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रीवा के TRS कॉलेज में प्रेमचंद जयंती: हिंदी विभाग में 'कालजयी रचनाकार' पर हुआ विशेष व्याख्यान

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत
1 Aug 2025 11:41 AM IST
Updated: 2025-08-01 19:28:06
रीवा के TRS कॉलेज में प्रेमचंद जयंती: हिंदी विभाग में कालजयी रचनाकार पर हुआ विशेष व्याख्यान
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रीवा के शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय में प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर एक व्याख्यान का आयोजन हुआ. वक्ताओं ने प्रेमचंद को 'कालजयी रचनाकार' बताते हुए उनके सामाजिक यथार्थवाद पर प्रकाश डाला.

रीवा के टीआरएस कॉलेज में प्रेमचंद जयंती का आयोजन: रीवा के शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय (TRS College) के हिंदी विभाग द्वारा गठित 'हिंदी क्लब' के अंतर्गत, आज महान साहित्यकार प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर 'कालजयी रचनाकार प्रेमचंद' विषय पर एक व्याख्यान प्रस्तुत किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ हुआ. हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. भूपेंद्र सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. शिप्रा द्विवेदी और विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. वंदना त्रिपाठी, डॉ. विनोद विश्वकर्मा और डॉ. प्रदीप विश्वकर्मा मौजूद रहे.

वक्ताओं ने बताया 'कालजयी रचनाकार' प्रेमचंद का महत्व

प्रेमचंद की रचनाएं क्यों महत्वपूर्ण हैं? कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. भूपेंद्र सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्यिक रूपों में अभिव्यक्त हुई. वह एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे, जिनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास जीवंत हो उठता है. उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में आम लोगों की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया.

मुख्य वक्ता डॉ. शिप्रा द्विवेदी ने प्रेमचंद की अद्भुत कृतियों की सराहना करते हुए कहा कि तब से लेकर आज तक हिंदी साहित्य में न तो उनके जैसा कोई हुआ है और न ही कोई और होगा. यह कथन प्रेमचंद के अद्वितीय योगदान को दर्शाता है.

साहित्य में सामाजिक चेतना और यथार्थवादी चित्रण

डॉ. वंदना त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद का साहित्य सामाजिक चेतना को जगाने और सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहित करने का काम करता है. उन्होंने समाज की कुरीतियों को अपनी रचनाओं के माध्यम से उजागर किया. डॉ. विनोद विश्वकर्मा ने प्रेमचंद के साहित्य को भारतीय समाज के यथार्थवादी चित्रण के लिए महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में गरीबी, किसानों की समस्याएं, जातिवाद, और महिलाओं की स्थिति जैसे विषयों को प्रमुखता से उठाया.

वहीं, डॉ. प्रदीप विश्वकर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्य को सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं माना, बल्कि इसे समाज को बदलने और लोगों को जागरूक करने के एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया.

आयोजन में कौन-कौन थे मौजूद?

कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. बृजेन्द्र कुशवाहा ने किया और अंत में डॉ. बृजेश साकेत ने सभी का आभार व्यक्त किया. इस विशेष अवसर पर डॉ. मुकेश शाह, डॉ. अंशुला मिश्रा, डॉ. शशि मिश्रा, डॉ. ज्योति पांडेय, डॉ. अल्पना मिश्र, डॉ. आशुतोष शुक्ला और महाविद्यालय के कई छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे. सभी ने प्रेमचंद के योगदान को याद किया और उनसे प्रेरणा लेने का संकल्प लिया.

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