एक देश-एक चुनाव में मोदी को मिला 5 दलों का साथ, 9 दल विरोध में
लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव पर चर्चा के लिए सभी राष्ट्रीय दलों के साथ दो दिवसीय बैठक बुलाई
लॉ कमीशन ड्राफ्ट को अंतिम रूप देकर केंद्र सरकार को भेजेगा, संविधान विशेषज्ञों से भी राय ली
लॉ कमीशन ड्राफ्ट को अंतिम रूप देकर केंद्र सरकार को भेजेगा, संविधान विशेषज्ञों से भी राय ली
नई दिल्ली. मोदी सरकार के 'एक देश-एक चुनाव' के सुझाव पर राजनीतिक दल एकमत नहीं हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने के लिए लॉ कमीशन ने ड्राफ्ट तैयार किया है। इस पर चर्चा के लिए कमीशन ने शनिवार और रविवार को पार्टियों की बैठक बुलाई। इसमें एनडीए के दो सहयोगी समेत 5 दलों ने प्रस्ताव का समर्थन किया तो नौ विरोध में खड़े हो गए। उन्होंने एक स्वर में इसे गैर-संवैधानिक करार दिया। भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा। भाजपा ने 31 जुलाई तक वक्त मांगा है। कांग्रेस दूसरे दलों से बात कर रुख स्पष्ट करेगी।
चुनाव सुधारों के लिए प्रस्ताव का समर्थन करने वालों में जदयू और अकाली दल (एनडीए), अन्नाद्रमुक, समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) शामिल हैं। दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तदेपा, द्रमुक, जेडीएस, एआईएफबी, माकपा, एआईडीयूएफ, गोवा फार्वर्ड पार्टी (भाजपा की सहयोगी) विरोध में हैं।
2019 से साथ चुनाव की शुरुआत करें
सपा सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि हम साथ चुनाव कराने के पक्ष में हैं। लोकसभा या विधानसभा में खंडित जनादेश आने पर सर्वसम्मति से सरकार बनाई जाए। इसके लिए विधायकों और सांसदों से शपथ पत्र लेना होगा कि वे सरकार का कार्यकाल पूरा होने तक साथ मिलकर काम करेंगे। अगर कोई जनप्रतिनिधि पाला बदलता है या खरीदफरोख्त में लिप्त पाया जाता है तो लॉ कमीशन हफ्तेभर में कार्रवाई करे। अन्नाद्रमुक नेता और लोकसभा के डिप्टी स्पीकर एम थांबी दुरई ने कहा कि दोनों को चुनावों को साथ कराना अच्छा है, लेकिन इसे पहले कुछ गंभीर मुद्दों को हल करना होगा। नई व्यवस्था को 2024 से पहले लागू न किया जाए। केसीआर की पार्टी टीआरएस और जदयू ने इसे चुनावी खर्च में कमी, कालेधन पर रोक और समय की बचत बताया।सरकारों का कार्यकाल घटना या बढ़ाना पड़ेगा
चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तदेपा और तृणमूल कांग्रेस ने प्रस्ताव को संविधान और संघीय ढांचे को कमजोर करने वाला बताया। तदेपा सांसद के रविंद्र कुमार ने कहा, ''एक साथ चुनाव कराने के लिए कई राज्य सरकारों का कार्यकाल घटना और बढ़ाना पड़ेगा। संवैधानिक तौर पर यह व्यवहारिक नहीं है। बड़ी संख्या में वीवीपैट की जरूरत होगी। चुनाव आयोग इतनी मशीनें कहां से लाएगा। हमारा सुझाव है कि चुनाव में बैलट पेपर का इस्तेमाल किया जाए। जहां तक आंध्र प्रदेश का सवाल है, राज्य में पहले से ही एक साथ चुनाव होते हैं।''