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1971 की जंग का इतिहास: जब रूस ने भारत के लिए US और UK की नौसेना के सामने परमाणु हथियार रख दिए थे

1971 की जंग का इतिहास: जब रूस ने भारत के लिए US और UK की नौसेना के सामने परमाणु हथियार रख दिए थे
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History of 1971 war: कुछ अज्ञानी टाइप के लोगों के दिमाग में ये बात घुस नहीं रही है कि रूस ने भारत का हर मुश्किल में साथ दिया है, तो फिर भारत रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव में वोट क्यों डाले?

1971 की जंग का इतिहास: भारत में कुछ ऐसे चपडगंज टाइप के लोग हैं जिनकी भ्रष्ट बुद्धि में यह घुस ही नहीं रहा है कि रूस भारत का परम मित्र है, रशिया ने बिना किसी शर्त के हमेशा भारत की मदद की है जब हिंदुस्तान खतरे में पड़ा है. चाहें VITO Power का इस्तेमाल हो या अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से भिड़ जाना, रूस ने हमेशा भारत से दोस्ती निभाई है। साल 1971 की जंग में भी रूस ने भारतीय सेना को जीत दिलाई थी और इसके बदले उसे अमेरिका और ब्रिटेन से लड़ाई लेनी पड़ी थी. फिर भी कुछ ऐसे महा-हुसियार टाइप के लोग अस्तित्व में हैं जिन्हे लगता है कि यूक्रेन और रूस की लड़ाई में भारत को भी अन्य देशों की तरह रूस के खिलाफ वोट डालना चाहिए।

ये बात 9 अगस्त साल 1971 की है, बांग्लादेश को भारत ने जो आज़ादी दिलाई थी उसके 3 महीने बीत चुके थे. भारत ने इस दिन सोवियत संघ के साथ शांति और दोस्ती की संधि में हस्ताक्षर किए थे। तब से रूस भारत का बेस्ट फ्रेंड हैं. और हमेशा रहेगा।

1971 में ऐसा क्या हुआ था

1971 में भारत को ऐसे रिफ्यूजीस का बोझ ढोना पड़ रहा था जो देश को स्वीकार नहीं था, पाकिस्तान नाक में दम किए हुए था और अमेरिका और ब्रिटेन उस वक़्त पाकिस्तान के सपोर्ट में खड़े थे. उस वक़्त पाकिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन के सामने खड़े होने के लिए भारत के पास सिर्फ एक ऑप्शन था. सोवियत यूनियन (अब रूस) का साथ लेना।

नई दिल्ली में सरदार स्वर्ण सिंह (Sardar Swaran Singh) और सोवियत संघ के निस्संदेह आंद्रेई ग्रोम्यो (Andrei Gromyko) - अपने-अपने देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित संधि ने सुनिश्चित किया और भारत ने पाकिस्तान को संभावित एंग्लो-अमेरिकन और चीनी मदद की जाँच की।

रूस ने 1971 की जंग में भारत की मदद की

अमेरिका और ब्रिटेन की नेवी टास्क फ़ोर्स 74 भारत को घेरने के लिए बंगाल की खाड़ी तक पहुंच गई थीं, यह वहीं टास्कफोर्स थी जो साल 1943-1945 तक जापान से युद्ध लड़ चुकी थीं और जापान को बुरी तरह हरा चुकी थीं. जब उस वक्त भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान के साथ अमेरिका और ब्रिटेन दोस्ती निभा रहे थे तब रूस साथ देने के लिए भारत के पीछे खड़ा था. रूस ने न सिर्फ पोलिटिकली बल्कि मिलिट्री के साथ हिंदुस्तान का साथ दिया था।

रूस ने भारत की तरफ बढ़ रहे दुश्मन के नेवी टास्क फ़ोर्स को रोकने के लिए अपनी पनडुब्बियों को लाकर खड़ा कर दिया और उनका रास्ता रोक दिया। उन पनडुब्बियों में परमाणु हथियार थे. कोई रूसी सबमरीन में हमला करता तो टास्क फ़ोर्स के परखच्चे उड़ जाते।

