रीवा

जब 10 साल की उम्र में अकबर को रीवा रियासत ने दी थी पनाह, रामचंद्र ने अकबर को भेंट किया था तानसेन और बीरबल

जब 10 साल की उम्र में अकबर को रीवा रियासत ने दी थी पनाह, रामचंद्र ने अकबर को भेंट किया था तानसेन और बीरबल
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Samrat Akbar's relation with Rewa: रीवा राजघराने और मुग़ल सम्राट अकबर का संबंध बेहद ख़ास रहा है. हार के बाद जब अकबर के पिता हुमायूं भारत छोड़कर भाग गए थें, तब रीवा रियासत ने ही उन्हें पनाह दी थी.

Samrat Akbar's relation with Rewa: बहुत ही कम लोग यह जानते होंगे कि मुगल सम्राट अकबर का बचपन रीवा में गुजरा था. मई 1540 में शेर शाह सूरी ने कन्नौज युद्ध में हुमायूँ को हराया और उसे भारत से बाहर कर दिया. युद्ध में हार के बाद जब अकबर के पिता हुमायूं भारत छोड़कर भाग गए थे तब अकबर की उम्र महज 10 वर्ष थी. उस समय रीवा महाराजा वीरभान सिंह देव (Maharaja Virbhan Singh Deo) ने ही अकबर को रीवा रियासत में पनाह दी थी.

Mughal Emperor Akbar Rewa Kingdom Relationship: अकबर और रामचंद्र की दोस्ती

उस वक्त रामचंद्र सिंह बाघेला रीवा के राजकुमार थें, रामचंद्र सिंह और अकबर शाही उत्तराधिकारी के रूप में एक साथ बड़े हुए. जब अकबर ने गद्दी सम्हाली और रामचंद्र सिंह देव (Maharaja Ramchandra Singh Deo) रीवा राज्य के महाराजा बने तब भी दोनों की दोस्ती कायम रही. दोनों की दोस्ती इतनी ख़ास थी कि 1550 दशक के मध्य में महाराजा रामचंद्र सिंह देव ने रीवा राजघराने से रामतनु पांडेय और महेश दास को अकबर के सम्राट बनने के बाद तोहफे के रूप में भेज दिया.

अकबर की दरबार में रामतनु पांडेय को संगीत सम्राट तानसेन और महेश दास को चतुर बीरबल के नाम से पहचाना जाने लगा. ये दोनों ही अकबर नौ रत्नों में शामिल हो गए. 1580 में अकबर ने अपने साम्राज्य को 12 सूबों में पुनर्गठित किया और जौनपुर सल्तनत, कारा-मानिकपुर और बंधोगढ़ के क्षेत्र को इलाहाबाद के सूबे में मिला दिया. आइये जानते हैं बीरबल (महेश दास) और तानसेन (रामतनु पांडे) के बारे में...

Birbal Rewa Relationship: बीरबल का रीवा से संबंध

Birbal Real Name And Birthplace: पंडित महेश दास भट्ट (Pandit Mahesh Das Bhatt) उर्फ़ बीरबल (Birbal) का जन्म 1528 में रीवा राज्य के सीधी (वर्तमान सीधी जिला) के घोघरा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बीरबल महर्षि कवि के वंशज थें और बचपन से ही चतुर और दिमागी तौर पर बेहद तेज थें. प्रारम्भ में वे पान बेचा करते थें और यही इनका कार्य था. कुछ ही समय में अपनी तेज बुद्धि और हाजिर जवाबी के साथ चतुर दिमाग के चलते वे रीवा राजघराने के दरबारी हो गए. इसके बाद उन्हें रीवा महाराजा रामचंद्र सिंह ने अकबर को तोहफे के रूप में दे दिया.

मुगल बादशाह अकबर के दरबार में उनका नाम बीरबल हो गया, वे प्रमुख वज़ीर और अकबर के परिषद के नौ सलाहकारों (नवरत्नों में से एक थे). अपनी हाजिर जबावी के चलते वे मुग़ल सम्राट अकबर के सबसे ख़ास हो गए थें. उनकी बुद्धिमानी के हजारों किस्से हैं जो बच्चों को सुनाए जाते हैं. माना जाता है कि 16 फरवरी 1586 को अफगानिस्तान के युद्ध में एक बड़ी सैन्य मंडली के नेतृत्व के दौरान बीरबल की मृत्यु हो गयी.

Tansen Rewa Relationship: तानसेन का रीवा से संबंध

Tansen Real Name And Birthplace: बीरबल की ही तरह तानसेन भी रीवा राजघराने में थे. तानसेन उर्फ रामतनु पांडेय (Ramtanu Pandey) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक महान ज्ञाता थे. उनके संगीत सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थें. इनका जन्म ग्वालियर जिले में हुआ था. तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा मानसिंह तोमर का शासन था. उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र था, जहां पर बैजूबावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे और इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था. तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई.

राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी. तब तानसेन वृन्दावन चले गये और वहां उन्होनें स्वामी हरिदास जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की. संगीत शिक्षा में पारंगत होने के उपरांत तानसेन शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत ख़ाँ के आश्रय में रहे और फिर बांधवगढ़ (रीवा) के महाराजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए.

इन्हे भी रीवा महाराजा रामचंद्र ने अकबर को भेंट के तौर पर मुगल सम्राट अकबर के दरबार में भेंट कर दिया. जो अकबर ने नौरत्नों में शामिल हो गए. अकबर के नवरत्नों तथा मुग़लकालीन संगीतकारों में तानसेन का नाम परम-प्रसिद्ध है.

एक दिन जलने वालों ने तानसेन के विनाश की योजना बना डाली. इन सबने बादशाह अकबर से तानसेन से 'दीपक' राग गवाए जाने की प्रार्थना की. अकबर को बताया गया कि इस राग को तानसेन के अलावा और कोई ठीक-ठीक नहीं गा सकता. बादशाह राज़ी हो गए, और तानसेन को दीपक राग गाने की आज्ञा दी. तानसेन ने इस राग का अनिष्टकारक परिणाम बताए बिना ही राग गाने से मना कर दिया, फिर भी अकबर का राजहठ नहीं टला, और तानसेन को दीपक राग गाना ही पड़ा. दीपक राग गाने से जब तानसेन के अंदर अग्नि राग भी शुरू हुआ, गर्मी बढ़ी व धीरे-धीरे वायुमंडल अग्निमय हो गया. सुनने वाले अपने-अपने प्राण बचाने को इधर-उधर छिप गए, किंतु तानसेन का शरीर अग्नि की ज्वाला से दहक उठा.

ऐसी हालत में तानसेन वडनगर पहुंचे, वहाँ भक्त कवि नरसिह मेहता कि बेटि कुवरबाई कि बेटि शर्मिष्ठा कि बेटियों ताना-रिरि ने मल्हार राग गाकर उनके जीवन की रक्षा की. इस घटना के कई महीनों बाद तानसेन का शरीर स्वस्थ हुआ. शरीर के अंदर ज्वर बैठ गया था. आखिरकार वह ज्वर फिर उभर आया, और फ़रवरी, 1586 में इसी ज्वर ने उनकी जान ले ली.

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