रीवा

मध्यप्रदेश: ओलम्पिक में देश को दो मेडल जिताने वाली रीवा की सीता साहू परिवार चलाने के लिए समोसे बेचती हैं

मध्यप्रदेश: ओलम्पिक में देश को दो मेडल जिताने वाली रीवा की सीता साहू परिवार चलाने के लिए समोसे बेचती हैं
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Rewa: एक तरफ ओलम्पिक गेम्स में भाला फेंक कर गोल्ड जीतने वाले नीरज चौपड़ा हैं वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के रीवा जिले कि सीता साहू, दोनों की जिंदगी काफी अलग है

Madhya Pradesh: देश के एथिलीट्स जब ओलंपिक्स गेम में मेडल जीतते हैं तो उसे पूरे देश की जीत मानी जाती है. जीतने वाले खिलाडियों को सम्मान, पैसे, शोहरत सब मिलता है तो हारने वालों को भी अगली बार जीतने का दिलासा दिया जाता है. लेकिन मध्य प्रदेश के रीवा जिले में ऐसी एथिलीट हैं जिन्होंने एक नहीं 2 ओलम्पिक मेडल देश को दिए, फिर भी उन्हें न तो सम्मान मिला न शोहरत, ओलंपिक्स में 2 मेडल जीतने वाली एथिलीट अपना परिवार चलाने के लिए सड़क समोसे बेचने का काम करती हैं. यह दुर्भाग्य है


हम बात कर रहे एथिलीट सीता साहू कि, जिन्होंने एथेंस ओलम्पिक गेम्स में 2 मेडल जीते। एक तरफ ओलम्पिक में भाला फेंककर गोल्ड जीतने वाले नीरज चौपड़ा हैं जिनके पास आज सबकुछ है वहीं दूसरी ओर रीवा की ओलम्पिक विनर सीता साहू है जिनके पास सिर्फ समोसे की दुकान है.

सीता साहू ओलंपिक्स में जितने के बाद भी संघर्ष क्यों कर रही हैं


ये सवाल उन लोगों से होना चाहिए जो खिलाडियों को भी सम्मानित करते हैं तो उसमे कहीं न कहीं राजनितिक स्वार्थ होता है. सीता साहू शुरू से एक सामान्य परिवार की बेटी रहीं हैं. उन्होंने जितना सामान्य जीवन जिया उतनी ही असामान्य उपलब्धि हासिल की. लेकिन इतना कुछ करने के बाद भी उन्हें कोई याद रखने वाला नहीं है


जब सीता 2-2 मेडल लेकर भारत लौटीं तो बड़े-बड़े नेताओं ने उनके साथ खूब फोटो खिंचवाई, खूब सुर्खियां बटोरीं, खूब घोषणाएं की. ऐसा लगा कि सीता साहू की जिंदगी चमक उठी. लेकिन उन चमचमाते हुए मेडल्स के बदले उन्हें नसीब हुई गरीबी और संघर्ष।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सीता साहू की तस्वीर। आज इन दोनों नेताओं को नहीं मालूम होगा की सीता साहू है कौन?

सीता साहू को ओलम्पिक तक भेजने के लिए उनके परिवार ने पूरी जमा-पूंजी झोंक डाली थी. और वह अपने परिवार की उम्मीदों में एकदम खरी भी उतरीं। सीता ने ओलंपिक्स में 2 मेडल हासिल किए, कायदे से उन्हें भी अन्य जितने वाले खिलाडियों की तरह नाम, इज्जत, शोहरत, पैसे और स्पोर्ट्स कोटा के तहत सरकारी नौकरी मिलनी थी.

रीवा की सीता साहू ने ओलम्पिक में कब मेडल जीते थे


साल 2011 में एथेंस ओलंपिक्स में मेडल जीतने वाले खिलाडियों में एक रीवा जिले की सीता साहू भी थीं. सीता बचपन से हैंडीकैप मतलब दिव्यांग हैं. उन्होंने पैरा ओलंपिक्स के लिए खुद को तैयार किया। सीता ने 200 और 1600 मीटर की रेस में पार्टिसिपेट किया और दोनों गेम्स में कांस्य पदक मतलब ब्रॉन्ज़ मेडल जीते।

सीता के पिता के गुजरने के बाद परिवार की माली हालत और खराब होने लगी. स्पोर्ट्स छोड़ सीता को भी परिवार चलाने के लिए अपनी मां और भाई के साथ हाथ जुटाना पड़ा. सीता आज भी अपने परिवार के लिए समोसे बनाने का काम करती हैं. एक होनहार एथिलीट गरीबी में समोसे बेचती है इससे बड़ा देश के लिए और क्या दुर्भाग्य हो सकता है.


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