रीवा

अमहिया की राजनीति हुई खत्म, नहीं भेद पाये सिद्धार्थ रीवा का गढ़, जनता को फिर मोदी पर भरोसा

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:07 AM GMT
अमहिया की राजनीति हुई खत्म, नहीं भेद पाये सिद्धार्थ रीवा का गढ़, जनता को फिर मोदी पर भरोसा
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रीवा। रीवा लोकसभा सीट से भाजपा के जनार्दन मिश्रा विजयी रहे। उन्होंने कांग्रेस के सिद्धार्थ तिवारी को 3 लाख 10 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी। इस सीट पर बसपा को भी 76 हजार से ज्यादा वोट मिले। लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण में 6 मई को रीवा सीट पर मतदान हुआ था, यहां 60.38 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। रीवा में मुख्य मुकाबला भाजपा के जर्नादन मिश्रा और कांग्रेस के सिद्धार्थ तिवारी 'राज' के बीच ही रहा।

इस सीट पर सिरमौर, त्योथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगंवा, रीवा और गुढ क्षेत्र आता है। विंध्य क्षेत्र की राजधानी रहा रीवा आजादी के बाद से ही राजनीति का केन्द्र बिन्दु रहा है। 1957 में विंध्य की चार संसदीय सीटों में से रीवा भी शामिल था। रीवा में कांग्रेस, बसपा और भाजपा का दबदबा रहा है। 1999 में आखिरी बार कांग्रेस को रीवा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के नेतृत्व में मिला था। इस क्षेत्र में सदैव त्रिकोणीय संघर्ष रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के जर्नादन मिश्रा ने यहां से जीत दर्ज की थी।

रीवा सीट का इतिहास

1951 में पहली बार कांग्रेस से राजभान सिंह तिवारी सांसद चुने गए थे। 1957 में फिर नेशनल कांग्रेस से शिवदत्त तिवारी ने फतह हासिल की। 1962 में शिवदत्त सिंह जिले के जनप्रतिनिधि बने। जबकि 1967 में नेशनल कांग्रेस से शम्भूनाथ शुक्ल सांसद चुने गए थे। 1971 में लोकसभा चुनाव नेशनल कांग्रेस का जादू नहीं चल पाया और महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव रीवा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए थे। लगभग 20 वर्ष तक नेशनल कांग्रेस का दबदबा रहा और निर्दलीय प्रत्याशी ने इसे समाप्त किया था। 1977 में भारतीय लोक दल से यमुना प्रसाद शास्त्री को सांसद चुना गया। नेत्रहीन होने के बाद भी यहां के जनमानस ने उन्हें प्रतिनिधित्व दिया था। 1980 में दूसरी बार महाराजा मार्तण्ड सिंह निर्दलीय चुनाव जीते थे।

14 वर्षों के वनवास के बाद 1984 में नेशनल कांग्रेस की जीत हुई और महाराजा मार्तण्ड सिंह पार्टी के सिंबल पर चुनाव जीते थे। 1989 में यमुना प्रसाद शास्त्री जनता पार्टी से सांसद चुने गए। वर्ष 1991 में पहली बार रीवा से बहुजन समाज पार्टी का खाता खुला और भीम सिंह पटेल सांसद चुने गए थे। 1999 में नेशनल कांग्रेस ने अपनी जगह दोबारा बनाई और सुंदरलाल तिवारी सांसद चुने गए। 2004 में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर रीवा से बाहर हो गई और भारतीय जनता पार्टी चंद्रमणि त्रिपाठी सांसद चुने गए। 2009 में बसपा के देवराज पटेल को जीत मिली। 2014 में भाजपा से सांसद जनार्दन मिश्रा जीत दर्ज करके प्रतिनिधित्व किया।

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