मध्यप्रदेश

बेहद ख़ास है रीवा में पैदावर होने वाली आम की ये नस्ल, विदेशों में भी होता है एक्सपोर्ट, सैलानी आते हैं बगीचा

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:20 AM GMT
बेहद ख़ास है रीवा में पैदावर होने वाली आम की ये नस्ल, विदेशों में भी होता है एक्सपोर्ट, सैलानी आते हैं बगीचा
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बेहद ख़ास है रीवा में पैदावर होने वाली आम की ये नस्ल, विदेशों में भी होता है एक्सपोर्ट, सैलानी आते हैं बगीचा रीवा। फलों के राजा आम जिसकी एक न

बेहद ख़ास है रीवा में पैदावर होने वाली आम की ये नस्ल, विदेशों में भी होता है एक्सपोर्ट, सैलानी आते हैं बगीचा

रीवा। फलों के राजा आम जिसकी एक नस्ल सुन्दरजा आम है जिसका स्वाद न केवल देश बल्कि विदेशों के लोग भी चख रहे हैं। रीवा में पैदावर होने वाले और रीवा की शान सुंदरजा आम को देश के साथ-साथ विदेशों मे भी बहुत पसंद किया जाता है। इनमें इंग्लैंड, अमेरिका, पाकिस्तान समेत अरब देश में बहुतायत मांग होती है।

दिखने में सुन्दर तो मिठास से भरा हुआ सुन्दरजा आम

गोविंदगढ़ की बगिया में जहां ये आम पकने के बाद अपनी महक फैलाते है वहीं इस आम की डिमाण्ड भी लगातार बढ़ती जा रही है। स्थानीय स्तर पर सुन्दरजा आम की कीमत पिछले वर्ष सवा सौ रुपए किलो के हिसाब से रही है। जबकि मिठास के चलते इस आम की डिमाण्ड अन्य शहरों के साथ ही महानगरों में भी सर्वाधिक रहती हैं। यह आम महानगरों में 500 रुपए किलो के हिसाब से विक्रय होता है। जबकि गोविंदगढ़ में इस आम की पैदावार होती है और पैदवार वाले स्थान में ही सुन्दरजा आम की अच्छी कीमत मिलती है।

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सुन्दरजा का पेड़ गोविंदगढ़ के बगीचे में तैयार होता है। जबकि इसका फल बिक्री के लिए दूर-दराज के शहरों में भी पहुंचता है। आम की अच्छी कीमत मिलने के कारण स्थानीय स्तर पर लोग इस फल को तैयार करने के लिए लगन और मेहनत के साथ लगे रहते हैं कारण यह है कि व्यवसायिक रुप से यह फल लाभकारी है और अन्य आम के फलों की अपेक्षा इस आम की अच्छी कीमत मिलती है। स्थानीय व्यापारी रामेश्वर पटेल ने बताया कि लोकल स्तर पर पिछले वर्ष तक आम की बिक्री 110 रुपए 125 रुपए तक होती रही है। जबकि जिला मुख्यालय में यह आम दो से ढाई सौ रुपए किलो बिका है वहीं बड़े शहरों में उसकी अच्छी कीमत मिलती है।

मिठास है इसकी पहचान

गोविंदगढ़ में आम का बगीचा तैयार करने वाले पम्मू सिंह बताते हैं कि मिठास ही इस आम की पहचान है। यह आम जब हरा रहता है तो उस समय भी इसमें खट्टापन नहीं होता बल्कि आम मीठा रहता है। पकने के बाद इस आम की मिठास दोगुनी हो जाती है। उन्होंने बताया कि अपने बगीचे में लगभग 40 पेड़ सुन्दरजा आम के उन्होंने लगा रखे हैं और बगीचे को तीन लाख रुपए में बिक्रय कर दिया है। जहां ठेकेदार आम की तुड़ाई करके उसे बिक्री करने के लिए अन्य शहरों तक ले जाते हैं।

बगीचा देखने पहुंचते हैं सैलानी

गोविंदगढ़ की यूं तो पहचान सफेद बाघ के रुप में रही है। लेकिन सुन्दरजा आम भी इस क्षेत्र की पहचान अन्य शहरों तक पहुंचा रहा है। बताया जा रहा है कि गोविंदगढ़ पहुंचने वाले सैलानी इस फल को देखने के लिए बगीचे में पहुंचते हैं। जब भी गोविंदगढ़ की सैर करने लोग आते हैं तो भ्रमण में उनका सुन्दरजा आम का बगीचा भी शामिल रहता है। तो वहीं हरे आम के साथ पकने के बाद पीले आम की भी लोग अच्छी खरीदी करके ले जाते हैं।

123 प्रजातियों में सबसे प्रमुख है सुंदरजा आम

मध्य प्रदेश मे पाई जाने वाली आम की 213 प्रजातियों में सबसे प्रमुख सुंदरजा आम विगत कुछ वर्षों से मौसम की मार झेल रहा था। लिहाजा आम की पैदावार प्रभावित हो रही थी। इस वर्ष प्रतिकूल मौसम और अनुसंधान के वैज्ञानिकों की मेहनत के चलते सुंदरजा आम की पैदावार में 15 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।

