रीवा

सफलता की कहानी: धान की नर्सरी ने सुरेंद्र को मालामाल किया, उन्नत खेती अपनाकर सर्वेश बने लखपती

सफलता की कहानी
x

सफलता की कहानी

रीवा। खेती में नवाचार अपनाकर सुरेंद्र कुमार के जीवन में नई खुशियां आ गई हैं तो सर्वेश का जीवन उन्नत खेती से बदल गया।

सफलता की कहानी: रीवा। खेती में नवाचार अपनाकर सुरेन्द्र कुमार के जीवन में नई खुशियां आ गई हैं। सिरमौर के ग्राम गोधा के सुरेन्द्र कुमार 2 एकड़ भूमि के स्वामी होते हुये भी अभावों में जीवन बसर कर रहे थे। इसका कारण था कि कड़ी मेहनत मशक्कत करने के बाद भी खेती से सुरेन्द्र के जीवन में कोई अशातीत परिवर्तन नहीं आया था। उनकी जमीन में धान 41 Ïक्वटल, गेंहू 18 Ïक्वटल तथा चना केवल 4 Ïक्वटल ही होता था। इन फसलों से उन्हें 50 हजार रूपये की आय ही हो पाती थी। इतनी कम आय प्राप्त होने से सुरेन्द्र ने अभाव की जिंदगी में जीना सीख लिया था।

कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से सलाह लेने पर उन्होंने खेती में नवाचार करने की सलाह दी और धान की नर्सरी लगाने कि विधि समझाई। 80 एकड़ में धान की नर्सरी लगाने पर 2.40 लाख Ïक्वटल धान का उत्पादन हुआ। धान के उत्पादन से 29.80 लाख रूपये की आय हुई। उपरोक्त आय से सुरेन्द्र के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन आया उनका जीवन बदल गया। वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूल भेजते है। सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि खेती से हुई आय से जीवन खुशहाल बन गया। अब किसी प्रकार की कोई कमी नही है। नवाचार करने से खेती करने के लिये नई राह आसान बन गई। उन्होंने कहा कि खेती में नवाचार करना बहुत फायदेमंद साबित हुआ है।

उन्नत खेती अपनाकर सर्वेश बने लखपती

रीवा जिले के कपसा स्थित अमरा ग्राम के सर्वेश का जीवन उन्नत खेती से बदल गया। सर्वेश ने बताया कि उनके पास 6 एकड़ जमीन है पारम्परिक रूप से खेती करने के कारण हर वर्ष कम फसल उत्पादन होने से मायूस होना पड़ता था एक साल भी मन माफिक फसल का उत्पादन नहीं हुआ। इससे सबसे बड़ी कमी यह आयी कि खेती से आय काफी कम हो गई। जिससे अचानक जीवन स्तर में बदलाव आया और अभावों के बीच जीवन यापन करना पड़ रहा था।

सर्वेश ने बताया कि इसी बीच कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक ने वैज्ञानिक विधि से खेती करने तथा खेती में यंत्रीकरण का उपयोग करने की सलाह दी। उनकी सलाह मानकर मैने प्रमाणित बीज खरीदें, खेती में जैविक खाद का उपयोग किया और बीच-बीच में फसल में लगे कीड़ों का उपचार किया। इससे पहली बार 114 क्विंटलधान, 102 क्विंटलगेंहू, 3.5 क्विंटल काला चना, 5 क्विंटलअलसी, 2 क्विंटल सरसों का उत्पादन हुआ।

सर्वेश ने बताया कि खेती के साथ डेयरी उद्योग प्रारंभ किया डेयरी में 5 हजार क्विंटल दूध का उत्पादन होता है। प्रतिदिन 25 हजार रूपये की आय तो दुग्ध उत्पादन से ही हो जाती थी। खेती से कुल 3.17 लाख रूपये की आय हुई। अब मैं अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ने भेजता हूं। परिवार की स्थिति में सुधार हुआ है। मेरे लिये खेती लाभ का धंधा साबित हुई है। उन्होंने कहा कि मेरी तरह सभी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से खेती करना चाहिये।

फसल विविधीकरण अपनाने से फसल उत्पादन दुगना हुआ

इधर, सतगढ़ ग्राम के शिवनारायण ने कभी सोचा भी नहीं था कि फसल विविधीकरण की प्रक्रिया अपनाने से प्रचुर मात्रा में उत्पादन होगा और उनके जीवन में परिवर्तन होगा। शिवनारायण ने बताया कि अपने खेतों में पारंपारिक रूप से धान, गेंहू, काला चना, एवं अलसी का उत्पादन लेते थे। रासायनिक उर्वरकों तथा घर में रखे बीज का उपयोग करने से 12. 13 क्विंटल ही धान होती थी। चार Ïक्वटल अलसी होती थी इसको बेचने पर 65, 70 हजार रूपये की आय हो पाती थी। उस आय से जैसे-तैसे गुजर बसर चला रहा था। आय इतनी नहीं होती थी कि कुछ बचत हो सके।

इसी बीच नेहरू कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करने पर उन्होंने फसल विविधीकरण की जानकारी बताई, वैज्ञानिक विधि से फसल उत्पादन लेने और जैविक खाद का उपयोग करने के लिये कहा उनकी सलाह पर रासायनिक उर्वरक की जगह जैविक खेती प्रारंभ की इसमें फसलों को एक साथ न बोकर अलग-अलग गेंहू एवं धान का उत्पादन लिया। वैज्ञानिक विधि से खेती करने के कारण इस बार भरपूर उत्पादन हुआ। धान, गेंहू अलसी प्रचुर मात्रा में हुई। इनको बेचने पर 12.60 लाख रूपये की आय हुई जिससे मेरा और मेरे परिवार के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आया/फसलों से हुई आय से मैने अपने जरूरत की सामग्री क्रय की। शिवनारायण शुक्ला ने बताया कि फसल विविधीकरण एवं उन्नत बीज से बोनी करने पर बम्पर फसल का उत्पादन होता है। आय भी अच्छी होती है।

Next Story