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रीवा में 20 साल बाद नौकरी पर लौटी शिक्षिका: महिला शिक्षिका का फर्जीवाड़ा खुला, हाईकोर्ट के आदेश पर FIR दर्ज

मुख्य बातें (Highlights)
- रीवा की महिला शिक्षिका 20 साल से नौकरी से गायब रहने के बाद सेवा में लौटने पहुंची
- फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट लगाकर नौकरी वापस पाने की कोशिश की
- हाईकोर्ट ने पाया सर्टिफिकेट झूठे, पुलिस को FIR दर्ज करने का आदेश
- रीवा मेडिकल कॉलेज और शिक्षा विभाग दोनों की भूमिका पर सवाल
Rewa Teacher Fraud Case 2025: 20 Years Absence, Fake Medical Certificate, High Court Order for FIR
रीवा न्यूज़: मध्यप्रदेश के रीवा जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक महिला शिक्षिका जो करीब 20 साल से नौकरी से गायब थी, अचानक सेवा में लौटने की मांग लेकर रीवा मेडिकल कॉलेज पहुंच गई। विभाग ने जब ज्वाइनिंग से इनकार किया तो उसने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट का बड़ा खुलासा हुआ, जिसके बाद कोर्ट ने रीवा एसपी को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
बीस साल बाद नौकरी पर लौटने की कोशिश में सामने आया फरेब | Teacher Returns After 20 Years of Absence
मामला रीवा जिले की रहने वाली अर्चना आर्या का है। उन्होंने याचिका में बताया कि उन्हें वर्ष 2001 में शिक्षा कर्मी वर्ग-तीन के पद पर नियुक्त किया गया था। बीमारी के कारण वे वर्ष 2002 से लगातार सेवा से अनुपस्थित रहीं। लगभग 16 साल तक विभाग से कोई संपर्क नहीं रखा। वर्ष 2018 में अचानक उन्होंने विभाग में दो मेडिकल सर्टिफिकेट प्रस्तुत किए — पहला 2006 का अनफिट प्रमाणपत्र और दूसरा 2017 का फिटनेस सर्टिफिकेट।
उन्होंने कहा कि ये दस्तावेज उनके बीमारी अवकाश और सेवा में पुनः बहाली के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन शिक्षा विभाग ने इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इसके बाद अर्चना ने मामला जबलपुर हाईकोर्ट में दायर कर दिया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान जो खुलासा हुआ उसने सबको हैरान कर दिया।
कोर्ट में खुली सच्चाई – सर्टिफिकेट पर मिले फर्जी हस्ताक्षर | Fake Signatures Found on Certificates
सुनवाई के दौरान जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने पाया कि दोनों प्रमाणपत्रों पर रीवा मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के एचओडी डॉ. प्रदीप कुमार के हस्ताक्षर हैं। कोर्ट ने पूछा कि “क्या एक व्यक्ति 11 साल तक विभाग का एचओडी बना रहा?” इस सवाल के बाद डीन डॉ. सुनील अग्रवाल से जवाब मांगा गया। उन्होंने बताया कि कॉलेज में मनोरोग विभाग का गठन वर्ष 2009 में हुआ था, यानी 2006 में यह विभाग अस्तित्व में ही नहीं था।
इस खुलासे के बाद कोर्ट ने माना कि यह मामला स्पष्ट फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी का है। कोर्ट ने रीवा एसपी को निर्देश दिया कि फर्जी दस्तावेज तैयार करने और हस्ताक्षर करने वालों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए।
कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुई FIR | FIR Registered After High Court Order
हाईकोर्ट के आदेश के बाद रीवा पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है। एडिशनल एसपी आरती सिंह ने बताया कि जांच में यह बात साफ हो गई है कि दोनों प्रमाणपत्रों पर एक ही व्यक्ति के हस्ताक्षर हैं, जो कि फर्जी पाए गए हैं। पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि फर्जी दस्तावेज किसने तैयार किए और किसकी मदद से महिला ने यह साजिश रची।
महिला की मदद करने वाले डॉक्टर पर होगी कार्रवाई | Doctor Involved May Face Action
