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होलिका पर्व के लिए शुभ मुहूर्तों पर लगेगा विरामः REWA NEWS
रीवा। चंद्रमास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है। होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इस वर्ष 9 मार्च को होलिका दहन एवं 10 मार्च को होली का पर्व है। होली तिथि की गिनती होलाष्टक के आधार पर होती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर आठवें दिन यानी होलिका दहन तक होलाष्टक रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के आठ दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। होलाष्टक के दौरान शुभकार्य करने पर अशुभ होने अथवा बनते कार्य के बिगड जाने की संभावना रहती है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में समस्त प्रकार के शुभ कार्य संपादित नहीं किए जाते हैं।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि होलाष्टक का आशय है होली के पूर्व के आठ दिन, जिसे होलाष्टक कहते हैं। धर्मशास्त्रों में वर्णित 16 संस्कार जैसे- गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूडाकरण, विद्यारंभ, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, गृह शांति, हवन-यज्ञ कर्म आदि नहीं किए जाते। इन दिनों शुरू किए गए कार्यों से अनिष्ट की संभावना बनती है। इन दिनों हुए विवाह से रिश्तों में अस्थिरता आजीवन बनी रहती है। इस प्रकार से होली के 8 दिन पूर्व से समस्त प्रकार के शुभ मुहूर्त पर विराम लग जाता है।
होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर प्रतिपदा तक रहता है। इसके कारण प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। 3 मार्च उदया अष्टमी से 9 मार्च के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी। होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक समाप्त हो जाएंगे। होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार होलाष्टक का प्रभाव समस्त उत्तरी भारत में पर्याप्त रूप से व्याप्त रहता है तथा इसकी मान्यता भी कही गई है।
होलाष्टक को लेकर पौराणिक मान्यता
बताते है कि दैत्य राज हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को भक्त प्रहलाद को बंदी बना लिया और यातनाएं दी थीं। होलिका ने भी प्रह्लाद को जलाने की तैयारी इस दिन से शुरू कर दी थी और स्वयं होलिका दहन के दिन भस्म हो गई थी।
होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता
होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्घ कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी घास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है,उसके बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
होलाष्टक के दिन से शुरू होने वाले कार्य
सबसे पहले होलाष्टक शुरू होने वाले दिन से होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन स्थान को गंगा जल से शुद्घ कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। मुख्य रूप से होलिका दहन की तैयारियां प्रारंभ करने के लिए इन 8 दिन की अवधि निर्धारित की गई है जो कि होलिका दहन के लिए शुभ लेकिन मंगल कार्यों के लिए अशुभ है।
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कर्म किए जाते है। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
क्यों होते हैं ये अशुभ दिन
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। ग्रहों की इस उग्रता का प्रभाव मनुष्य की चेतना पर पडता है, जो कि होलिका दहन एवं उसके अगले दिन उत्सव के रूप में अबीर गुलाल की होली के पश्चात ही शांत होती है। ज्योतिष कि इसी मान्यता के चलते होलाष्टक के 8 दिन महत्वपूर्ण माने गए हैं।
होलाष्टक से आठ दिनों तक किसी भी तरह के शुभ कार्य नही किए जाते है। शास्त्रों में इसका साफ उल्लेख है। ऐसे में 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नही हो पाएंगे।
राजेश साहनी, ज्योतिर्विद।