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रीवा रियासत के महाराज मार्तण्ड सिंह जब पहली बार 1971 में कूदे थे चुनावी मैदान में, पढ़िये पूरी कहानी जिससे आप है अनजान

रीवा। देश में हुए पहले चार लोकतंत्रीय चुनाव प्रक्रिया से रीवा राजघराना दूर रहा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब राजभत्ता (royal allowance) बंद किए तो देश के अन्य रियासतदारों (princely states) के साथ ही रीवा राजघराने (Rewa royal family) ने भी लोकतंत्र (democracy) की राह पकड़ी।
तत्कालीन महाराजा मार्तंड सिंह (Maharaja Martand Singh) ने जनसंघ के सहयोग से पहली बार रीवा संसदीय क्षेत्र के मैदान में उतरे और रिकार्ड मतों से जिताया था जो अभी तक टूट नहीं पाया है।
महाराजा मार्तंड सिंह रीवा रियासत संसदीय क्षेत्र से तीन बार सांसद चुने गए। हालांकि 1977 के चुनाव में वह हार गए थे। दरअसल 1947 में आजाद होने के बाद देश में लोकतंत्रीय व्यवस्था शुरू हुई। आजादी के पूर्व देश छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था। 1950 में भारतीय संघ की स्थापना हुई।
देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल की अगुवाई में रीवा राज्य सहित देश की अन्य सभी रियासतों का भारतीय संघ में विलय किया गया। जब रियासतों का विलय किया गया तो ब्रिटेन की भांति भारत में रियासतदारों को जीवन निर्वहन के लिए राजभत्ता की व्यवस्था की गई। छोटी-बड़ी रियासतों के हिसाब से उनका राजभत्ता भी निर्धारित किया गया। 1951 में देश में पहलीबार आम चुनाव हुआ।
जिसमें रीवा राजघराना शामिल नहीं हुआ। रीवा से राजभानु सिंह तिवारी कांग्रेस उमीदवार के रूप में मैदान में उतरे और जीते भी। 1957 व 1962 के चुनाव में उत्तराखंड के शिवदत्त उपाध्याय रीवा आकर चुनाव लड़े व जीते भी।
1967 के चुनाव में तत्कालीन विंध्य प्रदेश में इकलौते मुयमंत्री व शहडोल निवासी पंडित शंभूनाथ शुक्ल कांग्रेस से चुनाव लड़े व जीते, लेकिन रीवा राजघराना लोकतंत्रीय व्यवस्था से दूरी बनाए रहा।
1971 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रीवा सहित देश के अन्य रियासतदारों को मिलने वाले राजभत्ता (प्रिवी पर्स) को बंद करने का ऐलान किया तो कान खड़े हुए। अन्य रियासतदारों के साथ ही रीवा राजघराना ने भी लोकतंत्र की राह पकड़ा। तत्कालीन रीवा रियासत के महाराजा मार्तंड सिंह रीवा संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे।
रीवा रियासत के अंतिम शासक जिन्हें रिमही आवाम अन्नदाता की संज्ञा देकर दर्शन मात्र के लिए किला आती थी उसी रियाया की ड्योढ़ी दर ड्योढ़ी दस्तक देने पहुंचे। जनता ने भी उन्हें हाथो-हाथ लिया और लगभग 2 लाख मतों के रिकार्ड अंतर से चुनाव भी जिताया जो आज तक बना हुआ है। हांलाकि महाराजा मार्तंड सिंह के बाद वही रिमही आवाम राजघराने के वारिसों को संसद तक पहुंचने का अवसर नहीं दिया।
दो बार महारानी मैदान में उतरी और एक बार उनके पुत्र पुष्पराज सिंह भी भाग्य अजमाए लेकिन दोनो सफल नहीं हो सके। हांलाकि पुष्पराज सिंह (Maharaja Pushpraj Singh) विधायक और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं, इसके अलावा उनके पुत्र दिव्यराज सिंह (Divyaraj Singh, MLA Sirmour, Rewa) सिरमौर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक हैं।