एसपी शैलेंद्र सिंह ने कहा कि अब उस डॉक्टर के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी जिसने महिला की मदद की। पुलिस ने कहा कि यह मामला धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (फर्जी दस्तावेज बनाना) और 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) जैसी धाराओं के तहत दर्ज किया गया है। सभी साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं और मामले की फोरेंसिक जांच भी कराई जाएगी।
15 साल की गैरहाजिरी पर कोर्ट का सख्त रुख | Court on Long Absence from Duty
कोर्ट ने माना कि शिक्षिका की 15 साल की गैरहाजिरी नौकरी से हटाने के लिए पर्याप्त कारण है। इस आधार पर कोर्ट ने अर्चना आर्या की याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी नौकरी में अनुशासन और नियमों का पालन जरूरी है। इतने लंबे समय तक बिना सूचना अनुपस्थित रहना, फिर फर्जी सर्टिफिकेट लगाना, यह सरकारी सेवा के लिए अयोग्यता साबित करता है।
मामले ने खोली सिस्टम की पोल | Case Exposes Systemic Loopholes
यह मामला केवल एक महिला शिक्षिका का नहीं बल्कि सरकारी सिस्टम में मौजूद खामियों को उजागर करता है। सवाल यह उठता है कि इतने वर्षों तक विभाग को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी? अगर रिकॉर्ड अपडेटफर्जी सर्टिफिकेट
शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया | Department Response
मामले के सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने कहा कि अब सभी पुराने रिकॉर्ड की समीक्षा की जाएगी ताकि भविष्य में ऐसे मामलों को रोका जा सके। रीवा के स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ऐसे मामलों में सख्त सजा होनी चाहिए ताकि सरकारी सेवा की विश्वसनीयता बनी रहे। वहीं शिक्षकों के संगठनों ने कहा कि एक व्यक्ति की गलती से पूरे वर्ग की छवि खराब नहीं होनी चाहिए।
रीवा में फर्जीवाड़े के बढ़ते मामले | Rising Fraud Cases in Rewa
पिछले कुछ वर्षों में रीवा में शैक्षणिक और चिकित्सा फर्जीवाड़े के कई मामले सामने आ चुके हैं। कभी फर्जी डिग्री तो कभी फर्जी नियुक्ति पत्र बनवाकर लोग नौकरी हासिल करने की कोशिश करते हैं। यह घटना प्रशासन के लिए चेतावनी है कि अब ऐसे मामलों पर ज़ीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जाए। पुलिस विभाग ने संकेत दिए हैं कि अब डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ से भी पूछताछ की जाएगी।
FAQs – रीवा शिक्षिका फर्जीवाड़ा मामला (Rewa Teacher Fraud Case FAQs)
1. रीवा शिक्षिका फर्जीवाड़ा मामला क्या है?
यह मामला एक महिला शिक्षिका से जुड़ा है जो 20 साल तक नौकरी से गायब रही और फिर फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट लगाकर सेवा में लौटने की कोशिश की। कोर्ट ने इसे धोखाधड़ी मानते हुए एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए।
2. कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
जबलपुर हाईकोर्ट ने अर्चना आर्या की याचिका खारिज कर दी और रीवा पुलिस को फर्जी दस्तावेज तैयार करने वालों पर केस दर्ज करने का आदेश दिया।
3. एफआईआर किन धाराओं में दर्ज हुई?
पुलिस ने मामला आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत दर्ज किया है, जो फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी से जुड़ी धाराएं हैं।
4. क्या महिला को नौकरी से हटा दिया गया है?
हाँ, कोर्ट ने माना कि 15 साल की अनुपस्थिति अपने आप में नौकरी से हटाने का पर्याप्त कारण है। इसलिए उसकी सेवा बहाली की याचिका खारिज कर दी गई।
5. आगे क्या कार्रवाई होगी?
पुलिस अब उस डॉक्टर और अन्य लोगों की भूमिका की जांच कर रही है जिन्होंने महिला की मदद की थी। मामले की विस्तृत रिपोर्ट 15 दिनों में कोर्ट को भेजी जाएगी।




