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चुरहट विधानसभा: दादा ने पिता को हराया था, अब पोते ने बेटे को, पढ़ें पूरी खबर...

भोपाल/सीधी/रीवा। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुके हैं। जनता ने कांग्रेस एवं भाजपा दोनो को ऐसी दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है कि दोनो राष्ट्रीय दलों के पास स्पष्ट बहुमत नहीं हैं। बावजूद 230 सीटों में से 114 सीट जीतने वाली कांग्रेस बसपा, सपा एवं निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बना रही है।
विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश भर की निगाहें मध्यप्रदेश की हाईप्रोफाईल सीट चुरहट पर टिकी रही। यह सीट यूपीए सरकार के केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस से मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कुंवर अर्जुन सिंह के बेटे अजय राहुल सिंह की थी। इस सीट पर कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रहें अजय सिंह राहुल को हरा पाना एक टेढ़ी खीर के समान माना जाता रहा है। परंतु इस बार जनादेश राहुल के हित पर नहीं रहा, राहुल को भाजपा के शरदेंदु तिवारी ने 6402 मतों के साथ पराजित कर एक वैसा ही इतिहास रच दिया है जैसा इतिहास शरदेंदु के दादा चंद्रप्रताप तिवारी ने 1967 के विधानसभा चुनाव के दौरान अजय सिंह राहुल के पिता स्व. अर्जुन सिंह को हराकर रचा था। चंद्रप्रताप प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से विधायक निर्वाचित हुए थें। इसके बाद वे 1972 में सीधी से विधायक निर्वाचित हुए, उनकी पार्टी का विलय कांग्रेस में हुआ एवं चंद्रप्रताप कांग्रेस सरकार में वनमंत्री रहें। फिर 1977 के चुनाव में गोपदबनास से हारने के बाद चंद्रप्रताप ने राजनीति से संन्यास ले लिया था।
दरअसल 1957 के दौरान निर्दलीय विधायक बनकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले अर्जुन सिंह बहुत ही कम समय में राष्ट्रीय स्तर के नेता बनकर उभरने लगें। वे गांधी परिवार के भी काफी करीबी होते गएं। समय बीतता गया अर्जुन सिंह देश के राजनीतिक चाणक्य बन गएं पर समय कब किस करवट बदल जाए यह कहा नही जा सकता। राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले अर्जुन सिंह को उस दौर से भी गुजरना पड़ा जब वे अपनी ही सीट गवां बैठे। 1967 के विस चुनाव में चुरहट विस क्षेत्र से चंद्रप्रताप तिवारी ने अर्जुन सिंह को उनके क्षेत्र में ही पटखनी दे दी। अर्जुन सिंह वह चुनाव 2800 मतों से हार चुके थें।
श्री सिंह वह चुनाव तो हार गएं परंतु उनकी राजनैतिक गाड़ी वहीं नहीं थमी। वे जीत के साथ साथ राजनीति की किताबों में नए-नए पन्ने जोड़ते गएं। 1972 में पुनः जीत हासिल की और कांग्रस के सरकार में शिक्षा मंत्री बनें। 1977 से 1980 तक वे मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष भी रहें। इस दौरान उनकी राजनीति उन्हे केन्द्र की तरफ भी खीचने लगी। परंतु उन्होने 1980 में मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हाली। वे 1980 से 85 तक मध्यप्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री रहें। 1985 के दौरान वे पंजाब के राज्यपाल रहें। इसके बाद 1988 से 89 तक उन्होने पुनः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद सम्हाला। इसके बाद उन्होने केन्द्र की ओर रूख किया।
आज वही समय दोहराया गया है। विन्ध्य के पन्नों में एक और इबारत लिख गई। 1967 के दौरान कुंवर अर्जुन सिंह को हराने वाले चंद्रप्रताप तिवारी के पोते शरदेंदु तिवारी ने अजय सिंह राहुल को हरा दिया। अजय सिंह राहुल अपने पिता की ही भांति एक नेक राजनेता के तौर पर उभरे। विन्ध्य की जनता उन्हें कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी मानती थी। परंतु चुरहट का जनादेश कुछ और ही इबारत लिख गया।
चुरहट के विधायक अब शरदेंदु तिवारी हैं। जिनके सामने कई जिम्मेदारियां भी हैं। क्षेत्र की बुनियादी व्यवस्थाओं के साथ रोजगार, सड़क, बिजली और पानी की अव्यवस्थाओं से जूझ रही जनता ने जिस विकास के नाम पर भाजपा के शरदेंदु को विधायक चुना वह काम पूरा करना शरदेंदु के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।