सतना

World Environment Day Special: सतना के शिक्षक का बगीचा दे रहा पर्यावरण संरक्षण का संदेश

World Environment Day Special: सतना के शिक्षक का बगीचा दे रहा पर्यावरण संरक्षण का संदेश
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World Environment Day Special : सतना जिले (Satna District) के कोठी कस्बे से लगे सोनौर गांव में एक शिक्षक ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ऐसा  कदम बढ़ाया की उसकी हर कोई प्रशंसा कर रहा है। कोरोना काल मे इस पर्यावरण प्रेम की अहमियत और भी बढ़ जाती है, जब कोरोना काल मे लोग ऑक्सीजन के लिए लोग तरसते दिखे।

World Environment Day Special : सतना जिले (Satna District) के कोठी कस्बे से लगे सोनौर गांव में एक शिक्षक ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ऐसा कदम बढ़ाया की उसकी हर कोई प्रशंसा कर रहा है। कोरोना काल मे इस पर्यावरण प्रेम की अहमियत और भी बढ़ जाती है, जब कोरोना काल मे लोग ऑक्सीजन के लिए लोग तरसते दिखे। वहीं इस शिक्षक ने भविष्य में ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए अपनी करोड़ो की व्यावसायिक जमीन को बगीचे में तब्दील कर दिया है।

तीन एकड़ भूमि पर उनका बगीचा गुलजार हो रहा है और खुशबुदार हवा हर किसी को प्रफुल्लित कर रही है शिक्षक के बगीचे में 20 प्रजाति के आमो के साथ आंवला, नीबू, अमरूद, कटहल सहित दर्जनों प्रकार के फलदार पेड़ फलों से लदे हुए हैं, तो कई प्रकार के औषधीय पौधों से बगीचा गमक रहा है।

यह कहानी है अमिलिया गांव में पदस्थ शासकीय शिक्षक बुधेन्द्र सिंह की। सतना जिले के कोठी कस्बे से लगे गांव सुनौर निवासी बुधेन्द्र ने पेड़-पौधे के महत्व को समझा। दरअसल बुधेन्द्र कुछ वर्ष पूर्व प्रतापगढ़ गए और राजा रघुराज सिंह के बाग-बगीचों का दीदार किया।

उन्होने वहीं दृढ़ संकल्प लिया कि वो भी कुछ इसी प्रकार का काम अपने यहां करेगे। बुधेन्द्र ने अपने घर से लगीं व्यावसायिक जमीन को किसी व्यवसाय में नही बल्कि बगीचे के लिए समर्पित कर दी।

तीन एकड़ भूमि पर बगीचा लगाना शुरू किया और अब उनका बगीचा गुलजार हो चुका है। इस बगीचे में आम के लगभग हर प्रजाति के बीस प्रकार के आम फलना शुरू हो गये हैं। तो अमरूद की दर्जन भर प्रजातियों के फल लग रहे हैं।

इनके बगीचे में आंवला भी बड़ी संख्या में है, तो कटहल जड़ से लेकर तने तक फलों से लदी हुई है। नीबू हो या फिर विटामिन-सी के सबसे महत्वपूर्ण फल करौंदा की हर प्रजाति फलफूल रही है।

यहां सतावर, तुलसी, अश्वगंधा, लालवंती सहित दर्जनों औषधीय पौधे हैं, तो फूलों में परिजात जैसी प्रजाति भी है। इस बगीचे में फूलों की महक से हर कोई आनंदित हो रहा है।

बुधेन्द्र की माने तो इनके लगाये हर पेड़ अब फल-फूल से लद गए हैं और लगातार नए पेड़ लगाकर इसमे अपनी यादे बसा दी हैं, ताकि आगे आने वाली पीढ़ी उन्हें भले ही भूल जाये पर जब इन पेड़ों को देखेगी तो उनको याद जरूर करेगी। बुधेन्द्र की माने तो सुबह उठाकर उनकी दिनचर्या इन्ही पेड़ो की सेवा से शुरू होती है। इन् पेड़ो में उन्हें साक्षात ईश्वर का रूप नजर आता है।

बुधेन्द्र के बगीचे में लगभग 300 से ज्यादा पेड़-पौधे न केवल शुद्ध ऑक्सीजन दे रहे हैं, बल्कि फलों से लदे हुए है। इस बगीचे में फूलों की खुशबू हर किसी का मन-मुग्ध करती है। बुधेन्द्र की माने तो कोरोना काल मे लोग ऑक्सीजन की कमी से हजारां मरीजो की मौत भी हुई। अब लोगो को पेड़-पौधों के महत्व को समझना होगा। उनकी अपील है कि हर व्यक्ति पेड़ लगाये ताकि भविष्य में ऑक्सीजन की कमी नही हो। बुधेन्द्र पर्यावरण को लेकर भी जागरूक है।

उनके हाथों से लगे पेड़ अब फल फूल रहे है। उनके पुत्र सूर्य प्रताप सिंह भी पिता के इस नेक काम की सराहना कर रहे हैं। उनकी माने तो पिता के इस कार्य मे कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं और आगे भी इसे सजोकर रखेगे। पिता की यादे इसमे हमेशा उनके साथ जुड़ी रहेंगी ।

शिक्षक बुधेन्द्र सिंह का कहना है कि कोरोना काल में लोगो को पेड़-पौधों का महत्व समझ मे आ चुका है। सरकारे भी वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की बात कर रही है।

जनप्रतिनिधि वृक्षारोपण का संदेश दे रहे हैं। जरूरत है लोगो को भी आगे आने की, वह वृक्षारोपण करे और फिर उन पेड़-पौधों की देखभाल करें ताकि रोपे गए पौधे पेड़ में तब्दील हो और स्वच्छ वातावरण का निर्माण हो सके। इतना ही नही सरकार को भी संख्त कानून बनाने होंगे ताकि चंद पैसे की लालच में कोई हरे-भरे पेड़ो का कत्ल नहीं करे।

Suyash Dubey | रीवा रियासत

Suyash Dubey | रीवा रियासत

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