मध्यप्रदेश

एमपी का यह मंदिर केवल जन्माष्टमी के दिन ही खुलता है, दूर-दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं श्रद्धालु

Sanjay Patel
7 Sep 2023 11:00 AM GMT
एमपी का यह मंदिर केवल जन्माष्टमी के दिन ही खुलता है, दूर-दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं श्रद्धालु
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MP News: मध्यप्रदेश में एक ऐसा भी मंदिर है जिसको केवल जन्माष्टमी के दिन ही खोला जाता है। साल भर में केवल एक बार ही भक्तों को इस मंदिर में भगवान के दर्शन हो पाते हैं।

मध्यप्रदेश में एक ऐसा भी मंदिर है जिसको केवल जन्माष्टमी के दिन ही खोला जाता है। साल भर में केवल एक बार ही भक्तों को इस मंदिर में भगवान के दर्शन हो पाते हैं। जन्माष्टमी के दिन यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। भगवान का दर्शन पाने के लिए लोग यहां दूर-दूर से पहुंचते हैं। इस दौरान यहां प्रशासन द्वारा निगरानी भी की जाती है।

जंगल के बीच स्थित है मंदिर

एमपी के उमरिया में यह मंदिर स्थित है। बांधवाधीश मंदिर पूरी तरह से जंगल के बीच है। यह पूरा मंदिर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहां शेर, हाथी, चीते, बाघ से लेकर सांप सभी तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। लोगों को यहां भगवान के दर्शन करने के लिए आठ किलोमीटर पैदल सफर कर पहुंचना पड़ता है। यहां जंगली जानवरों का भय भी लोगों को बना रहता है।

जन्माष्टमी पर लगता है मेला

उमरिया के बांधवाधीश मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यहां लोगों को साल भर में केवल एक बार ही भगवान के दर्शन हो पाते हैं। जन्माष्टमी पर बांधवगढ़ नेशनल पार्क के गेट भक्तों के लिए पूरी तरह से खोल दिए जाते हैं। भक्तगण यहां 8 किलोमीटर की ट्रैकिंग कर पैदल चलते हुए किले के पास पहुंचते हैं। किले के अंदर राम-जानकी मंदिर है जिसमें जन्माष्टमी को भगवान के दर्शन करने के लिए भक्त पहुंचते हैं।

शिवपुराण में मिलता है किले का जिक्र

इतिहासकारों की मानें तो बांधवगढ़ का यह किला लगभग दो हजार साल पहले बनाया गया था। जिसका जिक्र भी शिवपुराण में मिलता है। जानकारों की मानें तो इस किले को रीवा के राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। किले में जाने के लिए केवल एक ही रास्ता है। जो कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क के घने जंगलों से होकर गुजरता है। किले के नाम के पीछे भी पौराणिक गाथा है। जनश्रुति है कि भगवान राम ने वनवास से लौटने के बाद अपने भाई लक्ष्मण को यह किला भेंट किया था। पुराण और शिव संहिता में भी इस किले का वर्णन मिलता है।

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