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रीवा: सरकारी नियमों को ठेंगा! आबकारी विभाग पर मनमानी के आरोप, बिना फ़ायर NOC के बीयर बार को लाइसेंस देने की तैयारी

B SQUARE REWA
रीवा। शहर के बीचों-बीच एक नए बीयर बार को संचालित करने की तैयारी हो रही है, लेकिन इस बार आबकारी विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। आरोप है कि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी सारे सरकारी नियम-कायदों को ताक पर रखकर, खासकर फ़ायर सेफ्टी नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट (NOC) जैसी महत्वपूर्ण औपचारिकता के बिना ही, एक नए बार को लाइसेंस जारी करने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार, यह मनमानी जिले के आबकारी विभाग में व्याप्त अनियमितताओं और उच्चाधिकारियों की अनदेखी को उजागर करती है।
शहर के ताला हाउस से लगे एक इलाके में यह नया बीयर बार खुलने वाला है। आबकारी विभाग ने इसे लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को लगभग अंतिम रूप दे दिया है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे मामले में बार संचालक ने आबकारी विभाग को केवल एक एफिडेविट (शपथ पत्र) दिया है। इस एफिडेविट में उसने दावा किया है कि भवन मालिक या निर्माण की ओर से जो भी कमियां हैं, वह उन्हें भविष्य में पूरा कर देगा। इस तरह का शपथ पत्र लेकर इतने महत्वपूर्ण सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज करना, सीधे तौर पर लाखों लोगों की सुरक्षा को खतरे में डालना है।
मनमानी की कहानी, NOC की जुबानी
नियमों की बात करें तो, किसी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान, विशेष रूप से बार या ऐसी जगह जहाँ भीड़ जमा होती है, के लिए नगर निगम और फ़ायर सेफ्टी विभाग से विधिवत NOC लेना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि परिसर आग लगने जैसी आपात स्थिति के लिए सुरक्षित है और सभी आवश्यक सुरक्षा उपकरण मौजूद हैं।
सूत्रों के मुताबिक, आबकारी विभाग ने इस बीयर बार के लिए सिर्फ लाइसेंस शुल्क लेकर कागजी कार्रवाई लगभग पूरी कर ली है। जब इस संबंध में विभाग के अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि भवन मालिक की ओर से फ़ायर NOC जमा नहीं किया गया है, लेकिन नए बार संचालक ने एक एफिडेविट दिया है। एफिडेविट के आधार पर लाइसेंस जारी करने की यह प्रक्रिया, आबकारी विभाग की पूरी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाती है। जानकारों का कहना है कि यह एक नया 'टूल' बन गया है, जिसके जरिए सुरक्षा मानकों की अनदेखी करते हुए, कागजी कार्रवाई को 'औपचारिकता' बताकर पूरा किया जा रहा है।
पुराना इतिहास, नई शुरुआत?
यह पहली बार नहीं है जब आबकारी विभाग पर इस तरह की मनमानी का आरोप लगा हो। इससे पहले, 'पूर्वा' में भी एक बार संचालित हो रहा था, जिसकी जाँच-पड़ताल के बाद पता चला था कि वह बार भी लंबे समय तक नियमों का उल्लंघन करते हुए चलाया जा रहा था। उस मामले में भी कई तरह की अनियमितताएं सामने आई थीं। पुराने मामले में आबकारी विभाग ने बड़ी मुश्किल से अपना पल्ला झाड़ा था, लेकिन लगता है विभाग ने उससे कोई सबक नहीं लिया है।
वर्तमान मामले में यह भी पता चला है कि बार संचालक पूर्व में एक अन्य व्यवसाय चला रहा था, लेकिन अब उसने एक नया नाम और नई पहचान के साथ बीयर बार खोलने की तैयारी की है। यह पूरी प्रक्रिया गुप्त तरीके से चल रही थी, ताकि मीडिया या जनता की नज़र में यह मामला न आए।
अधिकारियों की भूमिका पर संदेह
इस पूरे प्रकरण में आबकारी विभाग के अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। एक तरफ जहाँ राज्य सरकार कानून के राज की बात करती है, वहीं दूसरी ओर आबकारी विभाग के कुछ कर्मचारी-अधिकारी सरकारी नियमों को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़-मरोड़ रहे हैं। यह माना जा रहा है कि यह सब बिना किसी 'मोटा कमीशन' या 'ऊपरी दबाव' के संभव नहीं है।
सवाल यह है कि फ़ायर NOC के बिना किसी भी प्रतिष्ठान को अनुमति क्यों दी जा रही है? क्या आबकारी विभाग के पास यह अधिकार है कि वह सुरक्षा मानकों से जुड़े सरकारी नियमों को सिर्फ़ एक शपथ पत्र के आधार पर नजरअंदाज कर दे? यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि विभाग के कुछ अधिकारी जिले के नियम-कायदों को नहीं, बल्कि अपनी तिजोरी को भरने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए, ज़िला प्रशासन और उच्चाधिकारियों को इस पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए। इस नए बीयर बार को दिए जाने वाले लाइसेंस की प्रक्रिया को तत्काल रोककर, फ़ायर सेफ्टी सहित सभी आवश्यक सरकारी मानकों की सघनता से जाँच की जानी चाहिए। यदि नियमों का उल्लंघन पाया जाता है, तो न केवल बार संचालक पर, बल्कि उसे अनुमति देने वाले आबकारी विभाग के संबंधित अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की मनमानी न हो सके और सरकारी नियमों की गरिमा बनी रहे।
इस संबंध में जिले के आबकारी अधिकारी से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की।




