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रीवा के अस्पतालों में छतें गिरने का सिलसिला जारी! प्रायवेट वार्ड के छत का प्लास्टर गिरा, बाल बाल बची प्रसूता और बच्ची

रीवा, मध्य प्रदेश। रीवा की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। पिछले तीन दिनों में यहां के प्रमुख अस्पतालों में छत गिरने की तीन अलग-अलग घटनाओं ने मरीजों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये घटनाएं न केवल बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति को उजागर करती हैं, बल्कि अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही और उदासीनता को भी दर्शाती हैं।
यह चौंकाने वाला सिलसिला रीवा के मेडिकल कॉलेज में नवनिर्मित भवन की फॉल्स सीलिंग गिरने से शुरू हुआ। इस घटना के बाद, अगले ही दिन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में एक और फॉल्स सीलिंग मरीजों पर आ गिरी। तीसरी और सबसे चिंताजनक घटना संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल के एक निजी वार्ड में हुई, जहाँ छत का प्लास्टर गिर गया।
संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल की घटना ने विशेष रूप से ध्यान खींचा। सतना पुलिस विभाग की एक महिला, रूबी सिंह, अपनी डिलीवरी के लिए यहाँ के निजी वार्ड में भर्ती थीं। 14 अगस्त को रात करीब 11 बजे, अचानक उनके बिस्तर के पास की छत का प्लास्टर भरभराकर गिर गया। यह घटना इतनी गंभीर थी कि महिला और उनकी नवजात बेटी बाल-बाल बचीं, लेकिन इससे पूरे वार्ड में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में, सुरक्षाकर्मियों और नर्सों ने माँ और बच्चे को दूसरे वार्ड में स्थानांतरित किया।
हालांकि, इस गंभीर घटना के बावजूद, अस्पताल के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने मौके पर आकर स्थिति का जायजा लेना जरूरी नहीं समझा। यह उदासीनता प्रबंधन की लापरवाही को स्पष्ट रूप से दर्शाती है, जो मरीजों की सुरक्षा को खतरे में डाल रही है।
ये लगातार हो रही घटनाएं सिर्फ संयोग नहीं हैं। ये रीवा के चिकित्सा संस्थानों में चल रही अव्यवस्था और रखरखाव की कमी का सीधा परिणाम हैं। यह स्थिति न केवल मरीजों और उनके परिवारों में डर पैदा कर रही है, बल्कि चिकित्सा सुविधाओं की गुणवत्ता पर भी संदेह उत्पन्न करती है।
इस तरह की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि सिर्फ नए भवन बनाने से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होता, बल्कि उनका उचित रखरखाव और सुरक्षा सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन को इस पर तत्काल ध्यान देना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी बड़ी दुर्घटना को रोका जा सके और मरीजों का विश्वास फिर से बहाल हो सके। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जब अस्पतालों में ही जीवन असुरक्षित हो तो आम जनता का भरोसा कैसे कायम रहेगा।




