मध्यप्रदेश

एमपी के 16 नगर निगमों में सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन की तैयारी: पहले चरण में रीवा समेत 6 शहर होंगे, जाम से मिलेगी मुक्ति; जानिए कैसे काम करेगी यह तकनीक...

एमपी के 16 नगर निगमों में सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन की तैयारी: पहले चरण में रीवा समेत 6 शहर होंगे, जाम से मिलेगी मुक्ति; जानिए कैसे काम करेगी यह तकनीक...
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पहले चरण में इंदौर, रीवा, जबलपुर, सागर, देवास और उज्जैन के ट्रैफिक सिग्नल सिंक्रोनाइज कराए जाएंगे.

चुनावी साल है और मध्यप्रदेश सरकार राज्य शहरों के डेवलपमेंट और सुविधाओं को लेकर एक से बढ़कर एक निर्णय ले रही है. राज्य के ज़्यादातर शहर ट्रैफिक की बदहाली से गुजर रहें हैं, जिनको व्यवस्थित करने के लिए प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों में सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक (Signal Synchronization Technology) लागू करने की तैयारी है. इस कार्य को चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा, पहले चरण में रीवा समेत राज्य के 6 नगर निगमों को शामिल किया गया है.

मध्य प्रदेश नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इंदौर शहर में सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक के लिए काम शुरू किया जा चुका है. यह शहर काफी बड़ा है और यहां ट्रैफिक की समस्या राज्य के अन्य शहरों की तुलना में ज्यादा है. इसके अलावा पहले चरण में रीवा, जबलपुर, सागर, देवास और उज्जैन के ट्रैफिक सिग्नल सिंक्रोनाइज कराए जाएंगे.

अब समझिए क्या है सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक? (What is Signal Synchronization Technology?)

सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन एडवांस अर्बन ट्रैफिक मैनेजमेंट का हिस्सा है. सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन पूरी तरह से मानव रहित और ऑटोमैटिक होता है. इसे भी दो तरीके से किया जाता है.

  1. पहला तरीका : इसमें एक निश्चित दूरी तक के रूट को रेड सिग्नल से मुक्त कर दिया जाता है. इसमें टाइमर का उपयोग होता है. लिहाजा पीक ट्रैफिक अवर्स में भी यातायात प्रभावित नहीं होता है.
  2. दूसरा तरीका : यातायात की निगरानी के लिए CCTV का उपयोग होता है, जिन व्यस्त मार्गों में ट्रैफिक लोड बढ़ता है, उसे सिंक्रोनाइजेशन तकनीक से रन कर दिया जाता है. यह एक तरह की ट्रैफिक प्रोग्रामिंग के तहत आता है.

सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक की जरूरत क्यों पड़ी? (Need of Signal Synchronization Technology)

दरअसल, एमपी के कुछ शहरों में सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक को लागू करना अब बेहद जरूरी हो गया है. इसके दो प्रमुख कारण हैं.

  • पहला कारण: मध्यप्रदेश के कई शहरों की मौजूदा सड़कों का खाका सालों पुराना है. व्यस्त सड़क और आबादी का घनत्व अधिक होने के चलते ऐसे सड़कों का चौडीकरण, फोरलेन या सिक्सलेन का निर्माण करा पाना आसान नहीं होता है. ऐसे में आने वाले कुछ सालों में ट्रैफिक व्यवस्था और बदहाल हो जाएगी. हालात देश के मेट्रो शहरों की तरह बनने लगेंगे.
  • दूसरा कारण: मध्यप्रदेश के कई शहरों का विस्तार तेजी से हो रहा है. खासकर की 15 लाख से अधिक आबादी वाले शहर. ऐसे शहरों में वाहनों की संख्या में काफी इजाफा देखा जा रहा है. जिसके चलते सड़कों में जाम की स्थिति बन जाती है.

लिहाजा, सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक की जरूरत आ पड़ी है. इस तकनीक से स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम को विकसित किया जा रहा है. वैसे भी अब शहरों के नए मास्टर प्लान में रोड प्लानिंग भी पैसेंजर कार यूनिट (PCU) के आधार पर की जा रही है.

सबसे पहले सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक के लिए एमपी की राजधानी भोपाल का चुनाव किया गया था. इस तकनीक से एक निश्चित दूरी तक रेड सिग्नल से निजात मिलती है. जिससे व्यवस्तम समय में भी ट्रैफिक जाम जैसे हालात नहीं बन पाते हैं.

भोपाल के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक लागू करने का प्लान तैयार पहले ही तैयार किया जा चुका था. लेकिन, कई सर्वे के बावजूद भी सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन की सुविधा भोपाल को नहीं मिल सकी थी. अब एक बार फिर इस तकनीक में काम शुरू हुआ है.

मध्यप्रदेश के इन 6 शहरों में लागू होगी सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक

सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन तकनीक को पहले चरण में मध्यप्रदेश के 6 शहरों इंदौर, रीवा, जबलपुर, उज्जैन, देवास और सागर में लागू किया जाएगा. इसके बाद इसका रियल टाइम सर्वे भी होगा. इन शहरों के रूटों के टाइमिंग पीसीयू डाटा तैयार किया जा चुका है. जिसमें तय रूट में लाग्ने वाले समय, सिग्नल मिनट, स्पीड आदि की जानकारी दी जा चुकी है. इस पूरे सिस्टम को ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम या शहर के ट्रैफिक कंट्रोल रूम से ऑपरेट किया जाएगा.

Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत

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