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सीधी : मोदी विजिट ने बदल कर रख दी सीधी लोस की आवोहवा, टेढ़ी हुई कांग्रेसी चाल

सीधी। मध्यप्रदेश में लोकसभा के पहले चरण चुनाव कल है। विंध्य के सीधी और शहडोल लोकसभा सीट में वोट डाले जाएंगे। सीधी संसदीय क्षेत्र का चुनावी परिदृश्य अब साफ होने लगा है। मतदान के 3 दिन पहले सीधी में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आगमन के बाद सियासी फिजा बदलती नजर आ रही है, जो कांग्रेस के भविष्य के लिए ठीक संकेत नहीं है। एक तो कांग्रेस के कोई स्टार प्रचारक प्रचार करने तक नहीं पहुंचे, जबकि भाजपा ने सीधे पीएम की सभा करा दी। आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के लिए लोगों की पहली पसंद बने हैं। मगर उनकी लोकप्रियता वोट में तदील होगी या नहीं, इसका फैसला 29 अप्रैल को होगा। यहां का हाल यह है कि कांग्रेस ने ठीक से संगठित काम नहीं किया है, जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है।
मोदी ने ली भाजपा नेताओं की क्लास सियासी गलियारे में चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सभा के तुरंत बाद प्रत्याशी ने कुछ कहा, इसके बाद उन्होंने भाजपा नेताओं की लास ली और कहा कि जीत का लक्ष्य हासिल नहीं हुआ तो खैर नहीं.....। इस बात की चर्चा भी गरम है कि उनका इशारा विधायक केदारनाथ शुला की तरफ था। इस मामले में भाजपा विधायक केदार शुला का कहना है प्रत्याशी ने पीएम से या कहा? यह तो उन्हें मालूम नहीं,पर पीएम ने मुझसे कुछ नहीं कहा। इधर केदारनाथ शुला एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें उन्होंने कहा है सीधी में मुकाबला मोदी और अजय सिंह के बीच है। प्रत्याशी का यहां कु छ भी नहीं है। उन्होंने कुछ नहीं किया है जो भी किया है मोदी ने किया है, उनकी लहर है। विधायक शुला का कहना है कि इसीलिए तो मोदी ने सभा स्थल से प्रत्याशी का नाम तक नहीं लिया।
ये होंगे निर्णायक वोट जातीय समीकरण में यह भी खास बात है कि 37 प्रतिशत गोंड वोट जिधर गए। वह सांसद बन जाएगा। अगर ओबीसी वोट की बात करें तो 28 प्रतिशत वोट भी अहम भूमिका सीधी का सांसद चुनने में रखेंगे। एससी 13 प्रतिशत, ब्राह्मण 9 प्रतिशत, क्षत्रिय 7 प्रतिशत, अल्पसंयक 3.2 प्रतिशत मतदाता रहते हैं। यह एक ऐसी सीट रही है जिस पर कभी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा है। यहां पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच बराबरी का ही मुकाबला रहा है। सीधी सीट भाजपा लगातार दो बार से यहां पर चुनाव जीतने में सफल रही है। ऐसे में बीजेपी की नजर इस बार फिर 2019 के चुनाव में हैट्रिक लगाने की है तो कांग्रेस भी लंबे अंतराल से अपने खाली हाथ को भरने में पूरा जोर लगा रही है।
10 फीसदी का होगा अंतर! चुनावी समीक्षा में कहा जा रहा है जो भी पार्टी विजेता होगी। उसकी और द्वितीय स्थान पर रहने वाली पार्टी के मतों में अधिक से अधिक 10 प्रतिशत का अंतर हो सकता है। हालांकि, भाजपा के दो पंचवर्षीय के परिणाम इस कयास को झुठला रहे हैं, लेकिन भाजपा में आपसी विरोध व सांसद के लिए जनता के बीच उनकी घटती लोकप्रियता सहित कांग्रेस का सीधी लोकसभा की सात विधानसभा सीटों में सफाया किसी परिणाम को लेकर सवाल खड़ा कर रहा है। कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं मानी जा रही है।
माना जा रहा है कि सिंगरौली में भाजपा को मजबूत माना जा रहा है तो कांग्रेस का हाल यह है कि वह पूरे संसदीय क्षेत्र में अपनी जड़ें तक नहीं जमा सकी है। इस अंचल का सियासी मिजाज शुरू से ही अजीब रहा है। जब मध्यप्रदेश की सत्ता पर भाजपा काबिज होती है तो कांग्रेस इस क्षेत्र में बढ़त हासिल कर लेती है। वहीं, जब कांग्रेस की लहर होती है तो भाजपा इस क्षेत्र में आगे होती है। विंध्य क्षेत्र के पिछडऩे का एक कारण यह भी रहा है। जब 2018 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो 30 विधानसभा सीटों में से 6 सीटें हासिल हुई। इसी चुनाव में कांग्रेस पार्टी के बड़े उमीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस पार्टी दो लाख 10 हजार वोट से पीछे थी। इस अंतर को पाटना अजय सिंह के सामने बड़ी चुनौती है। अगर इस चुनाव में वे हारते हैं तो उनका राजनीतिक सूर्य अस्त हो सकता है। इसलिए यह चुनाव उनके लिए करो या मरो का चुनाव माना जा रहा है।