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किसान नरबाई न जलायें! रीवा कलेक्टर ने धारा-144 के प्रावधानों के तहत लगाया प्रतिबंध

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:39 AM GMT
किसान नरबाई न जलायें! रीवा कलेक्टर ने धारा-144 के प्रावधानों के तहत लगाया प्रतिबंध
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रीवा। कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी रीवा डॉ. इलैयाराजा टी ने जिले में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-144 की उपधारा (2) के अन्तर्गत पूर्व में आ

रीवा। कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी रीवा डॉ. इलैयाराजा टी ने जिले में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-144 की उपधारा (2) के अन्तर्गत पूर्व में आदेश जारी कर गेंहू एवं अन्य फसलों की नरबाई न जलायें के निर्देश दिये हैं, यह पूर्णत: प्रतिबंधित किया गया है।

रीवा कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट ने कहा है कि गेंहू एवं धान की फसल कटाई अधिकांशत: कम्बाइंड हार्वेस्टर द्वारा की जाती है। कटाई के उपरांत कृषक बचे हुए गेंहू के डंठलों से भूसा न बनाकर इसे जला देते हैं। इसी तरह धान के पैरा को भी आग लगा देते हैं। जिससे धान का पैरा एवं भूसे का उपयोग पशु आहार के रूप में नहीं हो पाता है।

ऐसे करें भूसे का इस्तेमाल

भूसे का उपयोग पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में किया जा सकता है। एकत्रित किया गया भूसा ईट, भट्ठा तथा अन्य उद्योगों में उपयोग किया जाता है। भूसे एवं धान के पैरा की मांग प्रदेश के अन्य जिलो के साथ ही अनेक प्रदेशों में होती है। भूसा 4-5 रूपये प्रति किलो ग्राम की दर से विक्रय किया जा सकता है। इसी तरह धान का पैरा भी बहु उपयोगी है।

किसान नरबाई न जलायें! रीवा कलेक्टर ने धारा-144 के प्रावधानों के तहत लगाया प्रतिबंध

पर्याप्त मात्रा में भूसा और पैरा उपलब्ध न होने के कारण पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे पॉलीथीन आदि खाते हैं जिससे वे बीमार होते हैं तथा अनेक बार उनकी मृत्यु भी हो जाती है। इससे पशुधन की भी हानि होती है। नरबाई का भूसा 2-3 माह बाद दुगनी दर पर विक्रय होता है तथा कृषकों को भी यही भूसा बढ़ी हुई दरों पर क्रय करना पड़ता है।

कलेक्टर ने आदेश दिये हैं कि नरबाई एवं धान के पैरा में आग लगाना कृषि के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है। साथ ही पर्यावरण को भी हानि पहुंचती है। नरबाई जलाने से विगत वर्षों में गंभीर अग्निदुर्घटनायें घटित हुई हैं तथा व्यापक संपत्ति की हानि हुई है। कानून व्यवस्था के लिए विपरित परिस्थितियां निर्मित होती हैं।

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खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जन-धन संपत्ति प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जन्तु नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जिससे खेत की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

खेत में पड़ा कचरा, भूसा, डंठल सड़ने के बाद भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं जिन्हे जलाकर नष्ट करना ऊर्जा को नष्ट करना है। आग लगने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए नरबाई जलाना प्रतिबंधित किया गया है।

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