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क्या राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होना लोकतंत्र की हत्या है? मतलब कुछ भी?

क्या राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होना लोकतंत्र की हत्या है? मतलब कुछ भी?
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Is the termination of Rahul Gandhi's membership of Parliament murder of democracy: कांग्रेस या विपक्ष के नेताओं के खिलाफ किसी भी एक्शन को लोकतंत्र की हत्या बता दिया जाता है

Is the termination of Rahul Gandhi's membership of Parliament murder of democracy: देश में इस समय कांग्रेस बवाल मचाए हुए है. आरोप है कि राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करके केंद्र सरकार ने लोकतंत्र की हत्या कर दी है, सरकार तानाशाही कर रही है. बहुत से लोग इस मामले में कांग्रेस के समर्थन में हैं उनका भी मानना है कि राहुल गांधी को सांसद पद के लिए अयोग्य घोषित करना लोकतंत्र के खिलाफ है. और कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हे Rahul Gandhi के खिलाफ लिया गया एक्शन गैरकानूनी लग रहा है.

एक बात तो सबको क्लियर है कि देश का कानून संविधान के हिसाब से चलता है. डिस्ट्रिक कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला सुनाता है वह कानूनन सही ही होता है. कोर्ट दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद और सबूतों के आधार ही अपना फैसला सुनाता है. अगर किसी को डिस्ट्रिक कोर्ट के फैसले से आपत्ति है तो वह हाई कोर्ट जाता है, वहां के फैसले से भी असंतुष्टि है तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है. यही प्रोसेस ही है.

राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करना लोकतंत्र की हत्या है?

राहुल गांधी की सदस्यता कैंसिल करना जिन लोगों को लोकतंत्र की हत्या लग रहा है. उन्हें पहले लोकतंत्र का मतलब पता करना चाहिए। लोकतंत्र का अर्थ है कि- लोकतंत्र सरकार की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें नागरिक सीधे सत्ता का प्रयोग करते हैं या एक शासी निकाय जैसे कि संसद बनाने के लिये आपस में प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इसे 'बहुमत का शासन' भी कहा जाता है। इसमें सत्ता विरासत में नहीं मिलती। जनता अपना नेता स्वयं चुनती है. अब अगर वह चुना हुआ नेता कानून की नज़र में किसी मामले में दोषी होता है तो उसके लिए भी अलग से कानून हैं.

सांसद की सदस्यता खत्म करने का कानून

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. जिसमे कहा गया था कि- यदि किसी जनप्रतिनिधि जैसे MP, MLA या MLC या कोई भी निर्वाचित नेता अदलात के द्वारा किसी भी मामले में दो साल या इससे अधिक की सज़ा का दोषी पाया जाता है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म कर दी जाती है. और सज़ा पूरी होने के 6 साल बाद ही वह चुनाव में अपनी दावेदारी पेश कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे थीं लिली थॉमस नाम की एक वकील, जिन्होंने 2003 में जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. उन्होंने संविधान के सेक्शन 8 (4) को असंवैधानिक किए जाने का मामला उठाया था. यह ऐसा प्रावधान था जिसमे निर्वाचित जनप्रतिनिधि को कोर्ट से दोषी पाए जाने के बाद भी उसकी सदस्यता बनी रहती थी.

लिली थॉमस की याचिका को कोर्ट ने ख़ारिज किया था, उन्होंने दोबारा याचिका डाली तो उसे भी ख़ारिज कर दिया गया और जब 9 साल बाद 2012 में उन्होंने तीसरी बार याचिका लगाई तो उनकी याचिका स्वीकार कर ली गई. आखिर में लिली थॉमस बनाम केंद्र सरकार के मुक़दमे में लिली थॉमस जीत गईं. और सुप्रीम कोर्ट को यही फैसला सुनना पड़ा जिसके चलते राहुल गांधी की सदस्यता चली गई.

इसमें लोकतंत्र की हत्या या फिर गैरकानूनी जैसा क्या है?

राहुल गांधी पर लगे मानहानि के मुक़दमे पर सूरत कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, सबूतों के आधार पर राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि की धारा 499 और 500 के तहत दो साल की सज़ा सूरत कोर्ट ने सुनाई।

जैसा ही लिली थॉमस बनाम केंद्र सरकार के मामले में SC ने ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधि की सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म करने का आदेश जारी किया था उसी का पालन करते हुए लोकसभा सचिवालय ने संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत सांसद पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया है.

सूरत कोर्ट के फैसले से लेकर लोकसभा सचिवालय तक की कार्रवाई में लोकतंत्र की हत्या या गैरकानूनी जैसा तो कुछ नज़र नहीं आ रहा. जो हुआ वह कानूनन हुआ, और कानून राहुल गांधी को इस मामले को ऊपरी कोर्ट में ले जाने की इजाजत भी देता है.

अब कोई विपक्षी यह कह दे कि सूरत कोर्ट का निर्णय मोदी सरकार के प्रभाव में आकर दिया गया है, या फिर लिली थॉमस बनाम सरकार वाला फैसला ही गलत था तो उसके पास भी इन आरोपों को लेकर कोर्ट जाने की खुली छूट है.

राहुल गांधी जैसे ना जानें कितने नेताओं की सांसदी, विधायकी इसी कानून के चलते समाप्त हुई है. वो तो धन्य है लिली थॉमस का वरना एक से एक अपराधी टाइप के नेता खुल्लम खुल्ला जनता को लूट खसोट रहे होते। तो टेंशन मत लीजिये, भारत का लोकतंत्र जिन्दा है.



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