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दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी, निचली अदालतों का फैसला पलटते हुए आरोपी को बरी किया

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:34 AM GMT
दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी, निचली अदालतों का फैसला पलटते हुए आरोपी को बरी किया
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नई दिल्ली. दुष्कर्म के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के सभी फैंसलों को पल

नई दिल्ली. दुष्कर्म के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के सभी फैंसलों को पलटते हुए दुष्कर्म के आरोपी को बरी कर दिया है.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चाकू की नोक पर यौन प्रताड़ना का शिकार होने वाली महिला आरोपी को न तो प्रेम पत्र लिखेगी और न ही उसके साथ चार सालों तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहेगी. कोर्ट ने 20 साल पुराने रेप एवं धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी व्यक्ति को दोष मुक्त करते हुए यह टिप्पणी की. इस मामले में व्यक्ति को निचली अदालत और झारखंड हाई कोर्ट ने दोषी ठहराया था.

1995 का है मामला

मामले की सुनवाई करने वाली न्यायाधीश आरएफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा एवं जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने महिला की उम्र पर संदेह जताया. साल 1995 में कथित यौन प्रताड़ना के मामले में महिला ने जो अपनी उम्र बताई थी वह गलत थी. अपनी शिकायत में महिला ने घटना के समय अपनी उम्र 13 साल होने का दावा किया लेकिन आरोपी व्यक्ति की दूसरी शादी होने से कुछ दिन पहले 1999 में दर्ज FIR के समय महिला की उम्र 25 साल होने का पता चला.

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महिला का कहना है कि वह चार सालों तक चुप रही

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि वह यौन उत्पीड़न की घटना के बाद चार सालों तक चुप रही. महिला का कहना है कि आरोपी व्यक्ति ने उससे शादी करने और उसके परिजनों को काम दिलाने का वादा किया था. महिला का यह भी कहना है कि वे इन दिनों 'पति-पत्नी की तरह रहे.' इस बात की जानकारी होने पर कि वह दूसरी महिला से शादी करने जा रहा है तब उसने व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी एवं रेप का केस दर्ज कराया.

सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति को सभी आरोपों से मुक्त किया

पीठ ने साक्ष्यों को देखने के बाद पाया कि आरोपी व्यक्ति और महिला दोनों अलग-अलग धर्म से जुड़े हैं और शादी न होने के बीच यही मुख्य वजह रही. लड़की का परिवार चाहता था कि शादी चर्च में हो जबकि लड़के के परिजन विवाह मंदिर में करना चाहते थे. अपना फैसला लिखते हुए जस्टिस सिन्हा ने कहा, 'व्यक्ति अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखता है जबकि लड़की ईसाई समुदाय से है. दोनों के बीच पत्रों का जो व्यवहार हुआ है उससे जाहिर होता है कि समय गुजरने के साथ-साथ दोनों के बीच एक-दूसरे के प्रति प्रेम बढ़ा.' कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है.

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