मध्यप्रदेश

हर दौर पर अपनी उपेक्षा से हैरान थें 'महाराज' पर सोनिया बनी उनकी नाराजगी की सबसे बड़ी वजह

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:14 AM GMT
हर दौर पर अपनी उपेक्षा से हैरान थें महाराज पर सोनिया बनी उनकी नाराजगी की सबसे बड़ी वजह
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Madhya Pradesh Government Crisis पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की दम पर मध्यप्रदेश में सत्ता पलट की तैयारी के साथ राजनीतिक उठापटक का पटाक्षेप होने जा रहा है। सिंधिया इस परिवर्तन के केंद्र बने हैं। सिंधिया की चुप्पी को लेकर रीवा रियासत डॉट कॉम ने पहले ही खुलासा किया था कि 'सिंधिया की ये चुप्पी, कांग्रेस को बड़ी भारी पड़ेगी"।

सूत्र बताते हैं महाराज के चेहरे पर फतह हासिल करने वाले मध्यप्रदेश में हर दौर पर सिंधिया की उपेक्षा की गई जिससे वे नाराज हैं। न सिर्फ कांग्रेस ने सिंधिया के चेहरे का इस्तेमाल कर अपनी सरकार बनाई बल्कि सिंधिया को ही सरकार से दूर कर दिया, जबकि सीएम का चेहरा ज्योतिरादित्य ही थें। इसके बाद से ही सिंधिया के तेवर कमल नाथ सरकार के खिलाफ प्रायः देखने को मिलते आएं है। परन्तु जानकारी के अनुसार सिंधिया की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी मानी जा रही है। जिनसे सिंधिया दो दिनों से लगातार मिलने की कोशिश कर रहें थे, पर उन्होंने सिंधिया से मिलने को इंकार कर दिया था।

इससे पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिल्ली में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी, सूत्रों ने कहा कि सोनिया ने सीएम कमलनाथ और सिंधिया दोनों को ही कहा था कि वे अपने विवाद सुलझा लें। उन्होंने सिंधिया को मनाने के लिए राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को बातचीत करने की जिम्मेदारी भी सौंपी थी।

पायलट ने सिंधिया से दो दौर की बात भी, लेकिन सिंधिया अपनी उपेक्षा से नाराज थे और वे नहीं माने। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सिंधिया की शिकायत की थी। सिंधिया भी हाईकमान के सामने अपनी बात रखने के लिए दो दिन से सोनिया गांधी से मिलने का वक्त मांग रहे थे पर उन्हें मुलाकात का मौका नहीं मिला।

रविवार को ही सिंधिया को इस बात का आभास हो गया था कि राज्यसभा में उनका पत्ता कट रहा है। तभी से सिंधिया कैंप में खलबली मची और सारी रात चली सियासत के बाद अंतत: सिंधिया ने कांग्रेस से दूरी बनाने के लिए अपने समर्थकों को दिल्ली तलब कर लिया। सुबह होते-होते सारे समर्थक दिल्ली में एकत्र हो गए और शाम को सभी ने चार्टर फ्लाइट से बेंगलुरु के लिए उड़ान भर ली।

दरअसल सिंधिया को विधानसभा चुनाव 2013 और फिर 2018 के दौरान शिवराज के मुकाबले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की कवायद हुई पर सफल नहीं रही। सवा साल पहले हुए चुनाव में भी कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस ने एक बड़े चेहरे के रूप में प्रचारित किया था। कमलनाथ को मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष तो सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।

सिंधिया को भी उम्मीद थी कि सत्ता में आए तो उन्हें भी मजबूत हिस्सेदारी मिलेगी, लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आते ही सिंधिया हाशिए पर डाल दिए गए। सरकार में उनकी किसी बात को तवज्जो नहीं मिली। दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी ने हर पल सिंधिया समर्थक मंत्रियों को भी परेशान किया। इसी उपेक्षा के चलते कई बार सिंधिया ने अपनी नाराजी को सार्वजनिक भी किया। उन्होंने वचन पत्र की उपेक्षा पर सड़क पर उतरने की चेतावनी भी दी।

सिंधिया को राज्यसभा का प्रस्ताव सिंधिया को भाजपा ने राज्यसभा सदस्य के साथ केंद्रीय मंत्री बनाने का भरोसा दिया है। ऐसी संभावना है कि मंगलवार को सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम सकते हैं हालांकि इसकी कोई भी सूत्र पुष्टि नहीं कर रहा है।

इन्होंने दिया रणनीति को अंजाम रविवार की देर रात तक दिल्ली में मप्र के 'ऑपरेशन लोटस" को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जो कोर ग्रुप की बैठक हुई उसमें शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, नरेंद्र सिंह तोमर, राकेश सिंह एवं डॉ. नरोत्तम मिश्रा मौजूद थे। देर रात तक इन सभी दिग्गजों ने इस सियासी घटनाक्रम की स्क्रिप्ट को अंतिम रूप दिया।

सिंधिया का ब्रह्मास्त्र बताया जाता है कि सिंधिया के गुस्से का उबाल एक दिन का घटनाक्रम नहीं, बल्कि इसे परवान चढ़ने में पूरे 20 दिन लगे। तीन सप्ताह से वह संगठन को इस बारे में लगातार संकेत दे रहे थे, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। अंतत: उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया।

माधवराव सिंधिया की जयंती का संयोग पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की 10 मार्च को 75वीं जयंती है। महज यह संयोग है कि सात दिन से प्रदेश कांग्रेस सरकार में आए भूचाल के केंद्र बिंदु इस समय उनके पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बने हुए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक मध्यप्रदेश सरकार के रवैये से बेहद नाराज हैं। यहां तक कि खेमे के डेढ़ दर्जन से ज्यादा मंत्री-विधायकों के भूमिगत हो जाने से सरकार के सामने संकट पैदा हो गया है।

कहा जाता है कि स्व. माधवराव सिंधिया के भी एक समय मुख्यमंत्री बनने का अवसर बना था, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने उस समय ऐसा सियासी घमासान मचाया कि वे सीएम नहीं बन सके थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक कहते हैं कि वे उस घटनाक्रम को नहीं भूले हैं और उनके साथ भी पिता जैसी राजनीति दोहराए जाने के प्रयास चल रहे हैं।

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