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आज की शिवसेना: उद्धव, औलाद तो बाला साहेब की हैं, पर उनके जैसे फौलादी नहीं

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शिवसेना यानि बाला साहेब ठाकरे की सेना. बाला साहेब की शिवसेना और उद्धव की शिवसेना में जमीन आसमान का अंतर है, यही वजह है कि शिवसेना को आज ऐसे दिन देखने पड़ रहें हैं की उनके अपने ही टूटे और रूठे पड़े हैं.

आखिरकार बुधवार 29 जून की देर रात उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा दे ही दिया. महाराष्ट्र की 'शिवसेना' अब शायद कहीं खो गई है. बाला साहेब ठाकरे की अंतिम सांस तक शिवसेना के तेवर, जुनून अलग ही थें. सत्ता में न रहते हुए भी महाराष्ट्र की शिवसेना सत्ता चलाया करती थी और आज की उद्धव की शिवसेना सत्ता में रहकर भी पार्टी नहीं चला पा रहें. इसलिए बाला साहेब ठाकरे को फौलादी कहा गया है. लेकिन उनकी औलाद यानि उद्धव ठाकरे ने साहेब के जाने के बाद शिवसेना को ही बदलकर रख दिया उन्होंने हर वह काम किया जो साहेब कभी पसंद नहीं करते थें .

बाला साहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) उर्फ़ बाल ठाकरे (Bal Thackeray) महाराष्ट्र में मराठों और देश में हिंदुत्व के लिए लड़ाई लड़ते रहें हैं. लेकिन उनके जाने के बाद सत्ता लोभ में उद्धव हिंदुत्व और मराठा तो दूर, अपनों से ही लड़ रहें हैं. अब बात खुलकर सामने आ रही है. अधिकाँश शिवसैनिकों को उद्धव का नेतृत्व जंच नहीं रहा है. उनका मानना है कि जिस शिवसेना के खून में मराठा और हिंदुत्व भरा पला है, सत्ता प्रेम के चलते उद्धव उससे समझौता कर बैठे हैं. हमारे विचारों को वो ही इंसान कुचल रहा है, जो खुद बाला साहेब ठाकरे का बेटा है.

हांलाकि बाला साहेब ठाकरे हमेशा सत्ता से प्रत्यक्ष तौर पर दूर रहते थें, लेकिन सत्ता हो या विपक्ष उनकी तूती हर जगह बोलती थी. बोलती भी क्यों न वो शिवसेना के गॉड फादर जो थें. उनका निर्णय कैसा भी हो, शिवसैनिकों को बस साहेब का आदेश चाहिए होता था और साहेब के निर्णय दिल्ली सल्तनत तक को हिलाने के लिए काफी रहते थें.

अपील क्या होती है ये बाला साहेब कभी नहीं जानते थें. उन्होंने जब भी दिया सिर्फ आदेश ही दिया. आज सत्ता बचाने और सीएम पद की कुर्सी बचाने के लिए उनके बेटे उद्धव ठाकरे फेसबुक में लाइव आकर बागियों से 'इमोशनल अपील' कर हैं. धधक दिखाने की कोशिश कर रहें हैं, पर वो शेर पिता के जैसे हो नहीं पा रही है.

आज शिवसेना ही गॉडफादर के बेटे के खिलाफ खड़ी हो गई है. दो धड़ों एक मंत्री एवं शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे का धड़ा तो दूसरा खुद उद्धव ठाकरे का, में बंट चुकी है. एक धड़ा उद्धव की गलतियों पर जमकर वार कर रहा है तो दूसरा सत्ता बचाने के लिए उन दलों से समझौता कर रहा है, जिन्हे बाला साहेब ठाकरे आंख फूट पसंद नहीं करते थें.

