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रीवा में बार-बार क्यों आती है बाढ़: हर साल बाढ़ का खतरा, क्या शहर ने नहीं सीखा अतीत की गलतियों से सबक?

रीवा में बार-बार क्यों आती है बाढ़? : रीवा शहर के कई हिस्सों में जलभराव की समस्या नई नहीं है। पहले भी कई बार बाढ़ जैसी स्थितियां बनी हैं और भारी तबाही हुई है। दुख की बात यह है कि हर बार बाढ़ के मुख्य कारणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे खतरा बना रहता है। रीवा में बाढ़ का कोई एक कारण नहीं है, बल्कि कई वजहें हैं जो मिलकर इस समस्या को जन्म देती हैं।
बाईपास बना जलभराव का कारण
शहर में बने बाईपास को जलभराव की एक बड़ी वजह माना जाता है। पहले, शहर के बाहरी इलाकों का पानी गाँवों के रास्ते आसानी से निकल जाता था। लेकिन, अब बाईपास के कारण यह पूरा पानी सिमटकर नालों के ज़रिए नदी तक पहुँचता है। नई इंटर-कनेक्टिविटी सड़कें भी पानी के प्राकृतिक बहाव को रोकती हैं, जिससे जल निकासी में बाधा आती है।
बीहर बराज का उलटा असर
रीवा शहर का पानी बीहर नदी के रास्ते आगे बढ़ता है। सिरमौर में बने बीहर बराज में जब पानी का स्तर बढ़ता है, तो नदी का बहाव धीमा हो जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि जो पानी आगे जाना चाहिए, वह शहर के मोहल्लों में घुसने लगता है और बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर देता है।
नदी-नालों पर बढ़ता अतिक्रमण
बारिश के दिनों में पानी की निकासी में सबसे बड़ी रुकावट नदी और नालों के किनारों पर बढ़ता अतिक्रमण है। बीहर और बिछिया नदियों के किनारे ग्रीन बेल्ट के बड़े हिस्से पर अवैध रूप से मकान बना लिए गए हैं। इससे पानी को फैलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती। साथ ही, नालों को भी अतिक्रमण करके संकरा कर दिया गया है, जिससे मोहल्लों में पानी भर जाता है।
भौगोलिक स्थिति भी एक वजह
शहर की भौगोलिक परिस्थितियां भी बाढ़ का एक बड़ा कारण बनती हैं। बिछिया नदी निचले हिस्से में है और यह बीहर नदी में मिलती है। जब बीहर का पानी बढ़ता है, तो बिछिया नदी का प्रवाह रुक जाता है। इसके चलते बिछिया, निपानिया, महाजन टोला, कुठुलिया जैसे कई मोहल्ले सबसे पहले जलभराव से प्रभावित होते हैं।
क्या रीवा ने अतीत से नहीं सीखा सबक?
व्यवस्थित रूप से बसाए गए रीवा शहर में अब प्राकृतिक आपदा का संकट सामने है। शहर से होकर बहने वाली बीहर नदी के बीचोबीच टापू पर 25 करोड़ रुपये की लागत से पीपीपी मॉडल पर बनाया गया ईको पार्क एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस मनोरंजन केंद्र में ईको जोन, एडवेंचर जोन, वाटर पार्क जैसी कई गतिविधियां हैं, लेकिन हाल की बारिश ने एक बार फिर प्रकृति की ताकत का एहसास करा दिया।
19 अगस्त 2016 को भी ऐसी ही स्थिति बनी थी, जब तेज बारिश के कारण निर्माणाधीन झूला पुल बह गया था। उस समय यह संकेत मिल गया था कि नदी के प्राकृतिक बहाव से छेड़छाड़ करना महंगा पड़ सकता है। इसके बावजूद, प्रशासनिक अनदेखी के कारण बीहर के टापू को पर्यटन स्थल में बदलने का फैसला लिया गया। इस बार भी नदी ने बारिश के दौरान अपने पुराने दायरे को दोहराया है।
पिछली बाढ़ों से सबक क्यों नहीं लिया गया?
रीवा में इससे पहले वर्ष 1977, 1997, 2003 और 2016 में भी बाढ़ आ चुकी है। पुरानी बाढ़ों को करीब से देखने वाले लोगों का कहना है कि इस बार पहले जैसी भयानक बाढ़ नहीं थी, फिर भी कई हिस्सों में जलभराव हुआ है। पहले शहर का विस्तार कम था, इसलिए सीमित क्षेत्र प्रभावित होता था। लेकिन इस बार रतहरा, नेहरू नगर, अनंतपुर, बोदाबाग, चिरहुला जैसे ऊपरी हिस्से भी जलभराव से प्रभावित हुए हैं, जो चिंता का विषय है।