पाकिस्तान का ऑपरेशन चंगेज खान

3 दिसंबर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ ऑपरेशन चंगेज खान (Operation Chengiz Khan) शुरू किया। इसके बाद भारत भी पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तैयार था, जब यूनाइटेड नेशन को यह लगा कि इस बार तो भारत पाकिस्तान को ख़त्म कर देगा तो 5 दिसंबर को UN ने युद्ध विराम की कोशिश शुरू कर दी, लेकिन USSR ने अपने VITO का इस्तेमाल कर दिया, सिर्फ भारत का साथ देने के लिए.

इसके बाद 6 दिसंबर को भारत ने बांग्लादेश को मान्यता देदी, 8 दिसंबर को अमेरिका तक यह खबर पहुंची के भारत पश्चिमी पाकिस्तान में हमला करने वाला है. पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका ने अपनी टास्क फ़ोर्स 74 को भारत के खिलाफ बंगाल की खाड़ी में तैनात कर दिया। वहीं ब्रिटेन ने अपने विमानवाहक पोत एचएमएस ईगल को अरब सागर में रवाना किया। अगर योजना के मुताबिक चला तो भारत 'पिनसर' हमले में फंस जाएगा। अमेरिका बंगाल की खाड़ी में, ब्रिटेन अरब सागर में, जबकि पाकिस्तान जमीन पर, भारत तीन टफ तरफ से घिर चुका था. इतना ही नहीं अमेरिका ने चाइना को भी भारत में हमला करने का निमंत्रण दिया था.

फिर भारत ने मांगी मदद

जब 3 दुश्मन भारत पर हमला करने के लिए घात लगाकर बैठे थे तब भारत ने अपने दोस्त रूस को यद् किया और मॉस्को तक अपना सन्देश पहुंचाया। रूस और भारत के बीच जिस संधि में दोनों देशों के हस्ताक्षर थे उसमे लिखा था कि रूस भारत में हुए विदेशी हमले में उसकी रक्षा करने के लिए बाध्य होगा। फिर क्या रूस ने 10वें ऑपरेटिव बैटल ग्रुप (पैसिफिक फ्लीट) के कमांडर एडमिरल व्लादिमीर क्रुग्लियाकोव (Vladimir Kruglyakov) की समग्र कमान के तहत 13 दिसंबर को व्लादिवोस्तोक से एक परमाणु-सशस्त्र फ्लोटिला भेजा।

रूसी बेड़े में अच्छी संख्या में परमाणु-सशस्त्र जहाज और परमाणु पनडुब्बियाँ शामिल थीं, लेकिन उनकी मिसाइलें सीमित सीमा 300 किमी से कम की थीं। इसलिए, ब्रिटिश और अमेरिकी बेड़े का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए रूसी कमांडरों को उन्हें अपने लक्ष्य के भीतर लाने के लिए उन्हें घेरने का जोखिम उठाना पड़ा।

रूसियों ने ब्रिटिश वाहक युद्ध समूह के कमांडर, एडमिरल डिमन गॉर्डन से सातवें बेड़े के कमांडर से एक संचार को रोक दिया: "सर, हमें बहुत देर हो चुकी है। यहां रूसी परमाणु पनडुब्बियां हैं, और युद्धपोतों का एक बड़ा संग्रह है।" ब्रिटिश जहाज मेडागास्कर की ओर भाग गए, जबकि बड़ी अमेरिकी टास्क फोर्स बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने से पहले रुक गई।

इसी रूसी सैन्य मदद से भारत ने बांग्लादेश को आजाद किया और पाकिस्तानी अत्याचारों से मुक्त किया, भारत की सेना ने इसके बाद पाकिस्तानी सेना को इतना कूँटा इतना कचरा की पाकिस्तान की आधी नेवी गायब हो गई, इसी जीत को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाते हैं. जिस अमेरिका, ब्रिटेन और UN की पैरवी करने वाले भारत में बैठकर रूस को गलियां बकते हैं उनतक यह इतिहास पहुंच जाना चाहिए।

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