
Kushagrahani Amavasya Special: मृतक जीव को विष्णुलोक तक जाने का साधन भी है कुश, जानिए इसका महत्व

कुश के महत्व के बारे में जितना कहा जाय कम है। कुशग्रहणी अमावस्या का दिन आज यानि कि 6 सिंतम्बर को हैं। लेकिन अमावस्या दूसरे दिन 7 सितम्बर को भी सुबह 6 बजे तक है। ऐसे में सुबह स्नान के बाद पवित्र वस्त्र पहन कर कुश (kush grass) निकालना चाहिए। कहा जाता है कि कुशा एक ऐसी वस्तू है जो मृतक को स्पर्स कराने से वह यम ताडना से बच जाता है। और जीव सीधे विष्णु लेक जाता है।
आइये जानते हैं क्या है महत्व / kush grass importance:
व्यक्ति की मृत्यु के समय इस कुश का बडा ही महत्व है। मान्यता है कि जब व्यक्ति की मृत्यु होने वाली होती है। मृतक को अपने मरने का पूर्वाभाष हो जाता है। उस समय उसके हाथ से कई तरह के दान परिजनों द्वारा करवाए जाते हैं। जिसमे कुश (kush) का होना आवश्यक है।
दान के समय कुश (kush) का होना बहुत आवश्यक है। कुशा लेकर ही गौदान करवाया जाता है। कहा जाता है कि गाय के दान करने से मृतक को सदगति प्रप्त होती है। गाय उसे वैतरणी से निकला ले जाती है।
वही दान के बाद जब मृतक के प्राण निकलने वाले होते हैं। उसे भूमि पर लेटाने से पहले उक्त भूमि के गाय के गोबर से लीप पोत कर स्वच्छ कर दे। उस पर कुश बिछा देना चाहिए। बाद में उस व्यक्ति को लेटा देना चाहिए।
इस तरह करने का महत्व है कि केवल पवित्र कुशा में मृतक के शरीर का स्पर्स रहता है। ऐसे में मान्यता है कि कुशा को देखकर यम के दूत भाग जाते है। उस मृतक की अंतिम यात्रा भगवान श्री मन्नारायण के दूतों के साथ होती है। और वह दूत मृतक जीव को भगवान विष्णु के लोक ले जाते हैं और मृतक जीव यम ताड़ना से बच जाता है।
ग्रहण के समय कुशा का उपयोग
ग्रहण पडने पर गीली वस्तुएं अपवित्र हो जाती है। जिस गीली वस्तु को हम फेंक नही सकते जैसे पानी से भरी टंकी, घर में रखा दूधा, मट्ठा आदि जैसी चीजे को ग्रहण के समय गीला होने से बचाने के लिए उसमें कुशा डाल दिया जाता है। जिससे वह पवित्र रहता है।
वही कुश का उपयोग हर पूजा के समय किया जाता हैं। कहा जाता है कि कुश से लिपटा हुआ जब भगवान पर छोडा जाता है उसे अत्याधिक पवित्र या गंगाजल से भी ज्यादा पवित्र माना गया है।