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रीवा की सीट में हर बार बदल जाता है जनता का मिजाज, पढ़िए पूरी समीकरण

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:05 AM GMT
रीवा की सीट में हर बार बदल जाता है जनता का मिजाज, पढ़िए पूरी समीकरण
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भोपाल। प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों में से आधा दर्जन ऐसी हैं, जहां के मतदाताओं का मिजाज हर चुनाव में बदलता रहा है। उन्होंने कभी पार्टी तो कभी प्रत्याशी को महत्व दिया, लेकिन एक ही दल को लगातार मौका नहीं दिया।

धार में 2004 में भाजपा के छतर सिंह दरबार, 2009 में कांग्रेस के गजेन्द्र सिंह राजूखेड़ी और 2014 में भाजपा की सावित्री ठाकुर को लोकसभा भेजा। खंडवा की जनता ने 2004 में भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान, 2009 में कांग्रेस के अरुण यादव और 2014 में फिर भाजपा के नंदकुमार को सांसद चुना।

उज्जैन के मतदाताओं ने 2014 में भाजपा के सत्यनारायण जटिया, 2009 में कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू और 2014 के चुनाव में फिर भाजपा पर भरोसा किया। भाजपा के चिंतामणी मालवीय सांसद चुने गए।

खरगोन में 1999 में कांग्रेस, 2004 में भाजपा और 2007 के चुनाव में फिर कांग्रेस को मतदाताओं ने पसंद किया। 2009 और 2014 के चुनाव में यहां से लगातार भाजपा जीती। मंदसौर और मंडला के मतदाताओं का भी ऐसा ही मिजाज रहा। 2004 में भाजपा, 2009 में कांग्रेस और 2014 में फिर से भाजपा उम्मीदवार यहां जीता।

इन सीटों पर चेहरों को महत्त्व राजगढ़, रीवा और होशंगाबाद में चेहरों को महत्त्व दिया जाता है। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह 1999 में कांग्रेस से राजगढ़ सीट से जीते। वे 2004 में भाजपा से मैदान में आए और जनता ने फिर जिताया।

रीवा के महाराज मार्तण्ड सिंह ने 1980 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद 1977 के चुनाव में सांसद बने, लेकिन वे कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में रहे। इसके पहले वे 1971 में यूनाटेड इंटरपार्लियामेंट्री ग्रुप से भी सांसद रहे चुके हैं।

होशंगाबाद से राव उदय प्रताप सिंह 2009 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार थे। मतदाताओं ने उन्हें लोकसभा पहुंचाया। वे 2014 के चुनाव में भाजपा से मैदान में आए। मतदाताओं ने उन्हें फिर जिताया।

मतदाता चाहता है कि क्षेत्र में विकास कार्य होते रहें, इसलिए वह सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को पसंद करता है। उम्मीदवार के काम को भी महत्त्व मिलता है। - भगवानदेव इसराणी, राजनीति विश्लेषक एवं पूर्व पीएस विधानसभा

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