकल्प के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

शारदीय नवरात्र: मां दुर्गा के 9 रूपों की महिमा

शारदीय नवरात्र, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाने वाला एक महापर्व है। यह नौ दिनों की अवधि जगत जननी मां दुर्गा और उनके नौ दिव्य स्वरूपों को समर्पित होती है। इन नौ रूपों में मां दुर्गा अलग-अलग शक्तियों और गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। हर दिन एक विशेष देवी की पूजा की जाती है, जिससे भक्तों को सुख, समृद्धि, शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद मिलता है। आइए, मां दुर्गा के इन नौ रूपों और उनकी महिमा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1. मां शैलपुत्री: नवदुर्गा का प्रथम स्वरूप

शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। 'शैल' का अर्थ है पर्वत, और 'पुत्री' का अर्थ है बेटी, यानी पर्वतराज हिमालय की पुत्री।

स्वरूप: मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है। वह नंदी बैल पर सवार होती हैं।

महत्व: यह देवी सती का पुनर्जन्म हैं और स्थिरता, शक्ति और शुद्धता का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से भक्तों को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता प्राप्त होती है।

पूजा विधि: इस दिन कलश स्थापना की जाती है और मां शैलपुत्री की पूजा करके नवरात्र के व्रत का संकल्प लिया जाता है।

2. मां ब्रह्मचारिणी: तपस्या और ज्ञान की देवी

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। 'ब्रह्म' का अर्थ है तपस्या और 'चारिणी' का अर्थ है आचरण करने वाली।

  • स्वरूप: मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए शांत मुद्रा में विराजमान होती हैं।
  • महत्व: यह मां दुर्गा का अविवाहित रूप है, जिन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इनकी पूजा से संयम, तप, त्याग, वैराग्य और सदाचार की प्राप्ति होती है।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को सफेद फूल, अक्षत और चंदन अर्पित किए जाते हैं।

3. मां चंद्रघंटा: शांति और साहस की प्रतिमूर्ति

तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान है। इनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होता है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।

  • स्वरूप: मां चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली हैं, जिनमें से हर भुजा में शस्त्र सुशोभित हैं। उनका वाहन सिंह है और वे युद्ध के लिए हमेशा तैयार दिखती हैं, पर उनका स्वरूप शांत और दिव्य है।
  • महत्व: यह देवी भक्तों के कष्टों का नाश करती हैं और भय से मुक्ति दिलाती हैं। इनकी पूजा से मन में शांति और साहस का संचार होता है।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को लाल रंग के फूल और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।

4. मां कूष्मांडा: ब्रह्मांड की जननी और ऊर्जा की स्रोत

नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्होंने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी।

  • स्वरूप: मां कूष्मांडा अष्टभुजाधारी हैं और इनका वाहन सिंह है। इनके हाथों में चक्र, गदा, धनुष, बाण, अमृत कलश, कमल पुष्प और जप माला होती है।
  • महत्व: यह आरोग्य और ऊर्जा की देवी हैं। इनकी पूजा से रोगों का नाश होता है और आयु, यश, बल व आरोग्य की प्राप्ति होती है।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को हरे रंग के वस्त्र और मालपुए का भोग लगाया जाता है।

5. मां स्कंदमाता: मातृत्व और करुणा की देवी

पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है। भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।

  • स्वरूप: मां स्कंदमाता चार भुजाओं वाली हैं। दाहिनी भुजा में कमल का फूल है और बाईं भुजा में वरमुद्रा में रहती हैं। वह सिंह पर विराजमान हैं और उनकी गोद में बाल कार्तिकेय विराजमान होते हैं।
  • महत्व: इनकी पूजा से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह मातृत्व और करुणा का प्रतीक हैं।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को पीले वस्त्र और केले का भोग अर्पित किया जाता है।

6. मां कात्यायनी: शक्ति और वीरता की देवी

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाता है।

  • स्वरूप: मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। दाहिने हाथ में तलवार और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है। वह सिंह पर सवार होती हैं।
  • महत्व: यह शक्ति, वीरता और बुराई का नाश करने वाली देवी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को आत्मविश्वास और बुराई पर विजय प्राप्त होती है। विवाह संबंधी बाधाएं भी दूर होती हैं।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को लाल रंग के फूल और शहद का भोग लगाया जाता है।

7. मां कालरात्रि: अंधकार और भय का विनाशक

सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इनका स्वरूप अत्यंत भयंकर और काला है, लेकिन ये भक्तों को शुभ फल देती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहते हैं।

  • स्वरूप: मां कालरात्रि का रंग घना काला है, इनके बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं और चार भुजाएं हैं। इनका वाहन गधा है।
  • महत्व: यह अंधकार, अज्ञानता और भय का नाश करती हैं। इनकी पूजा से नकारात्मक शक्तियों और बुरी नज़र से मुक्ति मिलती है।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को नीले वस्त्र और गुड़ का भोग लगाया जाता है।

8. मां महागौरी: पवित्रता और शांति की प्रतीक

नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। इनका स्वरूप अत्यंत शांत, निर्मल और सफेद है, इसलिए इन्हें महागौरी कहते हैं।

  • स्वरूप: मां महागौरी की चार भुजाएं हैं। दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में डमरू होता है। वह सफेद बैल पर सवार होती हैं।
  • महत्व: यह पवित्रता, शांति और मोक्ष की देवी हैं। इनकी पूजा से भक्तों के पाप नष्ट होते हैं और उन्हें शुद्धता की प्राप्ति होती है।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को सफेद फूल, नारियल और हलवा-पूरी का भोग लगाया जाता है। कन्या पूजन भी इसी दिन होता है।

9. मां सिद्धिदात्री: सिद्धियों और ज्ञान की प्रदाता

नवरात्र के नौवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। यह सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी हैं।

  • स्वरूप: मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान होती हैं और इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिने हाथ में चक्र और गदा, तथा बाएं हाथ में शंख और कमल का फूल होता है।
  • महत्व: यह अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी आठ सिद्धियां प्रदान करती हैं। इनकी पूजा से ज्ञान, सिद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पूजा विधि: इस दिन मां को बैंगनी या जामुनी वस्त्र और तिल का भोग लगाया जाता है। हवन और पूर्णाहुति के साथ नवरात्र का समापन होता है।

शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के इन नौ रूपों की उपासना से भक्तों को आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्ति मिलती है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और जीवन में सकारात्मकता लाने का अवसर प्रदान करता है।

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