आइये कुछ पॉइंट्स में जानते हैं उद्धव से बागियों की नाराजगी की वजह

  • शिवसेना ने चुनाव तो भाजपा की छत्रछाया में लड़ा, लेकिन जब सरकार बनाने की बारी आई तो भाजपा से दूर कर लिया. क्योंकि शिवसेना को अपना मुख्यमंत्री चाहिए था, या साफ़ तौर कहें तो ठाकरे परिवार का सीएम कुर्सी में चाहिए था और एनसीपी-कांग्रेस के साथ गठबंधन कर महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी 'भाजपा' को विपक्ष में बैठा दिया. इस वजह से शिवसैनिक नाराज हो गए, लेकिन वे खुलकर सामने नहीं आएं. क्योंकि अभी भी शिवसेना में ऐसे शिवसैनिक हैं जो बाला साहेब ठाकरे की ही तरह कांग्रेस और एनसीपी जैसे दलों को पसंद नहीं करते.
  • बागी शिवसेना विधायकों का आरोप है कि उद्धव हिंदुत्व के मुद्दों को भूल गए हैं और मजबूरी की सरकार के चलते उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दों से समझौता कर लिया, जबकि शिवसैनिकों के खून में ही हिंदुत्व है.
  • बागी विधायकों का यह भी आरोप है कि राम मंदिर निर्माण के लिए उद्धव ने बेटे आदित्य ठाकरे को अयोध्या जाने दिया लेकिन हमें वहां जाने से और प्रभु श्रीराम के प्रति प्रेम जताने से रोक दिया गया, ऐसा उन्होंने सिर्फ मजबूरी की सरकार के चलते किया है, और ऐसी मजबूरी हमारे लिए ठीक नहीं.
  • बागी विधायकों का कहना है कि हम शिवसेना को बचाना चाहते हैं, लेकिन उद्धव शिवसेना की जगह सत्ता को बचाने का भरसक प्रयास कर रहें हैं.
  • शिंदे गुट का यह भी आरोप है कि उद्धव शिवसैनिकों के लिए वक़्त नहीं देते, उन्हें घंटों तक इन्तजार कराया जाता है, जबकि एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं के लिए वे चौबीसों घंटे हाजिर रहते हैं.

इसके पहले भी उद्धव की वजह से टूटी शिवसेना

यह पहली बार नहीं है जब उद्धव की वजह से पार्टी में टूट की स्थिति पैदा हुई है. इससे पहले नारायण राणे और राज ठाकरे ने भी उद्धव से नाराज होकर पार्टी छोड़ी थी. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उद्धव ने इन दो मौकों से सीख नहीं ली और अब तीसरी गलती की वजह से पार्टी का टूटना तय है.

मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार धवल कुलकर्णी द्वारा राज और उद्धव ठाकरे की लाइफ पर लिखी किताब 'ठाकरे भाऊ' में यह बताया गया है कि कैसे उद्धव के रवैये से नाराज होकर शिवसेना के दो बड़े दिग्गजों, राज ठाकरे और नारायण राणे ने पार्टी का दामन छोड़ दिया था. हालांकि, बाला साहब की वजह से दोनों बार पार्टी टूटने से बच गई. लेकिन इस बार नाराजगी इतनी बड़ी है कि एक तिहाई से ज्यादा विधायक और सांसद उद्धव के खिलाफ खड़े हैं.

जैसे-जैसे उद्धव की पकड़ मजबूत हुई, पार्टी कमजोर हुई

किताब के मुताबिक, बाला साहब की उम्र जैसे-जैसे बढ़ रही थी, शिवसेना पर उद्धव ठाकरे की पकड़ मजबूत होती जा रही थी. हालांकि, वे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की पहुंच से बाहर होते जा रहे थे. BJP नेताओं का यह भी दावा था कि प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे जैसे नेताओं के लिए भी शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष तक पहुंच पाना मुश्किल हो जाता था.

बाला साहब के समय भुजबल ने भी की थी बगावत

वर्तमान में NCP कोटे से मंत्री छगन भुजबल कभी बाला साहब के राइट हैंड कहे जाते थे. दबंग OBC नेता के रूप में प्रसिद्ध भुजबल और बाला साहब के बीच विवाद 1985 में शुरू हुआ था. उस साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना सबसे बड़ा विरोधी दल बनकर उभरा था.

जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुनने की बारी आई तो भुजबल को लगा कि जाहिर तौर पर बाल ठाकरे उन्हें ही ये जिम्मेदारी देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भुजबल को ये जानकर सदमा लगा कि नेता प्रतिपक्ष का पद ठाकरे ने मनोहर जोशी को दे दिया. इसके बाद भुजबल को प्रदेश की राजनीति से हटाकर शहर की राजनीति तक सीमित कर दिया गया और उन्हें मुंबई का मेयर बनाया गया.

इसके बाद भुजबल लगातार बाला साहब से नाराज रहने लगे और मार्च 1991 में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मनोहर जोशी के खिलाफ बयान दिया. ये भी साफ कर दिया कि अब वह मुंबई का दोबारा मेयर नहीं बनना चाहते हैं. उन्हें विपक्ष का नेता बनाया जाना चाहिए.

इसके बाद 5 दिसंबर 1991 को भुजबल ने बाल ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया. 8 शिवसेना विधायकों ने विधानसभा स्पीकर को खत सौंपा कि वे शिवसेना-बी नाम का अलग से गुट बना रहे हैं और मूल शिवसेना से खुद को अलग कर रहे हैं. हालांकि, बाद में भुजबल कांग्रेस में शामिल हो गए और अब वे NCP में हैं.

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत

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