गोविंदगढ़ की देन है ये आम

मौसम की मार के चलते पिछले साल सुंदरजा के एक पेड़ में 10 से 15 किलो की पैदावार हुई थी। लेकिन, इस वर्ष पैदावार प्रति पेड़ 100 से 125 किलो के पार हो गई हैं। इससे देश-विदेश के विभिन्न शहरों में सुंदरजा की मिठास के लिए लोगों को तरसना नहीं पड़ेगा। देश की नर्सरियों में पाए जाने वाला सुंदरजा आम रीवा जिले के गोविंदगढ़ की देन है। हालांकि सुंदरजा के अलावा गोविंदगढ़ के फजली, आम्रपाल, राजदरबार, कोहिनूर व मल्लिका जैसे दूसरे किस्म के आमों की जबरदस्त मांग है।

खुशबू से इस पहचान लेते हैं आम प्रेमी

देश के अन्य हिस्सों मे सुंदरजा के फल व उसके पौधे की मांग लगातार पढ़ रही है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई कलकत्ता, पाकिस्तान, इंग्लैंड, अमेरिका सहित अरब देशों में सुंदरजा अपनी खासियत के चलते आम प्रेमियों को लुभाता रहा है। सुंदरजा में इत्र जैसी खुशबू होती है और इसमें इतनी मिठास है कि आंख बंद कर इसे पहचाना जा सकता है। इन खासियतों के चलते सुन्दरजा को पंसद किया जाता है।

मिठास में इस आम का नहीं है कोई तोड़

किसान रामलखन जलेश के अनुसार आम की प्रजातियों में सबसे सुकुमार सुंदरजा को माना जाता है इसे पक्षियों और मौसम से बचाने के साख उपाय किए जाते है। कीमत में मुम्बई का हापूस भले ही सबसे महंगा आम हो, लेकिन मिठास में सुंदरजा आम का कोई तोड़ नहीं है।

गोविंदगढ़ की मिट्टी का कमाल

हालांकि देश-विदेश में मशहूर हो चुके सुंदरजा की उपज दिन ब दिन कम होती जा रही है। वजह लगातार पेड़ों की घटती संख्या और नए पेड़ों का तैयार नहीं हो पाना है। पूर्व पेड़ों की तुलना में अब के पेड़ों में लगने वाले आम के फलों की सुगंध व स्वाद में अंतर आना भी अधिकारियों की समझ से परे साबित हो रहा है। वैज्ञानिक इसे गोविंदगढ़ की मिट्टी का कमाल मान रहे हैं।

गोविंदगढ़ की मिट्टी में है कुछ खास

कलम के जरिए अब तक कई पौधों का रोपण करा चुके उद्यानिकी विभाग के अधिकारी व कृषि वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि उनकी ओर से कलम व बीज के जरिए तैयार किए गए सुंदरजा किस्म के आमों में वह गुणवत्ता नहीं मिल रहा है, जो गोविंदगढ़ के बाग के आमों में है। अधिकारी व वैज्ञानिक दोनों इसे गोविंदगढ़ की मिट्टी का कमाल मान रहे हैं, क्योंकि दूसरे क्षेत्रों में तैयार पौधों के फलों में न ही वह सुंगध व स्वाद है और न ही वह साइज है।

लगातार जारी है प्रयोग और प्रयास

सुंदरजा किस्म के प्रसार को लेकर उद्यानिकी विभाग की ओर से प्रयास लगातार जारी है। विभाग की ओर से सुंदरजा के कलम और बीज के जरिए पौधे तैयार करने के लिए विशेष रूप से कोशिश की जा रही है। गोविंदगढ़ व कुठुलिया के अलावा जिले के दूसरे क्षेत्रों में सुंदरजा के पौधे रोपे जा रहे हैं लेकिन उन्हें तैयार कर पाना चुनौतीभरा साबित हो रहा है।वजह जो भी हो, हकीकत यही है कि प्रतिवर्ष सैकड़ों पौधों का रोपण किया जाता है लेकिन तैयार होने वाले पौधे गिनती हैं।

पहले थी महाराजाओं की पसंद, अब विदेशों तक पहुंच

गोविंदगढ़ के किला परिसर में तैयार आम का बाग व सुंदरजा के पौधे राजघराने की देन है। सुंदरजा किस्म का आम महाराजाओं की खास पसंद में शामिल रहा है। अब इसकी मांग विदेशों तक में है। सुंदरजा के थोक विक्रेता संतोष कुमार गुप्ता की माने तो आम की सप्लाई फ्रांस जैसे कई दूसरे देशों तक होती है। इसके अलावा दिल्ली, छत्तीसगढ़ व गुजरात के कई व्यापारी एडवांक बुकिंग करा लेते हैं।

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