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Sidhi : आदिवासी परिवार की दर्द भरी दास्ता, दो माह के अंदर कोरोना ने तीन लोगों को छीन लिया, बेसहारा हुई बेटी

News Desk
9 Jun 2021 9:05 AM GMT
Sidhi : आदिवासी परिवार की दर्द भरी दास्ता, दो माह के अंदर कोरोना ने तीन लोगों को छीन लिया, बेसहारा हुई बेटी
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सीधी। कोरोना ने कई परिवारों पर ऐसा संकट बरपाया है कि बच्चे बेसहारा हो गये हैं। देखते ही देखते माता-पिता, दादा-दादी दुनिया से विदा हो गये और बच्चों को अनाथ कर गये। ऐसी ही एक दुखद कहानी सीधी जिले के मझौली नगर क्षेत्र के वार्ड 12 में रहने वाले एक गरीब आदिवासी परिवार की है। वाहन और पैसों के अभाव में भी लोगों की जान चली गई।

सीधी। कोरोना ने कई परिवारों पर ऐसा संकट बरपाया है कि बच्चे बेसहारा हो गये हैं। देखते ही देखते माता-पिता, दादा-दादी दुनिया से विदा हो गये और बच्चों को अनाथ कर गये। ऐसी ही एक दुखद कहानी सीधी जिले के मझौली नगर क्षेत्र के वार्ड 12 में रहने वाले एक गरीब आदिवासी परिवार की है। वाहन और पैसों के अभाव में भी लोगों की जान चली गई।

आपको बता दें कि आदिवासी परिवार में संकट का दौर शुरू हुआ और अचानक तबियत खराब हुई जहां कुसुमकली पति डहरू कोल 46 वर्ष की 15 अप्रैल को मौत हो गई। इसके 15 दिन बाद 1 मई को सास बुधनी पति कुमारे की मृत्यु हो गई। फिर 1 जून को उसके पति डहरू पिता कुमारे की मौत हो गई। जबकि कुमारे गंभीर रूप से बीमार है। अब परिवार में एक 20 वर्षीया बेटी सीमा व उसका छोटा भाई बचे हैं।

बेसहारा बेटी सीमा ने बताया

सीमा ने बताया कि 14 अप्रैल को मां कुसुमकली की तबीयत ज्यादा खराब होने पर उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मझौली साइकिल से ले गई थी जिसके मुंह से झाग निकल रहा था और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी लेकिन मझौली के डॉक्टरों ने बिना दवा उपचार किए दूर से ही देखकर सीधी जाने की सलाह दे दी जबकि जांच तक नहीं की गई। वाहन के अभाव में उस दिन वह अपनी मां को सीधी नहीं ले जा सकी और दूसरे दिन उसकी मृत्यु हो गई। उसके पिता डहरू व दादी बुधनी की भी मृत्यु उसी तरह हुई है। जिनमें वही लक्षण दिख रहे थे। ऐसे में बेसहारा लड़की अपने छोटे भाई के साथ जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रही है।

नहीं मिली कहीं से कोई मदद

पीड़ित परिवार के पास ना तो कोई जमीन जायदाद है और ना ही जीविका का कोई सहारा है। इसके बावजूद न तो शासन-प्रशासन से कोई मदद मिल सकी है और न सामाजिक संगठनों द्वारा कोई पहुंचाई जा सकी। सीमा मझौली कालेज में बीए द्वितीय बर्ष की छात्रा भी है। माता-पिता मजदूरी करके जीवन यापन के साथ-साथ उसके पढ़ाई का खर्च भी उठाते थे। अब इन बेसहारा बच्चों के ऊपर माता-पिता का साया नहीं रहा और ना ही आजीविका का कोई सहारा ही है ऐसे में इनके लिए जीवन यापन करना काफी कठिन और संघर्षमय है।

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