मध्यप्रदेश

तीन गुना तक महंगे हो जाएंगे जूते व चप्पल, फुटवियर इंडस्ट्री में बीआईएस लागू, यह करना रहेगा अनिवार्य

Sanjay Patel
14 July 2023 11:37 AM GMT
तीन गुना तक महंगे हो जाएंगे जूते व चप्पल, फुटवियर इंडस्ट्री में बीआईएस लागू, यह करना रहेगा अनिवार्य
x
MP News: एमपी का इंदौर सेंट्रल इंडिया का फुटवियर हब के रूप में पहचाना जाता है। यहां पर तकरीबन 50 फुटवियर यूनिटों का संचालन किया जाता है। जहां पर जूते व चप्पल तैयार किए जाते हैं। केन्द्र सरकार ने इस इंडस्ट्री के लिए बीआईएस अनिवार्य कर दिया है।

एमपी का इंदौर सेंट्रल इंडिया का फुटवियर हब के रूप में पहचाना जाता है। यहां पर तकरीबन 50 फुटवियर यूनिटों का संचालन किया जाता है। जहां पर जूते व चप्पल तैयार किए जाते हैं। केन्द्र सरकार ने इस इंडस्ट्री के लिए बीआईएस अनिवार्य कर दिया है। जिसका असर यहां बनने वाले जूते-चप्पल पर पड़ेगा। यह दो से तीन गुना तक महंगे हो जाएंगे। जिसका नुकसान भी इंडस्ट्री को उठाना पड़ सकता है। इसको लेकर फुटवियर उद्योग संचालकों और एसोसिएशन ने विरोध भी प्रारंभ कर दिया है।

फुटवियर की बढ़ जाएगी कीमत

फुटवियर उद्योग संचालकों का कहना है कि इंडस्ट्री में बीआईएस की अनिवार्यता के कारण जो चप्पल अभी तक 100 रुपए में मिलती है वह इसके लागू होने के बाद 250 से 300 रुपए तक की हो जाएगी। वहीं फुटवियर निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष गिरीश पंजाब के मुताबिक बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) सर्टिफिकेशन लागू होने के बाद यहां रिसाइकल पीवीसी मटेरियल से फुटवियर बनाना प्रतिबंधित हो जाएगा। इसके साथ ही क्वालिटी भी अधिक जोर रहेगा।

बीआईएस क्या है?

सरकार द्वारा ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) की अनिवार्यता 1 जुलाई से लागू की गई है। प्रारंभ में 5 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाले फुटवियर निर्माताओं पर इसको लागू किया गया। इस कदम के पीछे सरकार का उद्देश्य एक्सपोर्ट को बढ़ाना है। भारत ऐसे देशों में चायना के सप्लाई को काम करना चाहती है। जबकि 5 से 50 करोड़ टर्न ओवर वाले लघु उद्योगों पर बीआईएस की अनिवार्यता 1 जनवरी 2024 से लागू किया गया है और 5 करोड़ से कम वाले टर्न ओवर की जितनी भी सूक्ष्म यूनिट हैं उन पर 1 जुलाई 2024 से इसे लागू किया जाएगा। जिसमें क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने पर जोर दिया जाएगा।

बीआईएस के तहत यह बनानी होगी व्यवस्था

फुटवियर निर्माताओं को बीआईएस के तहत सबसे पहले लैब बनानी होगी। जिसमें एक टेक्नीशियन रहेगा। इसके साथ ही फुटवियर निर्माताओं को फैक्ट्री का रजिस्ट्रेशन व दस्तावेजीकरण भी करना होगा। कंपनियों को अपने यहां परीक्षण की सुविधा भी विकसित करनी होगी। जांच रिपोर्ट बीआईएस को देना होगा। फुटवियर निर्माताओं को सामग्री के मोल्ड का पंजीयन भी करवाना होगा। फिलहाल एक मोल्ड के पंजीयन पर 50 हजार रुपए खर्च आता है। फुटवियर निर्माताओं का कहना है कि छोटे फुटवियर निर्माता बहुत ही सीमित जगह पर यूनिट लगाकर काम करते हैं जितनी जगह में यूनिट संचालित हो जाती है उतनी जगह तो अब लैब स्थापित करने में लग जाएगी। इसके साथ ही खर्च भी बढ़ जाएंगे।

वेस्ट पीवीसी का क्या होगा?

बीआईएस सर्टिफिकेशन लागू होने के बाद रिसाइकल पीवीसी मटेरियल से फुटवियर बनाना प्रतिबंधित हो जाएगा। इसके साथ ही क्वालिटी पर अधिक जोर रहेगा। वर्जिन पीवीसी मटेरियल के जूते-चप्पल ही बनाने होंगे। सूक्ष्म और लघु यूनिट वाले निर्माता सरकार के इस फैलसे के विरोध में उतर आए हैं। एमपी के इंदौर में बड़े पैमाने पर रिसाइकल पीवीसी के फुटवेयर बनाए जाते हैं। बरसाती जूतों सहित बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, सड़क निर्माण में इनका इस्तेमाल भी किया जाता है। फुटवियर कारोबार से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि भारत में रिसाइकल से फुटवियर बड़ी मात्रा में बनाए जाते हैं। सरकार को यह सोचना चाहिए कि वेस्ट पीवीसी का क्या होगा? इंदौर के फुटवियर उद्योग से जुड़े लोगों ने सांसद शंकर लालवानी को ज्ञापन भी सौंपा है। उनका कहना है कि बीआईएस में 500 रुपए कीमत तक के फुटवियर को नहीं शामिल किया जाए।

Next Story