मध्यप्रदेश

कांटों वाली भूमि पर फूलों की खेती कर लाखो कमा रहा एमपी का किसान, बना दी 'फ्लॉवर वैली'

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चित्तौड़गढ़-भुसावल राष्ट्रीय राजमार्ग पर लोहारी गांव के पास नहर की एक ढलान इन दिनों फूलों वाली ढलान के लिए लोकप्रिय हो रही है।

चित्तौड़गढ़-भुसावल राष्ट्रीय राजमार्ग पर लोहारी गांव के पास नहर की एक ढलान इन दिनों फूलों वाली ढलान के लिए लोकप्रिय हो रही है। यह ढलान प्री-वेडिंग के कपल्स को खूब आकर्षित कर रही है। इस स्थान के सौंदर्य को पिक्चर में कैद करने और यादगार दृश्य बनाने के लिए अब तक यहां 4 जोड़ों ने प्री-वेडिंग शूट किया है। साथ ही राजमार्ग से गुजरने वाले यात्रियों को भी खुबसूरत निमाड़ का एहसास करा रही है।

बता दें की यहां फूलों की बगिया लगाने की भी बड़ी रोचक कहानी है। खेडीफाटा के किसान शंकर पाटीदार ने बताया कि वे 10 से 15 वर्ष से मिर्च या कपास की खेती में बॉर्डर के रूप में गेंदा फूल लगाया करते थे। जो किसी कीट व्याधि के इंडिकेटर के तौर पर काम किया करती थी। किसी भी फसल पर अटैक आने से पहले फूलों पर अटैक होता है। लेकिन जब रासायनिक छिड़काव या खाद नहीं देना पड़ा और बाजार में वजन व भाव अच्छा मिलने लगा तो पूरी तरह फूलों की खेती की शुरुआत की।

24 हजार रुपये की लागत से 17 हजार गेंदा 2.5 एकड़ में लगाएँ

किसान शंकरजी ने बताया कि फूलों की खेती करना आसान भी है और सस्ता भी। 2.5 एकड़ की इस बगिया को बसाने में मात्र 24 हजार रुपये खर्च किये गए है। 17 हजार पौधों की इस बगिया से 80 दिनों बाद फूल आना भी प्रारम्भ हुए हैं। जो लगातार 70 से 80 दिनों तक फसल रहती है। वे 2.50 एकड़ के क्षेत्र में दूसरी बार गेंदा की किमको सीड किस्म की खेती कर रहे हैं। पिछले वर्ष इसी खेत से 150-160 क्विंटल फूलों का उत्पादन ले चुके हैं। 20 से 25 रुपये के भाव से उन्हें फूल उत्पादन में अच्छा मुनाफा हुआ। क्योंकि इस फसल में किसी कीटनाशक या रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती। इस फसल का अधिक मुनाफा लेने के लिए गणेश चतुर्थी, नवरात्रि और दीपावली के सीजन को बेहतर अवसर मान सकते हैं।

गेंदा फूल की इस ढलान में पानी नहीं था तो ट्यूबवेल कराने पर हुए मजबूर

55 वर्षीय एमकॉम में शिक्षित शंकर भाई ने बताया कि खेती तो उनके पास पर्याप्त है लेकिन 1990 के दशक में पानी नहीं होने से एक फसल ले पाते थे। 1990 से 2010 के मध्य उन्होंने 60 एकड़ खेत के अलग-अलग हिस्सें में अब तक 48 ट्यूबवेल 600 फीट से अधिक गहराई के करवा चुके हैं। लेकिन पानी की पर्याप्त उपलब्धता नहीं हो पाई। फिर 2013 में इंदिरा सागर परियोजना की नहर निकलने के बाद से तस्वीर और खेती का नजरिया बदला। नहर आने के बाद उनके 5 ट्यूबवेल सालभर पानी दे पा रहे है। अब आसपास का पूरा क्षेत्र गर्मी में भी लहलहा रहा है।

उद्यानिकी विभाग ने पहली बार ड्रिप सिंचाई से परिचय कराया

कसरावद के वरिष्ठ उद्यान विस्तार अधिकारी श्री जगदिश मुजाल्दे ने बताया कि 2005-06 में उद्यानिकी विभाग ने पानी के प्रबंधन करने की कला ड्रिप सिंचाई से परिचय कराते हुए 5 एकड़ में ड्रिप सिंचाई अनुदान पर दिया था। इसके बाद अब तक समय-समय पर उनको और भाईयों को इसी भूमि पर 410322 रूपये के अनुदान पर 27 एकड़ में ड्रिप सिंचाई का लाभ दिया। आज वे पूरे 60 एकड़ खेत में ड्रिप सिंचाई से खेती कर रहे है। उद्यानिकी उपसंचालक श्री केके गिरवाल ने बताया कि जिले में वर्ष 2021-22 में फ्लोरीकल्चर का कुल रकबा 152 हे. और इस वर्ष 2022-23 में 220 हे. है।

Suyash Dubey | रीवा रियासत

Suyash Dubey | रीवा रियासत

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