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रीवा: रिश्वतखोरी में राजस्व निरीक्षक को 3 साल की सजा, 5000 जुर्माना

रीवा जिले में रिश्वतखोरी के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई हुई है, जिसमें लोकायुक्त पुलिस द्वारा पकड़े गए एक राजस्व निरीक्षक को विशेष न्यायालय ने कठोर सजा सुनाई है। इस मामले में, आरोपी राजस्व निरीक्षक राम शिरोमणि तिवारी को 2019 में 5,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। विशेष न्यायालय ने उन्हें तीन साल के कठोर कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।
यह मामला 2019 का है, जब गंगासागर पांडे नामक व्यक्ति ने लोकायुक्त कार्यालय में एक शिकायत दर्ज कराई थी। गंगासागर पांडे ने आरोप लगाया था कि उनकी और उनके भाइयों की जमीन का सीमांकन कराने के लिए राजस्व निरीक्षक राम शिरोमणि तिवारी उनसे 5,000 रुपये की रिश्वत मांग रहे थे। शिकायतकर्ता ने बताया कि तिवारी काफी समय से इस काम को टाल रहे थे और अंततः उन्होंने रिश्वत की मांग कर दी।
शिकायत की पुष्टि होने के बाद, लोकायुक्त की टीम ने 13 जून 2019 को एक सुनियोजित जाल बिछाया। टीम ने जवा में तिवारी के निवास पर उन्हें 5,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। पुलिस द्वारा दिए गए एक वॉयस रिकॉर्डर की मदद से शिकायतकर्ता ने रिश्वत के बारे में हुई पूरी बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया था, जिसने बाद में सबूत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके बाद, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया और मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश डॉ. अंजलि पारे की अदालत में शुरू हुई। विशेष लोक अभियोजक आलोक श्रीवास्तव ने इस मामले में अभियोजन पक्ष का नेतृत्व किया।
अदालत में सुनवाई के दौरान, एक दिलचस्प मोड़ आया जब शिकायतकर्ता गंगासागर पांडे स्वयं ही अपने बयान से मुकर गए और अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं किया। इसके बावजूद, अभियोजन पक्ष ने हार नहीं मानी। उन्होंने लिखित और मौखिक तर्कों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला देते हुए अपना पक्ष मजबूती से रखा। अभियोजन पक्ष की इस दृढ़ता के कारण, न्यायालय ने सभी सबूतों और तर्कों पर विचार किया।
अंत में, अदालत ने राजस्व निरीक्षक राम शिरोमणि तिवारी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7ए के तहत दोषी पाया। न्यायाधीश डॉ. अंजलि पारे ने उन्हें तीन साल के कठोर कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। यह फैसला सरकारी कर्मचारियों में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त संदेश देता है और यह दर्शाता है कि कानून की प्रक्रिया में भले ही कुछ बाधाएं आएं, लेकिन न्याय जरूर होता है। यह घटना यह भी सिद्ध करती है कि लोकायुक्त और न्यायपालिका की सक्रियता से भ्रष्टाचार पर प्रभावी ढंग से लगाम लगाई जा सकती है।




