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रीवा: चिकित्सक की सलाह के बिना दवाई लेने पर बिगड़ी तबियत, 70 मरीज गंभीर हालत में पहुंचे अस्पताल जानिए क्या हुआ था ऐसा?

रीवा: चिकित्सक की सलाह के बिना दवाई लेने पर बिगड़ी तबियत, 70 मरीज गंभीर हालत में पहुंचे अस्पताल जानिए क्या हुआ था ऐसा?
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70 से अधिक मरीजों को केवल इसलिए अस्पताल में भर्ती करना पड़ा क्योंकि उन्होंने बिना चिकित्सक के प्रिस्किप्सन के ही मेडिकल स्टोर से दवाई खरीद कर खा ली थी।

रीवा: कई बार सामान्य बीमारी या बुखार आने पर मरीज बिना चिकित्सक की सलाह के ही मेडिकल, स्टोर से दवाई खरीद कर उसे खा लेते हैं। लेकिन कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि बिना चिकित्सक की सलाह के दवाई खाने पर मरीज की जान पर बन जाती है। संजय गांधी अस्पताल रीवा में कुछ ऐसा ही मामला देखने में आया है। जिसमें 70 से अधिक मरीजों को केवल इसलिए अस्पताल में भर्ती करना पड़ा क्योंकि उन्होंने बिना चिकित्सक के प्रिस्किप्सन के ही मेडिकल स्टोर से दवाई खरीदी और उसे खा लिया।

गांव में मरीज सर्वाधिक

बताया गया है कि बिना चिकित्सक की सलाह के मेडिकल स्टोर से दवाई खरीदने के मामले में गांव के लोगों का प्रतिशत शहर की अपेक्षा काफी ज्यादा होता है। इसके कई कारण भी है रीवा जिले में ग्रामीण अंचल में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का अनाव इसका अहम कारण है। इसके अलावा अगर स्वास्थ्य केन्द्र है भी तो यहां चिकित्सकों के साथ ही सुविधाओं का अनाव होता है। ग्रामीण रीवा आकर अपना ईलाज कराने के लिए समय ही नहीं निकाल पाता। यही कारण है कि अधिकतर मामलों में गाय के लोग अपनी बीमारी को सामान्य मानते हुए मेडिकल स्टोर से जाकर या तो खुद ही दवाई ले लेते है या फिर किसी से दवाई गंगा लेते हैं। अगर ऐसे ही मरीज कई दिनों तक हवाई खाता रहा तो उसकी तबियत बिगड़ने की संभावना काफी बढ़ जाती है। ऐसा नहीं है कि केवल गाय के लोगों में भी यह समस्या देखने में आती है। शहर के लोगों में भी यह समस्या देखने को मिलती है। लेकिन शहर के लोगों में इसका प्रतिशत काफी कम है। अगर यह कहा जाय कि बिना चिकित्सक की सलाह के दवाई खाकर अपनी सेहत बिगाड़ने वाले लोगों में गाय के लोगों का प्रतिशत 70 और शहरी मरीजों का प्रतिशत 30 है तो गलत न होगा।

इनको होती है परेशानी

चिकित्सकों की माने तो बुखार आने के कई कारण होते हैं। घर बुखार और दर्द का अलग इलाज होता है। लेकिन मेडिकल स्टोर संचालक बुखार को अपने नजरिए से नाप-तौल कर दवाई दे देते है। जिसका फायदा कम और नुकसान अधिक होता है। बीपी डायबिटीज फेफड़ों में पानी आना आंत में इन्फेक्शन के कारण भी बुखार आता है। लेकिन मरीज चिकित्सक को दिखाने की बजाय खुद ही अपना इलाज शुरू कर देता है। कई बार उसे अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है। बताते है कि बीपी और डायबिटीज के मरीज को अगर गलत दवाई दे दी जाय तो उसकी जान भी जा सकती है।

बताया गया है कि कानूनन मेडिकल स्टोर संचालक को बिना चिकित्सक के प्रिस्किप्सन के दवाई नहीं देनी चाहिए। लेकिन आमदनी के चक्कर में मेडिकल स्टोर संचालक दवाई दे देते हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि जो दवाई पर दे रहा है उसका फायदा होगा या नुकसान।

इनका कहना है

संजय गांधी अस्पताल के मेडिसिन विभाग में पदस्थ प्राध्यापक डॉ.राकेश पटेल ने बताया कि कई बार मेडिकल स्टोर संचालक मरीजों को जो दवाई देते हैं इससे मरीज की जान पर भी बन आती है। प्रयास यही किया जाना चाहिए कि मरीज चिकित्सक की सलाह के बाद ही दवाई खाना शुरू करें। अस्पताल में बहुत से ऐसे मरीज आते हैं जो कि पहले मेडिकल स्टोर से दवाई खरीदते हैं उसके बाद जब उनकी तबियत दवा खाने के बाद और अधिक बिगड़ जाती है तब वह अस्पताल आते हैं।

Ankit Pandey | रीवा रियासत

Ankit Pandey | रीवा रियासत

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